Banda News: यूपी के बांदा का शजर पत्थर किसी पहचान का मोहताज नहीं है. शजर ने अपनी सौंदर्यता से देश क्या विदेशों तक अपनी अलग पहचान बनाई है. इस कारण केंद्र और राज्य सरकार ने इसे एक जिला एक उत्पाद का प्रोडक्ट बना दिया है, जिससे इसमें काम करने वाले हस्त शिल्पियों का रोजगार बढ़ गया है. बांदा में भी सैकड़ों लोग शजर पत्थर में अपनी हाथ की सफाई कर उसकी चमक बिखेर रहे हैं. हाल ही में CM योगी ने इसे GI टैग प्रमाण पत्र भी दिया है, जिससे कारीगरों और कारोबारियों में खुशी है. अब उन्हें आशा है कि आने वाले दिनों में इसकी डिमांड बढ़ेगी और डुप्लीकेसी में भी सुधार आएगा.
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सिर्फ केन नदी में ही पाया जाता है शजर पत्थर
कहते हैं शजर पत्थर सिर्फ बांदा की ‘जीवनदायिनी’ केन नदी में ही पाया जाता है. शजर की चमक बिखेरने वाले हस्त शिल्पी बताते हैं कि यह पत्थर प्राकृतिक सौंदर्यता से परिपूर्ण है. कहा जाता है कि अगर पेड़ की पत्तियां दो शजर के बीच दब गईं, तो उसकी डिजाइन पत्थर में ढल जाती है. जिसकी सौंदर्यता देखते ही बनती है.
आपको यह भी बता दें कि हर पत्थर शजर नहीं होता. पत्थर मिलने के बाद कारीगर मशीनों के माध्यम से उसकी कटाई-छटाई करते हैं. फिर उसमें डिजाइन की पहचान होती है. पहचान के बाद उसकी चमक को उभारा जाता है. बताते हैं कि ज्यादातर पेड़-पौधों की आकृतियां होती हैं.
यहां होता है शजर का उपयोग
शजर का उपयोग ज्यादातर ज्वेलरी में होता है. इसमें अंगूठी, हार, लॉकेट आदि बनाए जाते हैं. इसकी मांग मुस्लिम देशों में ज्यादा है. इसे मुस्लिम शुभ मानते हैं. बांदा का शजर देश विदेशों तक अपनी पहचान बनाए हुए है.
केंद्र और राज्य सरकार ने हस्त शिल्पी का कार्य देख इसे एक जिला एक उत्पाद का प्रोडक्ट बनाया था, जिसके बाद इसकी मांग बढ़ गई. लोगों को रोजगार मिल गया. और अब GI टैग देने के बाद हस्त शिल्पियों में खुशी है. बांदा के शजर पत्थर कारोबारी द्वारिका प्रसाद सोनी ने बताया कि ‘शजर को GI टैग मिलने से विश्वसनीयता बढ़ेगी. मांग बढ़ेगी. लोगों को प्रशिक्षण देकर रोजगार के लिए प्रेरित किया जा रहा है.’
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