28 अगस्त को नोएडा के ट्विन टावर्स होंगे ध्वस्त, क्या इसकी वजह जानते हैं? ये है असल कहानी

आदित्य के. राणा

25 Aug 2022 (अपडेटेड: 14 Feb 2023, 09:01 AM)

हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट से मंजूरी मिलने के बाद बीते कई महीनों से नोएडा स्थित सुपरटेक ग्रुप के प्रोजेक्ट एमराल्ड कोर्ट के 2 निर्माणाधीन टावर्स…

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हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट से मंजूरी मिलने के बाद बीते कई महीनों से नोएडा स्थित सुपरटेक ग्रुप के प्रोजेक्ट एमराल्ड कोर्ट के 2 निर्माणाधीन टावर्स (Twin Towers) को गिराने की तैयारी चल रही है. बायर्स की शिकायत के बाद एपेक्स और सियाने टावर्स को गिराने का आदेश कोर्ट ने दिया है.

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इनका बनना जहां घर खरीदारों के लिए एक बड़ा धोखा था, वहीं इनको गिराने की प्रक्रिया भी कम तकलीफदेह नहीं है. गिराने की प्रक्रिया के दौरान घरों को होने वाले संभावित नुकसान से लेकर विस्फोट से उड़ने वाली धूल तक हर कदम यहां रहने वालों के लिए खौफ के साए में रहने के समान है.

क्यों गिराए जा रहे हैं सुपरटेक ट्विन टावर्स एपेक्स-सियाने?

ये विवाद करीब डेढ़ दशक पुराना है. नोएडा के सेक्टर 93-A में सुपरटेक एमराल्ड कोर्ट (Supertech Twin Towers) के लिए जमीन आवंटन 23 नवंबर 2004 को हुआ था. इस प्रोजेक्ट के लिए नोएडा अथॉरिटी ने सुपरटेक को 84,273 वर्गमीटर जमीन आवंटित की थी. 16 मार्च 2005 को इसकी लीज डीड हुई, लेकिन उस दौरान जमीन की पैमाइश में लापरवाही के कारण कई बार जमीन बढ़ी या घटी हुई भी निकल आती थी.

सुपरटेक एमराल्ड कोर्ट के मामले में भी प्लॉट नंबर 4 पर आवंटित जमीन के पास ही 6.556.61 वर्गमीटर जमीन का टुकड़ा निकल आया जिसकी अतिरिक्त लीज डीड 21 जून 2006 को बिल्डर के नाम कर दी गई. ये दो प्लॉट्स 2006 में नक्शा पास होने के बाद एक प्लॉट बन गया. इस प्लॉट पर सुपरटेक ने एमराल्ड कोर्ट प्रोजेक्ट लॉन्च कर दिया.

इस प्रोजेक्ट में ग्राउंड फ्लोर के अलावा 11 मंजिल के 16 टावर्स बनाने की योजना थी. नक्शे के हिसाब से आज जहां पर 32 मंजिला एपेक्स और सियाने खड़े हैं वहां पर ग्रीन पार्क दिखाया गया था. इसके साथ ही यहां पर एक छोटी इमारत बनाने का भी प्रावधान किया गया था. यहां तक भी सब कुछ ठीकठाक था और 2008-09 में इस प्रोजेक्ट को कंप्लीशन सर्टिफिकेट भी मिल गया.

यूपी शासन के एक फैसले से गहरा गया ट्विन टावर्स का विवाद

लेकिन इसके बाद उत्तर प्रदेश सरकार के एक फैसले से इस प्रोजेक्ट में विवाद की नींव भी पड़ गई. 28 फरवरी 2009 को उत्तर प्रदेश शासन ने नए आवंटियों के लिए एफएआर बढ़ाने का निर्णय लिया. इसके साथ ही पुराने आवंटियों को कुल एफएआर का 33 प्रतिशत तक खरीदने का विकल्प भी दिया गया. एफएआर बढ़ने से अब उसी जमीन पर बिल्डर ज्यादा फ्लैट्स बना सकते थे.

