बाढ़ हो, सुखा हो, ओलावृष्टि हो या फिर किसी अन्य तरह की मौसम की मार, इसका सबसे ज्यादा प्रभाव खेती किसानी पर पड़ता है. लेकिन इस बार मौसम के बदलते मिजाज नें किसानों के माथे पर चिंता की लकीरे ला दी हैं. अभी फरवरी का अंतिम सप्ताह ही चल रहा है और सूरज आग उगलने लगा है.
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आलम यह है कि तापमान 30 से 35 डिग्री के बीच तक पहुंच चुका है और मौसम विभाग की मानें तो आने वाले दिनों में तापमान में और भी ज्यादा बढ़ोत्तरी की आशंका जताई जा रही है. ऐसे में बढ़े हुए टेंपरेचर का सबसे ज्यादा असर खेती-किसानी पर पड़ने की आशंका ने अन्नदाताओं के माथे पर चिंता की लकीरें ला दी हैं. कृषि वैज्ञानिक इस बढ़े हुए तापमान का असर गेहूं के साथ-साथ दलहन और तिलहन की फसलों पर भी पड़ने की बात कर रहे हैं.
धान का कटोरा कहे जाने वाले पूर्वी उत्तर प्रदेश के चंदौली के खेतों में गेहूं-सरसों-चना-अलसी और अरहर की फसलें लहलहा रही हैं, लेकिन इसके साथ ही आसमान से सूरज आग उगल रहा है. फरवरी के आखिरी सप्ताह में इस तरह की गर्मी पड़ने लगी है. जैसे मार्च और अप्रैल के महीने में पड़ती है. पारा लगातार बढ़ता ही जा रहा है और भी बढ़ते हुए पारे ने किसानों की चिंता बढ़ा दी है.
दरअसल, ज्यादा टेंपरेचर होने से गेहूं के साथ-साथ दलहन और तिलहन की फसलों को भी नुकसान पहुंचने की आशंका बढ़ गई है. कृषि विज्ञानियों और किसानों की मानें तो इस बढ़ते हुए टेंपरेचर की वजह से गेहूं के साथ-साथ दलहन और तिलहन की फसलों पर भी कुप्रभाव पड़ेगा. इसकी वजह से पैदावार कम होगी और फसल की क्वालिटी भी खराब होगी. जिसकी वजह से किसानों की आय भी प्रभावित होगी और उनके जीवन पर असर पड़ेगा. किसानों को अब इस बात की चिंता सताने लगी है कि जब उनकी पैदावार कम होगी तो उनका खर्चा कैसे चलेगा बच्चों की पढ़ाई कैसे होगी और शादी विवाह कैसे होगा.
इस साल मौसम के बदलते तेवर को लेकर कृषि वैज्ञानिक भी काफी अचंभित है. कृषि विज्ञानियों का कहना है कि ज्यादा टेंपरेचर होने की वजह से गेहूं के दाने पतले हो जाएंगे. वैज्ञानिकों की मानें तो बड़े हुए टेंपरेचर की वजह से सरसों की उन फसलों को थोड़ा लाभ होगा जो पहले बोई गई थी, लेकिन जिन किसानों ने बाद में सरसों की फसल बोई है, उनके लिए यह काफी नुकसानदायक साबित होगा. साथ ही साथ चना और अन्य दलहन की फसलों पर भी कीड़े लग जाएंगे.
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