समाजवादी पार्टी के संस्थापक और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) अब पंचतत्व में विलीन में हो गए हैं. सोमवार, 10 अक्टूबर को उनका 82 साल की उम्र में निधन हो गया. दशकों तक राजनीतिक दांव-पेंच के पुरोधा रहे मुलायम को कई बार चुनावी दंगल में अपने नाम वालों से ही लड़ना पड़ा.
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जनता के बीच जाकर चुनावी जंग जीतने से पहले मुलायम को अपने ही नामराशि वाले प्रतिद्वंदी उम्मीदवारों से चुनौती का सामना करना पड़ा था. इस चुनौती से निपटने के लिए उन्होंने अपने पिता के नाम का सहारा लिया था.
मुलायम सिंह यादव को साल 1989, 1991 और 1993 के विधानसभा चुनाव में अपने ही नामराशि वाले उम्मीदवारों से चुनौती मिली थी. मगर वह हर बार चुनाव जीतने में सफल रहे.
मुलायम Vs मुलायम
साल 1989 के विधानसभा चुनाव में पहली बार मुलायम को उनके ही नामराशि वाले उम्मीदवार ने काफी परेशान किया था. तब मुलायम जनता दल के टिकट पर इटावा की जसवंतनगर विधानसभा सीट से चुनावी मैदान में उतरे थे. इसी सीट से मुलायम सिंह यादव नामक एक और प्रत्याशी मैदान में उतरे थे. एक ही नाम के दो प्रत्याशी होने के कारण जनता उहापोह की स्थिति में थी कि आखिर किस आधार पर दोनों मुलायम में अंतर कर अपने पसंदीदा वाले मुलायम को वोट करें. चूंकि, साल 1989 के वक्त तक मुलायम सिंह यादव का सियासत में काफी कद बढ़ गया था, वो इससे पहले विधायक और मंत्री भी बन चुके थे. ऐसे में चुनाव के दौरान ‘नेताजी’ मुलायम सिंह यादव के सामने खुद को मतदाताओं के बीच प्रचारित करने की चुनौती खड़ी हो गई थी.
पिता के नाम के कारण दूर हुई समस्या
मुलायम को अपनी वास्तविक मतदाता पहचान स्थापित करने के लिए पिता सुघड़ सिंह यादव को जिला निर्वाचन कार्यालय ले जाना पड़ा था. वहीं निर्दलीय उम्मीदवार मुलायम सिंह यादव भी अपने पिता पत्तीराम के साथ चुनाव आयोग के कार्यालय में पहुंचे थे. इसके बाद चुनाव आयोग ने दोनों मुलायम नाम वाले उम्मीदवारों के बीच का अंतर उन दोनों के पिता के नामों के आधार पर किया. जनता दल के टिकट पर लड़ने वाले मुलायम सिंह यादव के नाम के आगे उनके पिता सुघड़ सिंह यादव का नाम लिखा गया यानी मुलायम सिंह सुघड़ सिंह यादव, जबकि निर्दलीय उम्मीदवार मुलायम सिंह यादव को मुलायम सिंह यादव पत्तीराम नाम रखना पड़ा. तब जाकर ये समस्या दूर हुई.
फिर चुनाव में किसे मिली जीत?
सेम नाम की समस्या दूर होने के बाद मुलायम सिंह सुघड़ सिंह यादव का सामना निर्दलीय उम्मीदवार मुलायम सिंह यादव पत्तीराम से हुआ. इस चुनावी मुकाबले में निर्दलीय उम्मीदवार मुलायम सिंह यादव को 1032 वोट मिले थे और उन्हें हार का सामना करना पड़ा था, जबकि जनता दल के टिकट पर लड़ने वाले मुलायम सिंह यादव 65 हजार 597 वोट पाकर चुनावी जंग जीत गए थे.
मुलायम को कई बार अपने ही नाम वालों से मिली चुनौती
साल 1991 के विधानसभा चुनाव में जसवंतनगर सीट से फिर वही हुआ. इस बार ‘नेताजी’ मुलायम सिंह यादव को 47 हजार 765 वोट मिले थे और वह जीत गए, जबकि उनके नामराशि वाले प्रतिद्वंद्वी निर्दलीय उम्मीदवार मुलायम को केवल 328 वोट मिले थे.
साल 1992 में मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी पार्टी (सपा) के नाम से अपनी पार्टी का गठन कर लिया था. जब साल 1993 के विधानसभा चुनाव में वह इटावा की जसवंतनगर, फिरोजाबाद की शिकोहाबाद और एटा की निधौली कलां विधानसभा सीटों से सपा के टिकट पर चुनाव लड़े तब वह तीनों विधानसभा क्षेत्रों से जीत गए. मगर इन चुनावों में भी मुलायम को उनके नामराशि वाले उम्मीदवारों ने उन्हें कड़ी चुनौती दी थी. रोचक बात यह है कि एक नहीं, बल्कि तीनों विधानसभा सीटों पर सपा के मुलायम सिंह यादव के खिलाफ मुलायम नामराशि वाले निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव लड़े थे.
साल 1993 के जसवंतनगर विधानसभा चुनाव में सपा के मुलायम सिंह यादव 60 हजार 242 वोट पाकर जीत गए थे, जबकि उनके नामराशि वाले प्रतिद्वंद्वी निर्दलीय उम्मीदवार मुलायम को 192 वोट मिले थे.
शिकोहाबाद में मुलायम सिंह यादव को 55 हजार 249 वोट मिले थे, जबकि उनके नामराशि वाले निर्दलीय उम्मीदवार को 154 वोट मिले थे. निधौलीकलां विधानसभा सीट पर मुलायम सिंह यादव को 41 हजार 683 वोट पाकर जीते थे, जबकि उनके नामराशि वाले निर्दलीय उम्मीदवार मुलायम को 184 वोट मिले थे.
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