नाग पंचमी: प्रयागराज के इन 2 मंंदिरों में पूजन करने से कालसर्प दोषों से मिलती है मुक्ति

पंकज श्रीवास्तव

• 04:44 PM • 01 Aug 2022

हर साल सावन महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को नाग पंचमी (Nag Panchami 2022) का त्योहार मनाया जाता है. इस साल 2 अगस्त…

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हर साल सावन महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को नाग पंचमी (Nag Panchami 2022) का त्योहार मनाया जाता है. इस साल 2 अगस्त को नाग पंचमी है. नाग पंचमी के मौके पर भगवान शिव का आभूषण माने जाने वाले नागों की विधिवत पूजा की जाती है.

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नाग पंचमी पर नागों की पूजा के अलावा भगवान शिव और माता पार्वती की भी पूजा की जाती है. नाग पंचमी पर विशेष तौर पर कालसर्प दोष दूर करने के लिए नाग देवता की पूजा की जाती है. देश के प्रसिद्ध नाग देवता मंदिरों में यूपी के प्रयागराज के भी दो मंदिर शामिल हैं. आइए प्रयागराज के इन दोनों मंदिरों के बारे में जानते हैं.

नाग वासुकी मंदिर

प्रयागराज में नागों के राजा का नाग वासुकी मंदिर का अनोखा मंदिर है, जहां मान्यता है कि कालसर्प दोष से मुक्ति मिलती है. श्रावण मास में शिवालयों की तरह नाग वासुकी मंदिर में रुद्राभिषेक, महाभिषेक और कालसर्प दोष की शांति का अनुष्ठान चलता है.

नाग वासुकी मंदिर दारागंज इलाके में स्थित है. यहां श्रद्धालु हजारों की संख्या में आते हैं. गंगा किनारे बने नाग वासुकी मंदिर में कालसर्प दोष और अन्य तरह के अनुष्ठान होते हैं और ऐसी मान्यता है कि लोगों की मनोकामना पूरी होती है.

कहा जाता है कि नाग देवता अभी भी यहां दूध पीने आते हैं और यहां नागपंचमी का भव्य मेला लगता है. नाग वासुकी मंदिर प्रयाग के परिक्रमा क्षेत्र में है. यह मंदिर त्रिकोणीय व पंचकोसी परिक्रमा के अंतर्गत आता है. बिना नाग वासुकी गए प्रयाग की कोई भी परिक्रमा पूरी नहीं होती.

प्रयाग में सात प्रमुख तीर्थो में नाग वासुकी मंदिर भी शामिल है. सात तीर्थो में त्रिवेणी यानी संगम, वेणी माधव, सोमेश्वर महादेव, भारद्वाज आश्रम, नाग वासुकी, अक्षयवट और शेषनाग का मंदिर है.

तक्षकेश्वर नाथ मंदिर

प्रयागराज के यमुना किनारे तक्षकेश्वर नाथ मंदिर विश्व का एकलौता तक्षक तीर्थ स्थल है. वर्तमान में यह स्थान दरियाबाद इलाके में आता है. यह स्थल आदिकाल से संरक्षित है और यहां शेषनाग के अवशेष आज भी मौजूद हैं.

यह यमुना तट पर विशाल घने जंगलों में स्थापित शिवलिंग था. हालांकि, भौतिकवाद में यहां अब जंगल का अस्तित्व खत्म हो गया है. प्रयागराज में इस स्थल को ‘बड़ा शिवाला’ के नाम से ख्याति प्राप्त है. इस शिवलिंग की प्राचीनता और पौराणिकता खुद पुराणों में दर्ज बताया जाता है.

पद्म पुराण के 82 पाताल खंड के प्रयाग महातम्य में 82वें अध्याय में तक्षकेश्वर नाथ का जिक्र मिलता है. मान्यता है कि इस मंदिर में भगवान शिव का जो भी दर्शन कर लेता है, उसे उसके वंशजों को कभी सर्प नहीं डसता है. यानी वह सर्प विष बाधा से मुक्त हो जाता है.

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