इससे सुपरटेक ग्रुप को यहां से बिल्डिंग की ऊंचाई 24 मंजिल और 73 मीटर तक बढ़ाने की अनुमति मिल गई. यहां तक भी एमराल्ड कोर्ट प्रोजेक्ट के बायर्स ने किसी तरह का विरोध नहीं किया. लेकिन इसके बाद तीसरी बार जब फिर से रिवाइज्ड प्लान में इसकी ऊंचाई 40 और 39 मंजिला करने के साथ ही 121 मीटर तक बढ़ाने की अनुमति मिली तो फिर होम बायर्स का सब्र टूट गया.

बिल्डर-अथॉरिटी ने बायर्स को नहीं दिया नक्शा

RWA ने बिल्डर से बात करके नक्शा दिखाने की मांग की. लेकिन बायर्स के मांगने के बावजूद बिल्डर ने लोगों को नक्शा नहीं दिखाया. तब RWA ने नोएडा अथॉरिटी से नक्शा देने की मांग की. यहां भी घर खरीदारों को कोई मदद नहीं मिली.

एपेक्स और सियाने को गिराने की इस लंबी लड़ाई में शामिल रहे प्रोजेक्ट के निवासी यू बी एस तेवतिया का कहना है कि नोएडा अथॉरिटी ने बिल्डर के साथ मिलिभगत करके ही इन टावर्स के निर्माण को मंजूरी दी है. उनका आरोप है कि नोएडा अथॉरिटी ने नक्शा मांगने पर कहा कि वो बिल्डर से पूछकर नक्शा दिखाएगी. जबकि बिल्डिंग बायलॉज के मुताबिक किसी भी निर्माण की जगह पर नक्शा लगा होना अनिवार्य है. इसके बावजूद बायर्स को प्रोजेक्ट का नक्शा नहीं दिखाया गया. बायर्स का विरोध बढ़ने के बाद सुपरटेक ने इसे अलग प्रोजेक्ट बताया.

2012 में हाई कोर्ट पहुंचा ट्विन टावर्स का मामला

किसी तरह का रास्ता दिखाई ना देने के बाद 2012 में बायर्स ने इलाहाबाद हाईकोर्ट का रुख किया. कोर्ट के आदेश पर पुलिस जांच के आदेश दिए गए और पुलिस जांच में बायर्स की बात को सही बताया गया. तेवतिया का कहना है कि इस जांच रिपोर्ट को भी दबा दिया गया.

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इस बीच बायर्स अथॉरिटी के चक्कर लगाते रहे लेकिन वहां से नक्शा नहीं मिला. इस बीच खानापूर्ति के लिए अथॉरिटी ने बिल्डर को नोटिस तो जारी किया लेकिन कभी भी बिल्डर या अथॉरिटी की तरफ से बायर्स को नक्शा नहीं मिला.

ट्विन टावर्स क्यों बने एमराल्ड कोर्ट के निवासियों के लिए खतरा?

बायर्स का आरोप है कि इन टावर्स को बनाने में नियमों को ताक पर रखा गया है. सोसायटी के निवासी यूबीएस तेवतिया का कहना है कि टावर्स की ऊंचाई बढ़ने पर दो टावर के बीच का अंतर बढ़ाया जाता है. खुद फायर ऑफिसर ने कहा कि एमराल्ड कोर्ट से एपेक्स या सियाने की न्यूनतम दूरी 16 मीटर होनी चाहिए. लेकिन एमराल्ड कोर्ट के टावर से इसकी दूरी महज 9 मीटर थी. इस नियम के उल्लंघन पर नोएडा अथॉरिटी ने फायर ऑफिसर को कोई जवाब नहीं दिया. 16 मीटर की दूरी का नियम इसलिए जरुरी है क्योंकि ऊंचे टावर के बराबर में होने से हवा, धूप रुक जाती है. इसके साथ ही आग लगने की दशा में दो टावर्स में कम दूरी होने से आग फैलने का खतरा बढ़ जाएगा.

निवासियों का आरोप है कि नए नक्शे में इन बातों का ख्याल नहीं रखा गया. तेवतिया का कहना है कि बिल्डर ने IIT रुड़की के एक असिस्टेंट प्रोफेसर से निजी मंजूरी लेकर निर्माण कार्य शुरू करा दिया. जबकि इस तरह के प्रोजेक्ट में IIT की आधिकारिक मंजूरी आवश्यक है जिसका यहां पर पालन नहीं किया गया.

