यूं तो बकरीद पर मुस्लिम समाज में बकरे की कुर्बानी का रिवाज है. बकरे की कुर्बानी के साथ इस त्यौहार को मनाया जाता है. पर आगरा का एक मुस्लिम परिवार पिछले 5 सालों से बकरे की कुर्बानी से परहेज कर रहा है. ये परिवार न सिर्फ खुद कुर्बानी नहीं दे रहा बल्कि दूसरों को भी ये करने से मना कर रहा है. मुस्लिम समाज के लोगों से बकरे की जान बचाने की अपील कर रहा है. अब सवाल ये उठता है कि यदि ये परिवार बकरे की कुर्बानी नहीं दे रहा फिर बकरीद को सेलिब्रेट कैसे कर रहा है?
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शाहगंज के रहने वाले गुल चमन शेरवानी का परिवार है. गुल चमन शेरवानी ने पांच साल पहले कुर्बानी के लिए एक बकरा पाला हुआ था. बकरा बड़ा हुआ और कुर्बानी का दिन आया तो उनका दिल पसीज गया. गुल चमन ने उसी समय फैसला किया कि अब वह कभी ईद पर बकरा नहीं काटेंगे.
उन्होंने तय किया कि बकरे की कुर्बानी देने की जगह बकरे के फोटो वाला केक काटेंगे. तब से आज तक गुल चमन शेरवानी और उनके परिवार ने बकरे की कुर्बानी नहीं दी है. गुलचमन पिछले 5 साल से बकरीद के त्यौहार पर अपने बच्चों के साथ बकरे का फोटो लगा केक काटते हैं और बकरीद का त्यौहार मनाते हैं.
पशु भी किसी की संतान हैं- गुल चमन
गुल चमन शेरवानी का कहना है कि पशु भी किसी की संतान हैं. इसलिए वे बकरों की कुर्बानी नहीं देना चाहते. वे अपने रिश्तेदारों को भी बकरा ईद पर बकरे की कुर्बानी ना देने की सलाह भी देते हैं. गुल चमन की इस पहल को मुस्लिम समाज में भी सराहना मिल रही है.
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