कांग्रेस की महिला नेता सुप्रिया श्रीनेत ने कहा कि देश में बढ़ती महंगाई, उच्चतम बेरोजगारी और कुशासन की विफलताओं से जनता का ध्यान हटाने के लिए सरकार द्वारा प्रायोजित विभाजनकारी एजेंडे का दंश झेल रहे देशवासियों के साथ कांग्रेस पार्टी कंधे से कंधा मिला कर खड़ी है.
ADVERTISEMENT
शुक्रवार को लखनऊ में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर सुप्रिया श्रीनेत ने कहा कि एक जिम्मेदार विपक्षी दल होने के नाते हम भाजपाई सत्ता के मित्र पूंजीपतियों को सरकारी खजाने की लूट की खुली छूट और पीएम से संबंधित इस पूरे अडानी महाघोटाले में हो रहे घोटालों से भी चिंतित हैं.
बता दें कि अमेरिका की निवेश शोध कंपनी ‘हिंडनबर्ग रिसर्च’ की 24 जनवरी को जारी रिपोर्ट के बाद से अडाणी समूह को भारी संकट का सामना करना पड़ रहा है. इस रिपोर्ट में लेखांकन धोखाधड़ी और शेयरों में धांधली का आरोप लगाया गया है, लेकिन अडाणी समूह ने इसे ‘दुर्भावनापूर्ण’, ‘आधारहीन’ और ‘भारत पर सुनियोजित हमला’ बताते हुए इससे इनकार किया है.
उन्होंने कहा कि देशवासी जानना चाहते हैं कि कैसे एक संदिग्ध साख वाला समूह, जिस पर टैक्स हैवन देशों से संचालित विदेशी शेल कंपनियों से संबंधों का आरोप है. भारत की संपत्तियों पर एकाधिपत्य स्थापित कर रहा है और इस सब पर सरकारी एजेंसियां या तो कोई कार्यवाही नहीं कर रही हैं.
उन्होंने कहा कि हम जानना चाहते हैं कि मोदी सरकार इस मुद्दे (अडानी) पर जांच के लिए एक संयुक्त संसदीय समिति बनाने से क्यों डर रही है जबकि संसद के दोनों सदनों में उसका अच्छा बहुमत है.
कांग्रेस नेत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री ने कई बार भ्रष्टाचार से लड़ने में अपनी निष्ठा और नीयत की बातें की हैं, लेकिन उनके करीबी मित्र स्पष्ट तौर पर ऐसे अवैध कार्यों में लिप्त रहे हैं, जो आमतौर पर माफिया, आतंकी और शत्रु देश रहते हैं.
उन्होंने आरोप लगाया है कि मोदी जी ने अपने पास उपलब्ध सभी साधनों का इस्तेमाल करके बंदरगाहों के क्षेत्र में भी अडानी का आधिपत्य स्थापित करने में मदद की. सरकारी रियायत वाले बंदरगाह बिना किसी बोली के अडानी समूह को बेच दिए गए हैं और जहां बोली की अनुमति दी गई है, वहां प्रतिस्पर्धी चमत्कारिक रूप से बोली से गायब हो गए हैं.
उन्होंने आगे कहा कि लगता है कि आयकर छापों ने कृष्णपट्टनम बंदरगाह के पूर्व मालिक को उसे अडानी समूह को बेचने के लिए ‘राजी करने’ में मदद की. 2021 में सार्वजनिक क्षेत्र का जवाहरलाल नेहरू पोर्ट ट्रस्ट महाराष्ट्र में दिघी बंदरगाह के लिए अडानी की प्रतिस्पर्धा में बोली लगा रहा था, लेकिन जहाजरानी और वित्तमंत्रालयों द्वारा अचानक इरादा बदलने के बाद उसे अपनी जीती हुई बोली वापस लेने को मजबूर होना पड़ा.
ADVERTISEMENT