कोर्ट में मामला जाते ही तेजी से बनने लगे ट्विन टावर

नोएडा समेत देशभर में कितने ही ऐसे प्रोजेक्ट्स हैं जहां बरसों बरस बीत जाने के बाद भी काम पूरा नहीं किया जा सका है. खुद सुपरटेक के कई प्रोजेक्ट्स ऐसे में हैं जहां पर टावर के चंद फ्लोर ही कई साल में बन पाए हैं. लेकिन एपेक्स और सियाने के मामले में कुछ अलग ही देखने को मिला. 2012 में ये मामला जब इलाहाबाद हाई कोर्ट में पहुंचा तो एपेक्स और सियाने की महज 13 मंजिलें बनी थीं लेकिन डेढ़ साल के अंदर ही सुपरटेक ने 32 स्टोरीज़ का निर्माण पूरा कर दिया. इसके लिए रात दिन यहां पर काम करने का आरोप भी सोसायटी के निवासी लगा रहे हैं.

2014 में हाईकोर्ट ने इन्हें गिराने का आदेश दिया तब जाकर 32 मंजिल पर ही काम रुक गया. काम ना रुकने के मामले में ये टावर्स 40 और 39 मंजिल तक बनाए जाने थे. वहीं अगर ये टावर दूसरे रिवाइज्ड प्लान के मुताबिक 24 मंजिल तक रुक जाते तो भी ये मामला सुलझ जाता क्योंकि ऊंचाई के हिसाब से दो टावर्स के बीच की दूरी का नियम टूटने से बच जाता.

एमेरेल्ड कोर्ट के निवासियों ने लड़ी लंबी लड़ाई

इन टावर्स को गिराने में एमराल्ड कोर्ट के निवासियों खासकर वरिष्ठ नागरिकों ने कड़ी मेहनत की है. इन्होंने महीनों तक कोर्ट के चक्कर लगाए हैं. अपने खर्च पर नोएडा से इलाहाबाद आना जाना लगातार जारी रहा है.

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अब ये लंबी लड़ाई 28 अगस्त को अंजाम की ओर बढ़ रही है तो भी कई तरह की शंकाएं बरकरार हैं. पहले तो 6 महीने से यहां का मुख्य रास्ता ही बंद पड़ा है. इसे टावर गिराने की तैयारियों के चलते बंद किया गया है. अब जब यहां से 4 हज़ार किलो एमिशन निकलेगा तो फिर धूल फैलने और अस्थमा होने और दमे के मरीजों की मुश्किल बढ़ने का डर है.

ट्विन टावर गिराने में कितने करोड़ का नुकसान?

ट्विन टावर्स को गिराने में करीब 17.55 करोड रुपए का खर्च आने का अनुमान है. ये खर्च भी सुपरटेक को उठाना होगा. लेकिन इसके पहले कुल 950 फ्लैट्स के इन 2 टावर्स को बनाने में ही सुपरटेक 200 से 300 करोड़ रुपए खर्च कर चुकी है. गिराने का आदेश जारी होने से पहले इन फ्लैट्स की मार्केट वैल्यू बढ़कर 700 से 800 करोड़ तक पहुंच चुकी थी. ये वैल्यू तब है जबकि विवाद बढ़ने से इनकी वैल्यू घट चुकी थी.

रियल एस्टेट के जानकारों का मानना है कि इस इलाके में 10 हज़ार रुपए प्रति वर्ग फीट का रेट है. इस हिसाब से बिना किसी विवाद के इन टावर्स की बाज़ार कीमत 1000 करोड़ के पार निकल गई होती.

सुपरटेक ने इस नुकसान से बचने की भरसक कोशिश की थी. कोर्ट में तमाम तरह की दलीलें दी थीं जिसमें एक टावर गिराकर वहां दूसरे को खड़े रहने का विकल्प भी सुझाया था. अब ये टावर जमींदोज़ हो जाएंगे और ये धोखाधड़ी करने वाले डेवलपर्स के लिए एक सख्त संदेश होगा. हालांकि बायर्स का कहना है कि इस खेल में शामिल नोएडा अथॉरिटी के संबंधित अधिकारियों को भी सबक मिलना चाहिए था.

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