Ramcharitmanas Controversy: रामचरितमानस प्रकरण में समाजवादी पार्टी (सपा) पर हमला करते हुए बहुजन समाज पार्टी (बसपा) प्रमुख मायावती ने शुक्रवार को कहा कि देश में कमजोर एवं उपेक्षित वर्गों का ग्रंथ ‘रामचरितमानस या मनुस्मृति’ नहीं बल्कि ‘भारतीय संविधान’ है. वहीं, अब सपा चीफ अखिलेश यादव ने मायावती के आरोपों का जवाब दिया है. हरदोई पहुंचे अखिलेश ने पत्रकारों से बातचीत में कहा,
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“अरे मेरे पत्रकारी साथी बीजेपी की होशियारी यहां भी नहीं समझ पाए आप. बीजेपी होशियार पार्टी है. वो जो जवाब नहीं देना चाहती, कभी कभी दूसरे दलों को आगे करना चाहती है. जहां तक सवाल संविधान का है, हमने 26 जनवरी को कहा था कि हम समाजवादियों के लिए सबसे बड़ा धर्म अगर कोई है तो हमारा संविधान है.”
अखिलेश यादव
सपा मुखिया ने आगे कहा, “हम इस लोकतंत्र की पूजा करते हैं. संविधान हमें अधिकार देता है, जो छीने जा रहे हैं. संविधान में कहां कहा कि भेदभाव करें हम, संविधान में कहां कहा कि धर्म को ऊंचा-नीचे दिखाएं. हमारे डॉक्टर साहब भीमराव अंबेडकर, राम मनोहर लोहिया ने जो आंदोलन चलाया जो लड़ाई लड़ी क्या उसके तहत हमें अधिकार मिल रहे हैं? बीजेपी वही अधिकार छीन रही है और लोगों को अपमानित कर रही है. ये भाजपा के इशारे पर कई दल समय समय पर बाहर निकल कर आते हैं.”
मायावती ने ट्वीट कर क्या कहा था?
मायावती ने अपने सिलसिलेवार ट्वीट में कहा था, “देश में कमजोर एवं उपेक्षित वर्गों का ग्रंथ रामचरितमानस व मनुस्मृति आदि नहीं बल्कि भारतीय संविधान है, जिसमें बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर ने इनको शूद्रों की नहीं बल्कि एससी, एसटी व ओबीसी की संज्ञा दी है. अतः इन्हें शूद्र कहकर सपा इनका अपमान न करे तथा न ही संविधान की अवहेलना करे.”
बसपा चीफ ने कहा, “इतना ही नहीं, देश के अन्य राज्यों की तरह उप्र में भी दलितों, आदिवासियों व ओबीसी समाज के शोषण, अन्याय, नाइन्साफी तथा इन वर्गों में जन्मे महान संतों, गुरुओं व महापुरुषों आदि की उपेक्षा एवं तिरस्कार के मामले में कांग्रेस, भाजपा व समाजवादी पार्टी भी कोई किसी से कम नहीं.”
उन्होंने कहा, “साथ ही सपा प्रमुख को इनकी वकालत करने से पहले उन्हें लखनऊ स्टेट गेस्ट हाउस के दो जून, 1995 की घटना को भी याद कर अपने गिरेबान में जरूर झांककर देखना चाहिए, जब मुख्यमंत्री बनने जा रही एक दलित की बेटी पर सपा सरकार में जानलेवा हमला कराया गया था.”
मायावती ने आगे कहा कि वैसे भी यह जगजाहिर है कि देश में एससी, एसटी, ओबीसी, मुस्लिम एवं अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों आदि के आत्म-सम्मान एवं स्वाभिमान की क़द्र बसपा में ही हमेशा से निहित और सुरक्षित है, जबकि बाकी पार्टियां इनके वोट के स्वार्थ की खातिर किस्म-किस्म की नाटकबाजी ही ज्यादा करती रहती हैं.
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