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जो खो चुके थे याददाश्त उन्हें अपनों से मिला रहा KGMU! गजब के इस काम की पूरी कहानी जानिए

सत्यम मिश्रा

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KGMU news: लखनऊ स्थित किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी सिर्फ बेहतर इलाजों के लिए ही मशहूर नहीं है बल्कि मानवीय पहल भी इसकी एक बड़ी खासियत हैं. KGMU की ऐसी ही एक पहल है जिसकी जितनी तारीफ की जाए कम है. भीषण हादसों के दौरान ऐसे लावारिस मिले लोग, जो चोट की वजह से अपनी याददाश्त और पहचान खो देते हैं उन्हें उनके घर तक भी पहुंचाता है केजीएमयू. यह काम करता है केजीएमयू ट्रॉमा सेंटर का न्यूरो विभाग. यहां आए ऐसे सैकड़ों मरीजों का न्यूरोसर्जरी विभाग ने मुफ़्त में न सिर्फ इलाज किया है बल्कि उन्हें उनके घर तक भी पहुंचाया है. 

सिर्फ भारत में ही नहीं नेपाल तक मरीजों को पहुंचा, बिछड़े परिजनों से उन्हें मिलाकर उनके चेहरे पर मुस्कान वापस लाई गई है. KGMU न्यूरो सर्जरी विभाग के एचओडी डॉ बीके ओझा ने बताया कि, 'विभाग द्वारा किए जा रहे इस काम में काफ़ी मुश्किलें आती है क्योंकि ऐसी अवस्था में अगर मरीज के पास पहचान के तौर पर कोई आईडी और आधार कार्ड नहीं होता है तो फिर एक थाने से दूसरे थाने जहां हादसा हुआ वहां जाकर पता करने का काम किया जाता है. आसपास के सैकड़ों लोगों से पूछताछ की जाती है. तब जाकर कहीं अपने मिलते हैं.' 

इस काम को करने वाले केजीएमयू के कर्मचारी अतुल उपाध्याय ने बताया कि, 'अभी हाल ही में 31 मई की रात में लगभग 70 साल के एक बुजुर्ग को चोटिल हालत में बेहोशी की अवस्था में ट्रामा सेंटर कैजुअल्टी में लाया गया. उन्हें न्यूरो सर्जरी विभाग में विभागाध्यक्ष डॉ बीके ओझा जी के नेतृत्व में भर्ती करके उनका इलाज शुरू किया गया. उनके ब्रेन में कई चोट थीं. लेकिन इमरजेंसी ऑपरेशन की आवश्यकता नहीं थी. इलाज के साथ उनका स्वास्थ्य और होश थोड़ा बेहतर होने लगा. मरीज को थोड़ा बहुत होश आने के बाद उससे सवाल करने पर उसने अपना नाम सलाउद्दीन बताया और यह भी बताया कि वह दुबग्गा में कहीं रहते हैं.' 

फिर शुरू हुई सलाउद्दीन का घर खोजने की कवायद

यह जानकारी मिलने पर अतुल उपाध्याय ने छानबीन शुरू की. कई लोगों को मरीज को दिखाया लेकिन कोई नहीं पहचान पाया. अंत में मरीज को दुबग्गा पुलिस थाने ले जाया गया, जहां कुछ लोगों ने मरीज को पहचान लिया. पता चला कि मरीज स्वयं मेडिकल यूनानी की प्रैक्टिस करता है और आसपास के इलाके में मशहूर है. वह अपने घर में अकेले रहता है. उनके घर के अगल-बगल के लोगों ने उन्हें पूरे मन के साथ उनके घर में रखवाया और यह वचन दिया कि वह लोग इनका पूरा ख्याल रखेंगे. मरीज को शीघ्र स्वस्थ करने में  विभाग के सभी कर्मचारी, नर्सिंग ऑफिसर्स और रेजिडेंस ने खूब मेहनत करी. 
 

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