UP Political News: लोकसभा चुनाव 2024 की तारीखों का ऐलान हो गया है. उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव के सभी सात चरणों के तहत मतदान होगा, जो 19 अप्रैल से शुरू होकर एक जून को समाप्त होगा. इस बीच सियासी दल अपनी-अपनी प्लानिंग में जुट गए हैं. सबकी नजरें 80 लोकसभा वाले राज्य उत्तर प्रदेश पर हैं. एक कहावत काफी प्रचलित है कि दिल्ली का रास्ता यूपी से होते हुए जाता है. इसका मतलब साफ है कि अगर किसी भी सियासी दल को केंद्र में सत्ता हासिल करनी है, तो उसे यूपी में ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतनी होंगी.
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यूपी में फिलहाल भाजपा के नेतृत्व वाले NDA, सपा के नेतृत्व वाले INDIA और मायावती की पार्टी बसपा के बीच त्रिकोणीय मुकाबला है. वहीं, यूपी की हाई प्रोफाइल सीटों में सीक आजमगढ़ के लिए सपा ने अपने प्रत्याशी का ऐलान कर दिया है. पार्टी ने आजमगढ़ से फिर एक बार धर्मेंद्र यादव पर दांव लगाया है, जो यहां से बीता उपचुनाव हार गए थे.
आजमगढ़ हुआ था करता था सपा का गढ़, पर भाजपा ने लगाई सेंध
आपको बता दें कि आजमगढ़ लोकसभा सीट सपा का गढ़ हुआ करती थी. 2019 में अखिलेश यहां से संसद चुने गए थे. मगर 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में करहल से विधायक बनने के बाद अखिलेश ने संसद की सदस्य्ता से इस्तीफा दिया था. इसके बाद हुए उपचुनाव में भाजपा ने सपा के गढ़ में सेंध लगाई और भोजपुरी सुपरस्टार दिनेश लाल यादव उर्फ निरहुआ यहां से सांसद बने. निरहुआ ने अखिलेश के चचेर भाई धर्मेंद्र यादव को चुनाव हराया.
कौन बना था धर्मेंद्र की हार का कारण?
आजमगढ़ उपचुनाव में तब यह कहा गया कि सपा की हार की वजह बसपा प्रत्याशी गुड्डू जमाली बने थे. दरअसल, गुड्डू जमाली के लड़ने से मुस्लिम वोटों का बंटवारा हुआ था, जिसका फायदा निरहुआ को मिला था. तब सियासी जानकारों ने यही कहा था कि मुस्लिम वोटों के बंटवारे की वजह से धर्मेंद्र उपचुनाव हार गए थे.
आजमगढ़ जीतने के लिए अखिलेश ने किया ये बड़ा काम
बता दें कि अब अखिलेश ने बसपा नेता गुड्डू जमाली को अपनी पार्टी में शामिल कर लिया है और साथ ही उन्हें एमएलसी पद भी दिया है. ऐसा करने से सपा का M-Y (मुस्लिम-यादव) समीकरण यहां फिर से मजबूत हो सकता है. इसी आधार पर सियासी गलियारों में यह चर्चा है कि अखिलेश यादव ने आजमगढ़ का अपना किला वापस लेने के लिए इस बार मजबूत प्लानिंग कर ली है.
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