उत्तर प्रदेश सरकार ने उच्चतम न्यायालय में कहा है कि कानपुर और प्रयागराज में अवैध ढांचों को नगर निकायों द्वारा कानून के अनुसार गिराया गया था और पैगंबर मोहम्मद के बारे में भारतीय जनता पार्टी के दो नेताओं की टिप्पणी के बाद हुए हिंसक विरोध में शामिल आरोपियों को दंडित किए जाने से इसका कोई संबंध नहीं था.
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मुस्लिम निकाय जमीयत उलमा-ए-हिंद द्वारा दाखिल याचिकाओं के तहत दायर हलफनामे में, राज्य सरकार ने कहा कि आवेदनों में जिस विध्वंस का जिक्र किया गया है, वे स्थानीय विकास प्राधिकरण द्वारा किए गए हैं और वे राज्य प्रशासन से स्वतंत्र वैधानिक स्वायत्त निकाय हैं. इसमें कहा गया है कि की गई कार्रवाई उत्तर प्रदेश शहरी नियोजन एवं विकास कानून, 1972 के अनुसार तथा अनधिकृत व अवैध निर्माण और अतिक्रमण के खिलाफ उनके नियमित प्रयास के तहत है.
हलफनामे में कहा गया है कि किसी भी प्रभावित पक्ष ने, यदि कोई हो, कानूनी विध्वंस कार्रवाई के संबंध में इस अदालत से संपर्क नहीं किया है.
इसमें कहा गया है, ‘‘विनम्रतापूर्वक यह निवेदन किया जाता है कि जहां तक दंगा करने वाले आरोपियों के विरुद्ध कार्यवाही की बात है, राज्य सरकार उनके खिलाफ सीआरपीसी, उप्र गैंगस्टर और असामाजिक गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1986 और नियम, 2021, सार्वजनिक संपत्ति क्षति रोकथाम कानून और उत्तर प्रदेश सार्वजनिक और निजी संपत्ति के नुकसान की वसूली कानून, 2020 और नियम, 202 जैसे भिन्न भिन्न कानूनों के अनुसार कठोर कदम उठा रही है.’’
इसमें जिक्र किया गया है कि कानपुर में दो बिल्डरों ने भी अवैध निर्माण होने की बात स्वीकार की है.
हलफनामे में कहा गया है कि सर्वोच्च अदालत ने हाल ही में यहां शाहीन बाग में कथित विध्वंस के संबंध में एक राजनीतिक पार्टी द्वारा दायर रिट याचिका में कहा था कि केवल प्रभावित पक्ष को आगे आना चाहिए न कि राजनीतिक दलों को.
इसमें कहा गया है कि इस तरह के सभी आरोप पूरी तरह से निराधार हैं और उनका खंडन किया जाता है. इसमें अदालत से अनुरोध किया गया है कि बिना आधार के इस अदालत के समक्ष गलत आरोपों के लिए याचिकाकर्ता के खिलाफ कार्रवाई की जाए.
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