घोसी उपचुनाव बना NDA बनाम I.N.D.I.A का पहला लिटमस टेस्ट, यह समुदाय तय कर सकता है चुनावी नतीजे

कुमार अभिषेक

30 Aug 2023 (अपडेटेड: 30 Aug 2023, 05:50 PM)

घोसी उपचुनाव महज विधानसभा की एक सीट का चुनाव नहीं रहा, बल्कि अब ये एनडीए बनाम इंडिया गठबंधन का लिटमस टेस्ट बन गया है. एक…

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घोसी उपचुनाव महज विधानसभा की एक सीट का चुनाव नहीं रहा, बल्कि अब ये एनडीए बनाम इंडिया गठबंधन का लिटमस टेस्ट बन गया है. एक के खिलाफ एक उम्मीदवार देने की जिस योजना पर इंडिया गठबंधन ने अपनी रणनीति तैयार की है उसका पहला टेस्ट इसी घोसी उपचुनाव में होने जा रहा है.

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बीजेपी ने हाल ही में सपा के विधायक पद से इस्तीफा देकर आए दारा सिंह चौहान को अपना उम्मीदवार बनाया तो सपा ने अपने पुराने धुरंधर चेहरे सुधाकर सिंह पर दांव लगाया है और दोनों का ये चुनाव बिल्कुल आमने-सामने का हो गया है. जैसा कि इंडिया गठबंधन देश के स्तर पर एनडीए को चुनौती देना चाहता है.

अखिलेश यादव ने घोसी की अपनी जनसभा में यह स्पष्ट कर दिया था कि घोसी का यह चुनाव 2024 के लिए संदेश है. अखिलेश के भाषण से ये साफ हो गया कि विपक्ष इसे इंडिया गठबंधन बनाम एनडीए गठबंधन की तरह ही देख रहा है. अखिलेश यादव की सभा मे सभी घटक दलों के झंडे दिखाई दिए, यहां तक कि कांग्रेस पार्टी ने भी अपना समर्थन दे दिया, लेकिन असल सवाल यह है कि घोसी जमीन पर सपा और बीजेपी की लड़ाई कैसी है.

दरअसल, जमीन पर यह लड़ाई बहुत कांटे की होती जा रही है. समाजवादी पार्टी अपने बेस वोट के अलावा दलित और सवर्णों के वोट बैंक में सेंधमारी करती दिख रही है. वहीं, दूसरी तरफ बीजेपी अपने परंपरागत स्वर्ण वोटो से दूर अति पिछड़ी जातियों में जबरदस्त तरीके से पकड़ बनाए हुए हैं और इसकी वजह बीजेपी से कहीं ज्यादा दारा सिंह चौहान, ओमप्रकाश राजभर और संजय निषाद जैसे नेताओं की तिकड़ी हैं, जो नेता तो अपनी जातियों के हैं लेकिन बीजेपी के पोस्टर बॉय बन चुके हैं.

बीजेपी के उम्मीदवार दारा सिंह चौहान ने यूपीतक से खास बातचीत में कहा कि बीजेपी का पूरा वोट बैंक उनके साथ मजबूती से खड़ा है, जबकि राजभर चौहान निषाद के साथ-साथ दलित समुदाय प्रधानमंत्री को और मजबूत करना चाहता है, इसलिए वह समाजवादी पार्टी के फैलाई झूठे भ्रम में नहीं पड़ेगा. ऐसे सभी लोग जिन्हें प्रधानमंत्री की योजनाओं का लाभ मिला है वह सभी उनके साथ मजबूती से खड़े हैं.

समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार सुधाकर सिंह कहते हैं कि उन्हें सभी जाति और बिरादरी का वोट मिल रहा है. यहां तक कि बीजेपी के नेता और समर्थक उनके साथ खड़े हैं. वह भी उन्हें समर्थन कर रहे हैं. हालांकि, सुधाकर सिंह कह रहे हैं कि ये चुनाव घोसी का बेटा और बाहरी के बीच का है.

