‘अयोध्या में चली गोली तो लगा मरना तय है’ उमा भारती ने सुनाई कारसेवा-आंदोलन की चौंकाने वाली कहानी

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Ayodhya Ram Mandir: अयोध्या राम मंदिर आंदोलन इस देश का सबसे बड़ा धार्मिक-राजनीतिक विवाद में से एक रहा है. इस आंदोलन में कई लोग शहीद हुए तो कई लोगों ने जेल काटी. इस आंदोलन ने कई सरकारों को गिराया तो कई सरकारों को बनाया भी. इस आंदोलन के कई चेहरे रहे. इनमें से एक चेहरा उमा भारती भी रहीं. मध्य प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती राम जन्मभूमि आंदोलन से शुरू से ही जुड़ी रहीं. उन्होंने कारसेवा का भी नेतृत्व किया तो वहीं वह 6 दिसंबर वाले दिन भी मंच पर मौजूद रहीं. 

उमा भारती की आंखों से ये पूरा आंदोलन गुजरा. कई ऐतिहासिक मौकों पर खुद उमा भारती शामिल रहीं. हमारे सहयोगी चैनल आजतक से बात करते हुए उमा भारती ने इस आंदोलन से जुड़े कई चौंकाने वाले खुलासे किए हैं. 

‘हमारे सामने गोली और भीषण लाठीचार्ज हुआ’   

राम जन्मभूमि आंदोनल को याद करते हुए उमा भारती ने बताया, 2 नवंबर की कारसेवा अपनी शहादत के लिए मानी जाती है. राम और शरद कोठारी यानी कोठारी बंधु एक जत्थे में थे तो वहीं दूसरे जत्थे का नेतृत्व मैं कर रही थी. इस दौरान पुलिस ने गोलियां चला दी थी. हम सभी राम भक्तों को भीषण लाठीचार्ज का सामना करना पड़ा था. इस दौरान प्रोफेसर अरोड़ा समेत राम-शरद कोठारी की भी शहादत हुई थी. कई अनेक कारसेवक मारे गए. उस दौरान अयोध्या में बहुत खून खराबा हुआ था. मगर हम पीछे नहीं हटे. 

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उमा भारती ने आगे कहा, 6 दिसंबर वाले दिन लाल कृष्ण आडवाणी ने मुझे कहा था कि मैं कारसेवकों को नीचे आने के लिए कहूं. राम-शरद कोठारी शहीद हो चुके थे. मगर इस दौरान मुझे राम-शरद कोठारी की मां ढांचे के पीछे खड़ी हुई मिली थी. इस दौरान मुझे कारसेवकों की भीड़ ने ही खदेड़ दिया. कारसेवकों की भीड़ जय श्रीराम का नारा लगाकर मुझे उसी मंच पर छोड़ आई थी, जहां पर हम सभी लोग थे. 

‘मुलायम के बयान के बाद लगा आज तो मर ही जाएंगे’

उमा भारती ने बताया, मुझे इस आंदोलन में कई बार ऐसा लगा कि आज तो मर ही जाना है. मुझे इस कल्पना से खुशी होती थी कि मैं अयोध्या की गलियों में मर जाऊंगी. मुलायम सिंह यादव ने भी कह दिया था कि गोली मार दी जाएगी. परिंदा भी पर नहीं मार पाएगा. हम तो मान कर चल रहे थे कि गोली चलेगी और हम मर जाएंगे. हमें गर्व था कि हम भगवान राम और अपने पूर्वजों के नाम पर शहीद होंगे. 

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उमा भारती ने कहा कि मुझे 6 दिसंबर के दिन मुझे लगा कि मैं मर जाऊंगी. क्योंकि मैं कार सेवकों को मनाने ढांचे के पास गई थी, वहां कभी भी गोली चल सकती थी. 2 नवंबर के दिन भी मुझे मर जाना था. मगर मैं चमत्कार से बच गई. इस पूरे आंदोलन के दौरान लगा कि मैं मर जाऊंगी, लेकिन मुझे सिर्फ आस्था और मंदिर दिख रहा था. जब मेरे साथियों की शहादत हुई तो मुझे बुरा भी लगा कि मैं बच गई. लेकिन आज मैं जिंदा हूं और 22 जनवरी के दिन जब अयोध्या में रामलला अपने मंदिर में विराजमान होंगे और प्राण प्रतिष्ठा होगी, तो मैं ये अपनी आंखों से देखूंगी.

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