क्या है पूजा स्थल कानून 1991? जिसे आधार बनाकर मस्जिद कमेटी ने ज्ञानवापी के तहखाने में पूजा पर रोक लगाने की मांग की

आनंद कुमार

04 Feb 2024 (अपडेटेड: 04 Feb 2024, 05:45 PM)

ASI सर्वे की रिपोर्ट आने के बाद वाराणसी की अदालत ने 31 जनवरी को दिए अपने आदेश में हिंदू श्रद्धालुओं को ज्ञानवापी मस्जिद परिसर स्थित तहखाना में पूजा अर्चना करने की अनुमति दी. इलाहाबाद हाई कोर्ट में मस्जिद कमेटी ने पूजा स्थल कानून 1991 का हवाला देते हुए जिला जज के फैसले को चुनौती दी है. आइए जानते हैं क्या है पूजा स्थल कानून 1991?

ज्ञानवापी के व्यास तहखाने में पूजा शुरू

ज्ञानवापी के व्यास तहखाने में पूजा शुरू

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पिछले दिनों वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद परिसर को लेकर ASI सर्वे की रिपोर्ट सामने आई. हिंदू पक्ष के वकील विष्णु शंकर जैन ने दावा किया कि ASI रिपोर्ट इस बात की तस्दीक कर रही है कि ज्ञानवापी मस्जिद वहां पहले से मौजूद एक पुराने मंदिर के अवशेषों पर बनाई गई थी. 

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वहीं, ASI सर्वे की रिपोर्ट आने के बाद वाराणसी की अदालत ने 31 जनवरी को दिए अपने आदेश में हिंदू श्रद्धालुओं को ज्ञानवापी मस्जिद परिसर स्थित तहखाना में पूजा अर्चना करने की अनुमति दी. वाराणसी अदालत के इस फैसले के खिलाफ ज्ञानवापी मस्जिद का प्रबंधन करने वाली अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद कमेटी इलाहाबाद हाई कोर्ट पहुंच गई. इलाहाबाद हाई कोर्ट में मस्जिद कमेटी ने पूजा स्थल कानून 1991 का हवाला देते हुए जिला जज के फैसले को चुनौती दी है. मस्जिद कमेटी ने वाराणसी की अदालत के फैसले के खिलाफ दाखिल अपील में दलील दी गई है कि यह वाद स्वयं में पूजा स्थल अधिनियम, 1991 के तहत पोषणीय नहीं है.

क्या है पूजा स्थल कानून 1991?

पूजा स्थल अधिनियम 1991 कहता है कि अयोध्या के राम मंदिर और बाबरी मस्जिद विवाद को छोड़कर देश के दूसरे धार्मिक स्थल या पूजा स्थल 15 अगस्त 1947 को यानी भारत को आजादी मिलने पर जिस रूप में थे, उसी रूप में रहेंगे. यानी यथास्थिति बहाल रहेगी. 

इस कानून का संक्षिप्त नाम उपासना स्थल (विशेष उपबंद अधिनियम) 1991 है. इसका विस्तार जम्मू-कश्मीर राज्य के अलावा संपूर्ण भारत में है. 11 जुलाई 1991 से यह अधिनियम लागू माना गया है वहीं अधिनियम के धारा 3,6 और 8 के उपबंध तुरंत प्रवृत्त होंगे. एक्ट में ये बताया गया है कि उपासना स्थल यानी कोई मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा, गिरिजाघर, मठ या किसी धार्मिक संप्रदाय या उसके अनुभाग चाहे वो किसी भी नाम से ज्ञात हो अथवा लोक धार्मिक उपासना का कोई भी स्थल हो सकता है.

एक्ट के मुताबिक ”कोई भी व्यक्ति किसी धार्मिक संप्रदाय या उसके अनुभाग के किसी भी उपासना स्थल का उसी धार्मिक संप्रदाय के भिन्न अनुभाग के या किसी भिन्न धार्मिक संप्रदाय या उसके किसी अनुभाग के उपासना स्थल में संपरिवर्तन नहीं करेगा.” एक्ट के मुताबिक 15 अगस्त 1947 को विद्यमान उपासना स्थल का धार्मिक स्वरूप वैसा ही बना रहेगा जैसा वह उस दिन विद्यमान था.

हालांकि एक्ट में ये भी कहा गया है कि ऐसे किसी धार्मिक स्थल के स्वरूप में 15 अगस्त 1947 के बाद संपरिवर्तन हुआ है. ऐसे में इसपर फाइल किया गया कोई वाद, अपील या कार्यवाही उपशमित नहीं होगी. यानी ऐसे प्रत्येक वाद, अपील या कार्यवाही का निपटारा उपधारा (1) के उपबंधों के अनुसार किया जाएगा. एक्ट में ये भी कहा गया है कि इस अधिनियम की कोई भी बात उत्तर प्रदेश राज्य के अयोध्या में स्थित राम जन्मभूमि-बाबारी मस्जिद के रूप में लागू नहीं होगी. (सोर्स : उपासना स्थल (विशेष उपबंध) अधिनियम, 1991)

कब आया था यह कानून?

यह कानून उस वक्त आया था, जब देश में अयोध्या के राम मंदिर के लिए आंदोलन चरम पर था. ऐसा अंदेशा था कि दूसरे धार्मिक स्थलों को लेकर विवाद खड़ा हो सकता है और इससे सामाजिक समरसता खतरे में पड़ेगी. इसलिए केंद्र की तत्कालीन नरसिम्हा राव सरकार यह खास कानून लेकर आई थी. बता दें कि इस कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती मिली हुई है.
 

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