Chaudhary Charan Singh Bharat Ratna: इन दिनों देश भर में ओबीसी के नाम पर खूब सियासत चल रही है. राहुल गांधी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जहां एक तरफ उनकी जाति को लेकर निशाना बना रहे हैं. वहीं पीएम मोदी ने तो लोकसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव के दौरान खुद को पिछड़ा वर्ग से आने वाला नेता बताया था. पश्चिमी उत्तर प्रदेश की सियासत में इन दिनों यही ओबीसी पॉलिटिक्स अपना असर दिखा रही है. यहां जयंत चौधरी का राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) कांग्रेस के नेतृत्व वाले इंडिया ब्लॉक के साथ अपना रिश्ता खत्म कर बीजेपी से रिश्ता जोड़ने वाला है. तो कहानी यहां भी पिछड़ा वर्ग के नाम सियासत की ही चल रही है.
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चरण सिंह की सरकार गिराने को बनाएंगे जयंत कांग्रेस के साथ संबंध खत्म करने की वजह?
जिस समय चौतरफा ओबीसी सियासत चल रही है, उस वक्त जयंत चौधरी देश के पहले ओबीसी प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के साथ कांग्रेस के व्यवहार को मुद्दा बना सकते हैं. 'चौधरी साहब' जयंत चौधरी के दादा थे और उनकी सरकार कांग्रेस की समर्थन वापसी की वज़ह से ही गिरी थी. तब कांग्रेस में राहुल गांधी की दादी इंदिरा गांधी की तूती बोलती थी. इसी पुराने सियासी घटनाक्रम को जयंत कांग्रेस और इंडिया गठबंधन के साथ रिश्ता तोड़ने की एक वजह बना सकते हैं.
गौरतलब है कि 12 फरवरी को जयंत के पिता चौधरी अजीत सिंह की जयंती भी है. इसलिए भाजपा और रालोद के बीच गठबंधन से पहले चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न देने की घोषणा कर दी गई है. चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न देने की घोषणा करते हुए पीएम मोदी ने कहा, "हमारी सरकार का यह सौभाग्य है कि देश के पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह जी को भारत रत्न से सम्मानित किया जा रहा है। यह सम्मान देश के लिए उनके अतुलनीय योगदान को समर्पित है। उन्होंने किसानों के अधिकार और उनके कल्याण के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया था। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे हों या देश के गृहमंत्री और यहां तक कि एक विधायक के रूप में भी, उन्होंने हमेशा राष्ट्र निर्माण को गति प्रदान की। वे आपातकाल के विरोध में भी डटकर खड़े रहे। हमारे किसान भाई-बहनों के लिए उनका समर्पण भाव और इमरजेंसी के दौरान लोकतंत्र के लिए उनकी प्रतिबद्धता पूरे देश को प्रेरित करने वाली है."
लोकसभा चुनावों में जयंत को मिलने वाली दो सीटों में भी ओबीसी फॉर्मूला?
सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, जयंत के गृह जिले बागपत के अलावा भाजपा बिजनौर सीट रालोद के लिए छोड़ने को तैयार है. पिछले चुनावों में बिजनौर की सीट बसपा के मलूक नागर ने भाजपा को हराकर हासिल की थी. ऐसा माना जा रहा है कि इन दिनों मलूक नागर जयंत चौधरी के काफी करीब हैं और बसपा से दूर जा रहे हैं.
आने वाले दिनों में जब भाजपा और रालोद की डील फाइनल हो जाएगी तो मलूक नागर हैंडपंप (रालोद का चुनाव चिह्न) थाम सकते हैं. सियासी गलियारों में ये भी चर्चा है कि मलूक नागर ने भाजपा के साथ जयंत चौधरी की दोस्ती कराने में भी अहम भूमिका निभाई है. मलूक नागर उत्तर प्रदेश से सबसे अमीर सांसद भी हैं. सांसद बनने से पहले वो रियल स्टेट और डेयरी जैसे कारोबार से भी जुड़े रहे हैं. जातिगत हिसाब से देखें तो मलूक नागर एक और बड़ी ओबीसी जाति गुर्जर समुदाय से आते हैं, जिसका पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई इलाकों में अच्छी खासी आबादी है. तो रालोद इसी बहाने दो बड़ी ओबीसी जातियों जाट और गुर्जर को एक प्लेटफॉर्म पर लाने की कोशिश में है और ऐसे में इसका फायदा बीजेपी को भी मिलने के आसार हैं.
क्या ओबीसी के साथ दलित वोटरों को भी साधने की कोशिश करेगा गठबंधन?
भाजपा और रालोद के साथ आने से पश्चिमी उत्तर प्रदेश का जातिगत समीकरण काफी हद तक साधने की तैयारी है. मुस्लिम वोटों के अलावा लगभग सभी बड़े सामाजिक धड़ों को अपने साथ लाने की कवायद है. मगर दलित वोटरों की भी साधने की कवायद आने वाले दिनों में की जा सकती है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अंक गणित कुछ ऐसा है कि मुस्लिम और दलित कुल मिलाकर 50 फीसदी से अधिक हैं. इसलिए एक बार जयंत के साथ रिश्ता जुड़ जाए तो फिर अगला निशाना दलित होंगे.
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