ज्ञानवापी: BHU के प्रोफेसर का दावा- ‘मस्जिद के वजूखाने में मिला शिवलिंग नंदीकेश्वर का है’

रोशन जायसवाल

• 06:58 AM • 24 May 2022

वाराणसी स्थित ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के वजूखाने में मिली एक आकृति को लेकर बहस छिड़ गई है. एक तरफ हिंदू पक्ष का दावा है कि…

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वाराणसी स्थित ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के वजूखाने में मिली एक आकृति को लेकर बहस छिड़ गई है. एक तरफ हिंदू पक्ष का दावा है कि यह शिवलिंग है. वहीं, दूसरी तरफ हिंदू पक्ष के दावे को नकारते हुए मुस्लिम पक्ष इस आकृति को फव्वारा बता रहा है. बता दें कि बीते दिनों ज्ञानवापी-विश्वनाथ मंदिर मामले में मंदिर पक्ष से वादमित्र विजय शंकर रस्तोगी ने वजूखाने के पत्थर को तारकेश्वर महादेव होने का दावा किया था, तो अब BHU के संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान के प्रोफेसर माधव जनार्दन रटाटे ने वजूखाने में मिली आकृति को नंदीकेश्वर शिवलिंग होने का दावा किया है.

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BHU के संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय के प्रोफेसर ने यूपी तक से बातचीत में कहा,

“वजूखाने में दिख रही आकृति शिवलिंग ही है. इसमें कोई संदेश नहीं है. अब यह कौन सा शिवलिंग हो सकता है, यह सवाल है? इस शिवलिंग को काशी विशेश्वर का पुराना शिवलिंग मानने में इसलिए दिक्कत हो रही है, क्योंकि ऐसा सुना जाता है कि उस शिवलिंग को लेकर कोई पुजारी ज्ञानवापी में कूद गया था और इतना बड़ा शिवलिंग काशी विशेश्वर का नारायण भट्ट ने स्थापित कराया हो, यह मानने में भी कठिनाई आती है.”

माधव जनार्दन रटाटे

उन्होंने आगे कहा, “दूसरी यह भी संभावना हो सकती है कि यह शिवलिंग अविमुक्तेश्वर का हो, लेकिन तीसरी प्रबल संभावना नंदीकेश्वर की है. क्योंकि काशी खंड में ज्ञानवापी से ठीक उत्तर की ओर नंदी नाम के गण का स्थान बताया गया है और उनके द्वारा स्थापित नंदीकेश्वर का भी जिक्र है. काशी खंड के अलावा कृत्य कल्पतरू में भी इस बात का जिक्र है कि ज्ञानवापी के समीप जिस बड़े नंदी की स्थापना नेपाल नरेश ने की थी, उसके ठीक बगल में ज्ञानवापी है और ज्ञानवापी से ठीक उत्तर में यह शिवलिंग मिला है. इसलिए निश्चित रूप से वजूखाने में मिला शिवलिंग नंदीकेश्वर का ही होना चाहिए. चूंकि नंदी बहुत सामर्थ्यशाली थे और खुद शिव को उठाते थे, तो इतने बड़े शिवलिंग की स्थापना नंदी ने की होगी.”

माधव जनार्दन रटाटे के अनुसार, “काशी खंड के श्लोक में भी यह बताया गया है कि ज्ञानवापी से उत्तर की दिशा में नंदीकेश्वर का लिंग था और यही बात कृत्य कल्पतरू में भी कही गई है. कुबेर नाथ शुक्ल की किताब में भी शिवलिंग के लुप्त होने की बात का जिक्र मिलता है, लेकिन वे आज हमको मिल चुके हैं.”

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