Sahitya Aajtak Lucknow: मुंतशिर बोले- मैं जो कुछ भी हूं, इलाहाबाद यूनिवर्सिटी की वजह से हूं

शिल्पी सेन

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Sahitya Aajtak Lucknow: अपने गीतों से, अपनी बातों से सबके दिलों पर राज करने वाले मनोज मुंतशिर लखनऊ आने पर सबसे पहले चाय और बन मक्खन का स्वाद लेते हैं. मनोज ने मिलते ही बताया ’लखनऊ आते ही एक नहीं, दो कुल्हड़ चाय पी चुका हूं. अब जो भी कहें कर सकता हूं’. दरअसल, साहित्य आजतक लखनऊ में शामिल होने के लिए पहुंचे मनोज मुंतशिर ने कई बातों और यादों को साझा किया. मनोज वैसे तो यूपी के अमेठी के रहने वाले हैं, लेकिन अब उनका लखनऊ ज्यादा आना होता है. इसलिए लखनऊ आते ही वह अपनी चाय-बन मक्खन खाने की इच्छा को पूरी करते हैं और बदलते लखनऊ के बारे में बात करते हैं.

 

‘इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के शिक्षक पढ़ाते ही नहीं थे, बल्कि साहित्यिक चर्चा भी होती थी’

अपने गृह राज्य उत्तर प्रदेश की बात करते हुए मनोज मुंतशिर अपने कॉलेज के दिनों की याद में चले जाते हैं. इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में बिताए अपने दिनों का जिक्र अक्सर मनोज करते रहे हैं. सोशल मीडिया पर जो उनके फॉलोवर हैं, उनमें से भी कई उनके इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में बिताए दिनों को याद दिलाते रहते हैं और मनोज इस मुकाम तक पहुंचने के बाद भी कई बार अपने कॉलेज के दिनों की याद और बात खुलकर करते हुए देखे जाते हैं. ‘वो तो ऐसे दिन थे कि क्या बोलूं…इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में टीचर्स को सिर्फ पढ़ाने में ही नहीं साहित्यिक चर्चा में भी रुचि होती थी. अक्सर साहित्यिक चर्चा होती रहती थी. ये बात हम जैसे स्टूडेंट्स के लिए बहुत खास थी.’

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फिराक के घर के आस-पास घर लेने की कोशिश की

इलाहाबाद की साहित्यिक चर्चाओं और रुचि को सहेज कर अपने साथ मुंबई ले गए मनोज शुक्ला से मनोज मुंतशिर बनने के सफर में संघर्ष की रुकावटों के पत्थर भले ही आए हों, पर मनोज ने अपने फ़ॉर्मटिव ईयर में मिली समझ, सीख और ऊर्जा से सफलता की कहानी लिख दी. मनोज मुंतशिर ने बताया कि उस समय भी खूब साहित्यिक बातें होती थीं. मनोज ने ये भी बताया कि किस तरह फिराक गोरखपुरी का मकान 8/4 बैंक रोड, इलाहाबाद के आस पास उन्होंने मकान लेने की कोशिश की. इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के अपने ठिकाने ‘सर जीएन झा हॉस्टल’ का जिक्र करते ही उनके चेहरे की रौनक और बढ़ जाती है. मनोज कहते हैं ‘मैं जो कुछ भी हूं इलाहाबाद यूनिवर्सिटी की वजह से हूं. पहली बार इलाहाबाद में ही मैं माइक के सामने आया, पहली बार आकाशवाणी इलाहाबाद से मेरी कविताएं प्रसारित हुईं…बड़े एहसानात हैं इलाहाबाद के, जो अब सौभाग्य से प्रयागराज है.’

लखनऊ में सुनने सुनाने और कहने का रिवाज है

मनोज मुंतशिर उत्तर प्रदेश के अमेठी ज़िले के रहने वाले हैं. उनका यूपी आना उनका अक्सर होता है. मनोज लखनऊ के बारे में कहते हैं कि ‘खूब बढ़िया खाना बढ़िया लोग यहां की पहचान हैं. यहां सुनने-सुनाने और कहने का रिवाज़ है. परिपाटी है. ये परिपाटी आज की नहीं है. लखनऊ का ये कॉपीराइट है. यही वजह है कि कोई भी जो सरस्वती का साधक है, यहां आना पसंद करता है.’ मनोज आगे कहते हैं ‘मैं ये नहीं कहता कि और जगह ऐसे लोग नहीं हैं पर जब लखनऊ आओ तो लगता है. यहां वो भी बात कह सकते हैं जो और कहीं नहीं कह सकते.’

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मुंतशिर ने की सीएम की तारीफ

बता दें कि समय की कमी थी पर मनोज यूपी में हो रहे बदलाव पर इतनी टिप्पणी करके अपनी बात को समझा गए, “आज हर जगह यूपी की चमक की बात होती है. पिछले 5-6 साल से यूपी बहुत बदला है. यूपी मेंजितनी GDP पर मुख्यमंत्री जी ने जॉइन किया था. आज उससे काफी ज्यादा है. इतना बताने के लिए काफी है कि किस तरह की तरक्की हुई है यूपी में.’ तेरी मिट्टी में मिल जावा जैसे गीत लिखकर अपनी जड़ों से जुड़ाव को महसूस कराने वाले, कई हिट गीतों को लिख कर सफलता का आसमान छूने वाले और अपने राष्ट्रवादी सोच और बातों को खुलकर लोगों के सामने रखने वाले मनोज मुंतशिर ने जल्दी जी फिर लखनऊ वालों से मिलने का वायदा कर विदा लिया है.

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