लोक आस्था के महापर्व छठ के चार दिवसीय अनुष्ठान का आज तीसरा दिन है. छठव्रतियों ने रविवार को शाम के समय अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया. वहीं वाराणसी में भी छठ महापर्व के अवसर पर गंगा में श्रद्धालुओं ने भगवान सूर्य को अर्घ्य दिया और डूबते हुए सूरज की पूजा की. सूर्य जिन्हें आदित्य भी कहा जाता है, वास्तव में एक मात्र प्रत्यक्ष देवता हैं. इनकी रोशनी से ही प्रकृति में जीवन चक्र चलता है। इनकी किरणों से ही धरती में प्राण का संचार होता है. सूर्य षष्टी या छठ व्रत इन्हीं आदित्य सूर्य भगवान को समर्पित है.
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इस महापर्व में सूर्य नारायण के साथ देवी षष्टी की पूजा भी होती है. काशी के पावन घाटों पर इस पर्व पर लाखों श्रद्धालुओं का जन सैलाब उमड़ा. मन में यही श्रद्धा होती है कि भगवान भास्कर और छठी मैया मन की मुरादे पूरी करें.
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष के षष्ठी के दिन अस्त होते हए सूर्य को अर्घ्य देने के लिए गंगा की गोद में इंतज़ार करती इन महिलाओं की यही कामना है कि अगले दिन सूर्य जब निकलेंगे तो एक नए तेज आएगा. जिसकी रौशनी इनके घर को खुशियों से भर देगी. इस पर्व में जल और सूर्य की महत्ता है. जिसके बिना जीवन की कल्पना नही की जा सकती. दोपहर होते ही काशी के गंगा तटों पर छठी मैया के भक्तो का जनसैलाब उमड़ पड़ा. कंधो में टोकरियां लिए ये भक्त गंगा किनारे सूर्य को अर्घ्य देने के लिए बड़े चल रहे थें. कोई ढोल नगाडो के साथ तो कोई सामान्य तरीके से पूजा कर रहा था, लेकिन सबकी एक ही कामना हैं की छठी मैया उनके परिवार की सलामती बनाये रखे.
वाराणसी के दशाश्वमेध घाट भी हजारों से अटा पड़ा रहा, जबकि सभी 84 घाटों पर लाखों की संख्या में व्रती महिलाएं और श्रद्धालु उमड़े रहें.
वहीं इस साल 4 बार आई बाढ़ की वजह से बढ़े जलस्तर और फिर उसके पीछे मिट्टी और गाद को साफ करके सुगम आवागमन और क्राउड मैनेजमेंट की व्यवस्था पुलिस के लिए किसी चुनौती से कम नहीं थी. लेकिन वाराणसी पुलिस कमिश्नरेट ने सभी चुनौतियों को लेते हुए सारी व्यवस्थाओं को दुरुस्त कराया.
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