उत्तर प्रदेश में महापौर की क्या होती हैं शक्तियां, कितना होता है नगर निगम का बजट? जानिए

अभिषेक मिश्रा

• 08:40 AM • 15 Dec 2022

UP News: उत्तर प्रदेश में नगर निकाय के चुनाव होने हैं, जिसमें नगर निगम, नगर परिषद और नगर पंचायत के प्रतिनिधि चुने जाएंगे. ऐसे में…

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UP News: उत्तर प्रदेश में नगर निकाय के चुनाव होने हैं, जिसमें नगर निगम, नगर परिषद और नगर पंचायत के प्रतिनिधि चुने जाएंगे. ऐसे में बड़ा सवाल ये है कि क्या नगर निगम में मेयर/महापौर और कमिश्नर की ताकत बराबर होती है और ये कैसे काम करते हैं? आपको बता दें कि मेयर का कार्यकाल पांच वर्ष का होता है जिसका चुनाव सीधे जनता द्वारा किया जाता है. शहर के प्रथम नागरिक के रूप में मेयर का ओहदा ऊंचा होता है.

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नगर निगम परिषद के स्पीकर मेयर की सहमति से निगम परिषद की बैठक बुलाते हैं. बैठक की अध्यक्षता करते हैं. इस बैठक में तय एजेंडे पर निर्णय लिए जाते हैं. महापौर का मंत्रिमंडल माना जाता है. मेयर इसके सभापति होते हैं. इसमें न्यूनतम पांच और अधिकतम 11 सदस्य शामिल होते हैं, जिन्हें विभिन्न समितियों का प्रभारी बनाया जाता है.

वहीं, नगर आयुक्त सरकारी अधिकारी के रूप में कार्य करते हैं. आयुक्त भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी होते हैं. इन्हें नगर निगम के अमले का प्रशासनिक मुखिया भी कहा जाता है. शासन से मिलने वाले आदेशों और निर्णयों के क्रियान्वयन की जिम्मेदारी इन्हीं की होती है. उपायुक्त प्रशासनिक नियंत्रण के लिए जोन व्यवस्था के रूप में कार्य करते हैं. कुछ अधिकारी राज्य प्रशासनिक सेवा के भी होते हैं.

अब जानते हैं कि आपका मेयर और निगम के पास कितनी हदें, कितना हक और अधिकार हैं? बता दें कि इसमें तीन लाख से अधिक आबादी वाले नगर निगमों में महापौर परिषद सीधे तौर पर 15 लाख रुपये तक की लागत के कार्यों के लिए मंजूरी दे सकती है. तीन लाख से कम आबादी वाले शहरों के लिए यह सीमा 10 लाख रुपये तक है. वहीं नगर निगम कमिश्नर को पांच लाख तक के कार्यों की स्वीकृति का वित्तीय अधिकार प्राप्त है. इससे अधिक राशि के प्रस्तावों के लिए उन्हें महापौर परिषद से अनुमोदन प्राप्त करना होता है.

महापौर, एमआईसी या निगम परिषद द्वारा लिए जाने वाले निर्णयों के क्रियान्वयन की जिम्मेदारी नगर निगम आयुक्त की रहती है. महापौर अपने अधिकार क्षेत्र में आने वाले कार्य का प्रस्ताव बनाकर बोर्ड़ की मीटिंग में प्रस्तुत कर नगर आयुक्त को सौंपते हैं. आयुक्त द्वारा प्रस्ताव के मुताबिक उस पर अमल प्रक्रिया शुरू की जाती है. अब शासन ने आयुक्त को अधिकारिता के मुताबिक कलेक्टर या शासन को सीधे प्रस्ताव भेजने की छूट भी दे दी है.

हालांकि अधिनियम में महापौर, एमआईसी या निगम परिषद द्वारा लिए जाने वाले निर्णयों के क्रियान्वयन की जिम्मेदारी नगर निगम आयुक्त की रहती है. महापौर अपने अधिकार क्षेत्र में आने वाले कार्य का प्रस्ताव बनाकर बोर्ड़ की मीटिंग में प्रस्तुत कर नगर आयुक्त को सौंपते हैं. आयुक्त द्वारा प्रस्ताव के मुताबिक उस पर अमल प्रक्रिया शुरू की जाती है. अब मुखिया के नाते नगर निगम की जिम्मेदारियों को पूरा करवाना महापौर का दायित्व है. मुखिया के नाते नगर निगम की जिम्मेदारियों को पूरा करवाना महापौर का दायित्व है.