अब जरा बीजेपी के चुनावी गणित को समझ लीजिए, जितना बेस वोट समाजवादी पार्टी का है यानि यादव और मुसलमानों का वोट उतना ही बीजेपी के साथ खड़ी 3 जातियों के वोट पूरा कर देते हैं और ये वोट बेस है चौहान-राजभर और निषाद-ओमप्रकाश राजभर चुनावी गणित को बड़ी आसानी से समझा देते हैं. 80-85 हजार मुसलमान और 50-55 हजार यादव को जोड़कर सपा का बेस वोट मान भी लें तो भी चौहान-राजभर-निषाद इसके बराबर पंहुच जाते हैं.

घोसी उपचुनाव में जीत और हार का पूरा खेल सवर्ण और दलित मतदाताओं के वोट पर टिका है. माना जा रहा है कि ठाकुर मतदाताओं का स्पष्ट रुझान सपा की तरफ है, क्योंकि सुधाकर सिंह उसी बिरादरी से आते हैं.

वहीं सवर्णों का एक तबका सुधाकर के स्थानीय और जमीनी होने की वजह से उनसे काफी आत्मीय तौर पर जुड़ा है और ये तबका सपा को चुनावी बढ़त दिलाता दिख रहा है, लेकिन चुनाव आते-आते सवर्ण मतदाता खासकर ब्राह्मण- कायस्थ और भूमिहार मतदाताओं के मूड बदलने के आसार हो सकते हैं, क्योंकि बीजेपी ने जातियों के कस्बे-कस्बे गांव-गांव विधायकों और मंत्रियों की फौज उतार दी है.

स्थानीय चुनावी जानकर भी मानते हैं कि चुनाव कांटे का होता जा रहा है, लेकिन चुनाव की असली चाबी दलित मतदाताओं के हाथ हैं. मऊ जिले के वरिष्ठ पत्रकार श्रीराम जयसवाल का मानना है कि सभी पार्टियों के अपने बेस वोट उनके साथ चिपकते जा रहे हैं, लेकिन दलित वोटों का एक बड़ा तबका फिलहाल फ्री है यानी कि उसे मायावती को इस बार वोट नहीं करना क्योंकि उन्होंने उम्मीदवार नहीं उतरा है. ऐसे में यही वोट घोसी के हार और जीत को तय करेगा.

वहीं प्रवीण राय, जो मऊ के वरिष्ठ पत्रकार हैं. उनका मानना है कि चुनाव शुरू होने के साथ जो बढ़त समाजवादी पार्टी को मिली हुई थी खासकर दारा सिंह चौहान के पाला बदलकर भाजपा में आने से उपजी नाराजगी की वजह से वह अब धीरे-धीरे खत्म हो रही है और यह बीजेपी के लिए राहत वाली बात है, क्योंकि तब बीजेपी का अपना वोट बैंक जो फिलहाल दारा सिंह चौहान की वजह से नाराज है वह आखिरी में बीजेपी के साथ आ सकता है.

मुसलमानों के बाद सबसे ज्यादा तादाद दलितों की है, जो बसपा का कोर वोटर माना जाता रहा है, लेकिन इस बार बीएसपी चुनाव मैदान में नहीं है. ऐसे में बसपा के मतदाता फ्री है और दोनों पार्टियों दावा कर रही हैं कि दलितों का अधिकांश वोट उनके पास आ रहा है. तमाम दावों के साथ आपको बता दें कि घोसी में सभी जातियों की अनुमानित संख्या क्या हैं-

घोसी विधानसभा क्षेत्र में एक अनुमान के अनुसार 70 हजार मतदाता अनुसूचित जाति, जिसमें चमार,धोबी,खटीक,पासी,मुसहर आदि हैं. वहीं, 85 हजार मुस्लिम मतदाता, जिसमें सबसे अधिक अंसारी बुनकर हैं. 50 हजार राजभर मतदाता,55 हजार चौहान नोनिया मतदाता हैं. 19 हजार मल्लाह निषाद मतदाता, 15 हजार क्षत्रिय, 14 हजार भूमिहार,7 हजार ब्राम्हण,30 हजार बनिया, जिसमें जायसवाल, शाहू, वैश्य, बरनवाल,उमर वैश्य,स्वर्णकार,आदि मतदाता हैं. 15 हजार कोइरी,5 हजार से अधिक प्रजापति कुम्हार हैं. बहरहाल घोसी का चुनाव तय करेगा कि आने वाले 2024 में आमने-सामने का चुनाव क्या बीजेपी को हराने के प्रयोग में सफल होगा या नहीं.

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