उत्तराखंड विधानसभा में मंगलवार को बहुप्रतीक्षित समान नागरिक संहिता (यूसीसी) विधेयक पेश कर दिया गया. यूसीसी विधेयक के लिए बुलाये गए विधानसभा के विशेष सत्र के दूसरे दिन मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने यह विधेयक पेश किया.
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प्रदेश मंत्रिमंडल ने रविवार को यूसीसी मसौदे को स्वीकार करते हुए उसे विधेयक के रूप में सदन के पटल पर रखे जाने की मंजूरी दी थी. इस बीच उत्तराखंड विधानसभा में आए यूसीसी विधेयक पर मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली ने अपनी प्रतिक्रिया दी है.
उन्होंने कहा कि यूसीसी का मतलब होता है कि तमाम कानूनों में यूनिफॉर्मिटी लाना है. क्या इस बिल से तमाम कानूनों में यूनिफॉर्मिटी आ जाएगी? अगर इस बिल से किसी समुदाय को छूट देते हैं तो फिर वो यूनिफॉर्म सिविल कोड कहां रह गया? अपने धर्म को मानने की आजादी सभी लोगों की है. इसको किस तरीके से खत्म किया जा सकता है, मुल्क में शरीयत एप्लीकेशन एक्ट 1937 पहले से ही लागू है और हमारे हिंदू भाइयों के लिए हिंदू मैरिज एक्ट मौजूद है. इन तमाम कानूनों के बाद भी यूनिफॉर्म सिविल कोड की क्या जरूरत पेश आ गई? उन्होंने आगे कहा कि जब इस विधेयक का मौसूदा हमारे सामने आएगा तब हमारी लीगल टीम इसपर तय करेगी कि क्या आगे कार्रवाई करनी है.
बीजेपी ने किया था वादा
यूसीसी पर अधिनियम बनाकर उसे प्रदेश में लागू करना 2022 में हुए विधानसभा चुनावों के दौरान भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) द्वारा जनता से किए गए प्रमुख वादों में से एक था. साल 2000 में अस्तित्व में आए उत्तराखंड में लगातार दूसरी बार जीत दर्ज कर इतिहास रचने के बाद भाजपा ने मार्च 2022 में सत्ता संभालने के साथ ही मंत्रिमंडल की पहली बैठक में यूसीसी का मसौदा तैयार करने के लिए विशेषज्ञ समिति के गठन को मंजूरी दे दी थी.
कानून बनने के बाद उत्तराखंड आजादी के बाद यूसीसी लागू करने वाला देश का पहला राज्य होगा। गोवा में पुर्तगाली शासन के दिनों से ही यूसीसी लागू है. यूसीसी के तहत प्रदेश में सभी नागरिकों के लिए एकसमान विवाह, तलाक, गुजारा भत्ता, जमीन, संपत्ति और उत्तराधिकार के कानून लागू होंगे चाहे वे किसी भी धर्म को मानने वाले हों.
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