कानपुर आईआईटी के वैज्ञानिक कृत्रिम बारिश कराने की दिशा में काफी दिनों से प्रयास में जुटे थे. बुधवार को पहली बार उन्हें इस दिशा में पहली बार बड़ी सफलता हासिल हुई है.
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इस प्रोग्राम को कानपुर के पूर्व डिप्टी डायरेक्टर प्रोफेसर मणीन्द्र अग्रवाल के निर्देशन में किया जा रहा है. प्रोफेसर अग्रवाल वही प्रोफेसर हैं जिन्होंने कोरोना काल में अपने गणितीय मॉडल से करुणा के उतार और चढ़ाव की सही भविष्यवाणी करके पूरे दुनिया में सुर्खियां बटोरी थीं.
बुधवार को आईआईटी की 5 सदस्य टीम ने इस दिशा में पहला ट्रायल किया. प्रोफेसर अग्रवाल के मुताबिक, आईआईटी ने अपने प्लेन से केमिकल साल्ट के मिश्रण का आसमान के बदलो में छिड़काव करके इसकी प्रक्रिया का अध्यन किया. इस साल्ट में सिल्वर आयोडाइड के साथ कई अन्य केमिकल शामिल थे.
डॉ अग्रवाल का कहना है है कि यह भी हमारा पहला कदम है. इसमें अभी बारिश कराई गई है. यह नहीं कह सकते है कि यह पहला प्रयोग है. इसके बाद अभी हमारे अन्य प्रयोग होने हैं, लेकिन हम हर स्टेप का अध्ययन कर रहे हैं.
प्रोफेसर मणीन्द्र अग्रवाल ने बताया कि 6 साल पहले भी हमने इस दिशा में कुछ कदम आगे बढ़ाए थे, लेकिन इसके बाद प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ पाई थी. लेकिन इस बार हम पूरी तरह आशा से भरे हैं. कृत्रिम बारिश कराने का हमारा प्रयास जल्द ही सफल होगा. इससे हमारे देश में जो सूखाग्रस्त क्षेत्र हैं जैसे महाराष्ट्र, राजस्थान, यूपी के बुंदेलखंड में वहां की जरूरत के अनुसार कृत्रिम बारिश कराई जा सकेगी, जिससे किसानों को काफी फायदा होगा.
डॉ. मनीष अग्रवाल का कहना है कि जिस तरह आतिशबाजी की अनार छुड़ाया जाता है, उसी तरह इस केमिकल कप चार्ट बनाकर आसमान में प्लेन के द्वारा आतिशबाजी की फुल भरी की तरह इसको बादल में छोड़ा जाता है.
उन्होंने कहा कि दुनिया के कई देशों में कृत्रिम बारिश को लेकर प्रयोग सफल हो चुके हैं. चीन ने अभी कुछ सालों पहले ही बीजिंग में प्रदूषण को कम करने के लिए कृत्रिम बारिश की थी. अभी एक साल पहले ही कोरोना काल में भी चीन ने कृत्रिम बारिश कराई थी.
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