लखनऊ: रोड पर सो रहे लोग नहीं कर रहे रैन बसेरों का इस्तेमाल, कारण जानकर आप हो जाएंगे हैरान

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Lucknow News: उत्तर प्रदेश इस समय ठंड से ठिठुर रहा है. राजधानी लखनऊ में तो रात होते ही पारा नीचे आ जाता है. बीते गुरुवार की रात राजधानी लखनऊ का पारा 10 नीचे तक लुढ़क गया. इसी बीच लगातार बढ़ती ठंड को देखते हुए प्रदेश की योगी सरकार भी एक्शन में आ गई है.  सरकार के आदेश के बाद नगर निगम और कुछ प्राइवेट संस्थाओं ने मिलकर शहर में जगह जगह रैन बसेरे लगाए हैं, लेकिन फिर भी लोग भरी ठंड में फुटपाथ पर सोने को मजबूर हैं.

Uttar Pradesh weather news: यूपीतक की टीम बीती रात 11.30 बजे लखनऊ के हनुमान सेतु के पास पहुंची. यहां अस्थाई रैनबसेरा बना हुआ है. हमने देखा तो यहां अलाव जल रहा था. अंदर लोग भी थे, लेकिन कई गद्दे खाली पड़े थे. जब इस बारे में संचालक से बात की गई तो बताया कि लोग कंबल के लालच में बाहर सोना पसंद करते हैं, इसलिए अंदर नहीं आते हैं.

अलग-अलग बाते बताई

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इस बात का पता लगाने के लिए हम कुछ ही दूरी पर सो रहे 5-6 लोगों से मुलाकात की. उन्होंने बताया कि, “वह सभी मजदूरी करने यहां आए हैं. मगर आधार कार्ड गांव में रह गया, जिसकी वजह से रैन बसेरे में एंट्री नहीं मिल. कुछ लोगों ने अपनी बीमारी का हवाला भी दिया तो कुछ ने कहा की अंदर मच्छर बहुत काटते हैं इसलिए बाहर ही सोना बेहतर है.

दिखा अनोखा नजारा

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यूपीतक की टीम को रामसेतु से कुछ दूर हजरतगंज में भी यहीं मंज़र देखने को मिला. यहां लोगों ने ठंड और ओस से बचने के लिए झाड़ियों का सहारा लिया हुआ था. आप लोगों ने पेड़ या ऊंची झाड़ियों का सहारा लिए धूप से बचते लोगों को अक्सर देखा होगा, लेकिन इन ऊंची झाड़ियों के तले कपकपाती ठंड में ओस से बचते लोगों की तस्वीर शायद ही देखी होगी.

जब हमने यहां मौजूद लोगों से बात की तो उन्होंने बताया कि, “ओस बहुत होती है और ठंडी हवा चलती है, जिसकी वजह से उन्होंने इन झाड़ियों का सहारा ले रखा है और फुटपाथ तले बनी झाड़ियों में पनाह लेकर सो रहे हैं.

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इस दौरान कई रिक्शेवालों से भी हमारी मुलाकात हुई. उन्होंने बताया कि, “कई रिक्शेवाले यह मानते हैं कि अगर वह रैन बसेरे में सोएंगे तो उनका रिक्शा चोरी हो जाएगा. इसलिए कई लोगों ने सड़कों पर ही अपना इंतजाम कर रखा है.”

गौरतलब है कि लखनऊ में लगभग 25 स्थाई रैन बसेरे हैं और लगभग इतने ही अस्थाई रैन बसेरे हैं. स्थाई की क्षमता 1143 है तो अस्थाई की क्षमता करीब 704 है. मगर इसके बाद भी इनका इस्तेमाल करने वालों की संख्या काफी कम है.

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