हाल ही में बहुजन समाज पार्टी सुप्रीमो (Bahujan Samaj Party) और उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती (Mayawati) ने बसपा के नए प्रदेश अध्यक्ष का ऐलान किया. इस बार बसपा ने ओबीसी जाति से आने वाले विश्वनाथ पाल (Vishwanath Pal) को अपना प्रदेश अध्यक्ष बनाया. बता दें कि विश्वनाथ पाल राम नगरी अयोध्या से आते हैं और वह बसपा के उन नेताओं में शामिल हैं जो बसपा सुप्रीमो मायावती के बेहद करीबी माने जाते हैं. एक समय था जब सभी एक-एक करके मायावती का साथ छोड़ रहे थे. मगर विश्वनाथ पाल ने फिर भी बसपा सुप्रीमो का साथ नहीं छोड़ा.
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विश्वनाथ पाल को मायावती का काफी वफादार माना जाता है. बताया जाता है कि विश्वनाथ पाल को चुनावी दौर में कई पार्टियों ने ऑफर दिए, लेकिन उन्होंने फिर भी बसपा का साथ नहीं छोड़ा. वह अयोध्या मंडल के मुख्य सेक्टर प्रभारी रह चुके हैं. इसी के साथ वह भाईचारा कमेटी में भी रह चुके हैं.
यूपी की राजनीति में अहम है ओबीसी
उत्तर प्रदेश में ओबीसी पर सभी सियासी दल दाव लगाते रहते हैं. माना जाता है कि ओबीसी जिसके साथ चल पड़ता है, सत्ता के सबसे करीब वहीं होता है. दरअसल इसका एक बड़ा कारण है उत्तर प्रदेश में ओबीसी जातियां की संख्या.
उत्तर प्रदेश में ओबीसी की कुल 79 जातियां हैं. यूपी के कुल मतदाताओं में 52 प्रतिशत वोट ओबीसी समाज से आता है. इन 52 प्रतिशत ओबीसी में 43 फीसदी वोट गैर यादव है. यूपी की ओबीसी जातियां में 11 प्रतिशत यादव है, 6 प्रतिशत में कुशवाहा, मौर्य और शाक्य हैं, 4 प्रतिशत सैनी, 7 प्रतिशत लोधी, 7 प्रतिशत कुर्मी पटेल, 3 प्रतिशत में गडरिया और पाल, 4 प्रतिशत में निषाद, मल्लाह, बिंद, कश्यप, केवट, 3 प्रतिशत में चौरसिया और 4 प्रतिशत में तेली, साहू आते हैं. इसी के साथ 2 प्रतिशत में जयसवाल और राजभर और 2 ही प्रतिशत में गुर्जर आथे हैं.
पहले भी बनाए गए ओबीसी प्रदेश अध्यक्ष
आपको बता दें कि यह पहली बार नहीं है जब बहुजन समाज पार्टी की कमान ओबीसी नेता के हाथों में आई हो. इससे पहले भी बसपा ने राम अचल राजभर, आर.एस कुशवाहा को बीएसपी का प्रदेश अध्यक्ष बनाया था. ये ओबीसी वर्ग से आने वाले नेता थे. पाल समाज की बात की जाए तो 1995 में भागवत पाल और 1997 में दशरथ पाल को बहुजन समाज पार्टी ने प्रदेश अध्यक्ष बनाया था. ऐसे में लगभग 2 दशकों के बाद बसपा की कमान एक बार फिर पाल समाज के हाथों में आई है.
ओबीसी वोटों पर निशाना
दरअसल माना जाता है कि दलितों का सीधा वोट बसपा को मिलता है. ऐसे में पार्टी के पास हमेशा से ही एक बड़ा वोट बैंक साथ रहता है. ऐसे में सत्ता प्राप्ती के लिए उसे अन्य वर्ग के वोट बैंक की भी जरूरत रहती है. निकाय चुनाव से पहले ओबीसी नेता को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर मायावती ने बड़ा सियासी दाव खेला है. दलितों के साथ ओबीसी वोटों का जुड़ जाना, उत्तर प्रदेश की राजनीति में निर्णायक साबित होता है. माना जा रहा है कि अपने इस कदम से मायावती ने ओबीसी मतदाताओं को सियासी संदेश देने की कोशिश की है.
निकाय चुनाव में समीकरण बैठाने की कोशिश
उत्तर प्रदेश में निकाय चुनाव करीब हैं. बसपा सभी जगह से निकाय चुनाव में अपने उम्मीदवार मैदान में उतार रही है. ऐसे में अगर ओबीसी का समर्थन बसपा को मिल गया तो निकाय चुनावों के परिणाम बसपा के लिए चौंकाने वाले आ सकते हैं. बसपा को मजबूती मिलती है या नहीं इसका पता जल्द ही पता चल जाएगा. उसी हिसाब से लोकसभा चुनाव की तैयारी की जाएगी.
दरअसल बहुजन समाज पार्टी का मानना है कि अल्पसंख्यकों को अब सिर्फ बसपा दिख रही है, क्योंकि अब अल्पसंख्यक सपा पर विश्वास नहीं करते. बसपा को लगता है कि अब अल्पसंख्यक, बहुजन समाज पार्टी को वोट करेंगे. इसके बाद दलित और ओबीसी का जो समीकरण तैयार होगा उससे बसपा को काफी मजबूती मिलेगी.
निकाय चुनाव से पहले बसपा में बड़ा बदलाव, मायावती ने विश्वनाथ पाल को बनया प्रदेश अध्यक्ष
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