किस शहर का नगर निगम का कितना बजट?

उत्तर प्रदेश में 17 नगर निगम हैं, जिनमें प्रदेश के सभी बड़े शहर शामिल हैं. इनमें लखनऊ नगर निगम का बजट 2162 करोड़ रुपये है जो सभी नगर निगम मे सर्वाधिक है. वहीं, कभी 10 लाख की आय वाले कानपुर नगर निगम का बजट 161 सालों में नगर निगम के रूप में अब तक 1,375 करोड़ तक पहुंच चुका है. गोरखपुर, मुरादाबाद और झांसी नगर निगम के बजट को अगर मिला भी दिया जाए तो भी कानपुर नगर निगम से यह तीनों बहुत पीछे रह जाएंगे.

अन्य प्रमुख नगर निगमों का बजट इस प्रकार है – 

  • 1367 करोड़ रुपये गाजियाबाद नगर निगम

  • 1375 करोड़ रुपये कानपुर नगर निगम

  • 752 करोड़ रुपये आगरा नगर निगम

  • 572 करोड़ रुपये अलीगढ़ नगर निगम

  • 800 करोड़ रुपये प्रयागराज नगर निगम

  • 750 करोड़ रुपये वाराणसी नगर निगम

  • 730 करोड़ रुपये मेरठ नगर निगम

  • 452 करोड़ रुपये गोरखपुर नगर निगम

  • 417 करोड़ रुपये मुरादाबाद नगर निगम

  • 322 करोड़ रुपये झांसी नगर निगम का बजट है.

मेयर इतना इम्पोर्टेंट क्यों है?

शहरी निकायों को अधिकार प्रदान करने वाले संविधान के 74 वें संशोधन के लागू होने के बाद महापौर या मेयर शहरी निकाय का संवैधानिक, चुना हुआ प्रमुख है. वह शहरी निकाय के सदन का प्रमुख और शहर का प्रथम नागरिक होता है. उसके अनुमोदन से ही सदन की कार्यवाई होती है जिसमे शहरी पार्षदों द्वारा उठाए गए मुद्दों पर चर्चा होती है.

बजट पर अधिकार किसका, कमिश्नर या मेयर?

नगर निगम का बजट तो सदन द्वारा बनाया और पारित कराया जाता है, लेकिन धन के लिए नगर निगम को शासन पर निर्भर होना पड़ता है, क्योंकि नगर निगम के पास रेविन्यू बनाने के ज्यादा साधन नहीं होते हैं. इस तरह, बजट में बनाई गई कई योजनाओं को लागू करा पाना मुश्किल हो जाता है. 74वें संशोधन के लागू हो जाने के बावजूद इससे संबंधित कानून अभी कई राज्यों में नहीं बन पाए हैं, इनमें उत्तर प्रदेश भी शामिल है. ऐसा हो जाने के बाद राजस्व अन्य साधन नगर निगम व मेयर के पास उपलब्ध होंगे.

मेयर की क्या पॉवर?

मेयर को शहर के प्रथम नागरिक के रूप में ऊंचा ओहदा प्राप्त है, और अपने कार्यालय के अमले पर प्रशासकीय नियंत्रण होता है. मेयर नगर निगम के पार्षदों के अधिकारों और ऐसे काम करने के लिए सक्षम है जिनके लिए शासन से धन लेना आवश्यक न हो. नियम-कानून में मेयर के अधिकारों का दायरा सीमित है, और कार्यों की स्वीकृति का वित्तीय अधिकार भी सीमित है.

वहीं मामले पर वरिष्ठ पत्रकार रतन मणिलाल बताते हैं कि ;ताकत के तौर पर देखें तो मेयर अपनी कैबिनेट यानी मेयर इन काउंसिल (एमआईसी) का गठन करते हैं. निगम अध्यक्ष कार्य करने में असमर्थ हो तो महापौर कभी भी विशेष सम्मेलन बुला सकते हैं और अपने कार्यालय के अमले पर प्रशासकीय नियंत्रण होता है. महामारी या आपदा की स्थिति में ऐसे काम के लिए महापौर निर्देश दे सकते हैं जो तत्काल जरूरी हों, वहीं कई मामलों में मेयर को मेयर इन कौंसिल अपने अधिकार भी सौंप सकती है.’

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