रिक्शा चलाकर मनोहर यादव के हाथों में पड़ गए छाले और इस गरीब को शिक्षा विभाग ने भेजा 51 लाख की वसूली का नोटिस! ये कहानी रुला देगी
उत्तर प्रदेश के श्रावस्ती जिले में एक ऐसा मामला सामने आया है जो दिल को झकझोर कर रख देगा. भिनगा क्षेत्र के गोंडपुरवा गांव में रहने वाले मनोहर यादव दिल्ली में रिक्शा चलाकर अपने परिवार का पालन-पोषण करते हैं. इस बीच उन्हें शिक्षा विभाग ने 51 लाख से अधिक की वसूली का नोटिस मिला.
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उत्तर प्रदेश के श्रावस्ती जिले में एक ऐसा मामला सामने आया है जो दिल को झकझोर कर रख देगा. भिनगा क्षेत्र के गोंडपुरवा गांव में रहने वाले मनोहर यादव दिल्ली में रिक्शा चलाकर अपने परिवार का पालन-पोषण करते हैं. इस बीच उन्हें शिक्षा विभाग ने 51 लाख से अधिक की वसूली का नोटिस मिला.
नोटिस के अनुसार, मनोहर पर आरोप लगाया गया कि उन्होंने अंबेडकर नगर के सुरेंद्र प्रताप सिंह के नाम पर नव्वा पुरवा के उच्च प्राथमिक विद्यालय में फर्जी शिक्षक के रूप में नौकरी की और 14 जुलाई 2020 तक 51 लाख 63 हजार रुपये वेतन के तौर पर लिए.
जब यह नोटिस उनके पास पहुंचा और उन्होंने इसे पढ़वाने के लिए गांव के किसी पढ़े-लिखे व्यक्ति से मदद ली, तो उन्हें इस आरोप की जानकारी हुई. यह सुनकर उनके पैरों तले जमीन खिसक गई.
गरीबी की मार और रिक्शा चलाने की मजबूरी
मनोहर यादव का परिवार बेहद गरीब है. वे दिल्ली में हाथ रिक्शा चलाते हैं ताकि परिवार की जरूरतें पूरी कर सकें. उनकी स्थिति इतनी दयनीय है कि पढ़ाई-लिखाई तक नहीं कर सके और किसी सरकारी दस्तावेज को पढ़ने के लिए भी दूसरों पर निर्भर हैं. मनोहर ने अपने हाथों को दिखाते हुए कहा कि 'मैं रिक्शा चलाता हूं, देख लीजिए मेरे हाथों पर निशान हैं. हमारे पास कुछ भी नहीं है. हम इतने पैसे कहां से भरें? नोटिस मिलने के बाद से हमने खाना तक नहीं खाया.'
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फर्जी शिक्षक का सच
नोटिस में दावा किया गया कि मनोहर यादव ने फर्जी तरीके से शिक्षक बनकर नौकरी की. लेकिन जिस विद्यालय में उनकी तैनाती की बात की जा रही है वहां के रिकॉर्ड और तस्वीरें कुछ और ही कहानी कहती हैं. 2020 से पहले नियुक्त फर्जी शिक्षक की तस्वीर और मनोहर यादव की तस्वीर मेल नहीं खाती. शिक्षा विभाग के कर्मियों ने यह तो माना कि नोटिस उनके कार्यालय से जारी हुआ, लेकिन इसे बाद में निरस्त कर दिया गया.
इस पूरी घटना ने मनोहर यादव और उनके परिवार को मानसिक और भावनात्मक रूप से तोड़ दिया है. नोटिस मिलने के बाद से उनका परिवार परेशान है. वे दर-दर भटक रहे हैं, लेकिन उनकी कोई सुनवाई नहीं हो रही.
शिक्षा विभाग की चूक और सवाल
शिक्षा विभाग के मौजूदा कर्मियों का कहना है कि नोटिस उनकी तरफ से जारी हुआ था, लेकिन इसे बाद में निरस्त कर दिया गया. इस मामले में कई सवाल उठते हैं. जैसे कि बिना जांच-पड़ताल के नोटिस कैसे जारी हुआ? ऐसे नोटिस से गरीबों की जिंदगी को बर्बाद करने का जिम्मेदार कौन होगा? क्या शिक्षा विभाग ऐसे मामलों में सुधार करेगा?
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गांव के वर्तमान शिक्षक की प्रतिक्रिया
इस मामले पर बात करते हुए नव्वा पुरवा विद्यालय के वर्तमान शिक्षक जनार्दन यादव ने बताया, कि 'मैं 2020 के बाद यहां आया हूं. फर्जी शिक्षक के बारे में मुझे कोई जानकारी नहीं है. यह मामला मैंने पेपर में पढ़ा है.'
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