NFHS 5: बिना कानून के ही नियंत्रित हो रही UP की जनसंख्या, अब ये सियासी मुद्दा रह पाएगा?

यूपी तक

• 04:25 PM • 25 Nov 2021

गुरुवार, 25 नवंबर को यूपी सरकार के आधिकारिक ट्विटर हैंडल से एक न्यूज क्लिप ट्वीट की गई. इस ट्वीट के कैप्शन में जानकारी दी गई…

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गुरुवार, 25 नवंबर को यूपी सरकार के आधिकारिक ट्विटर हैंडल से एक न्यूज क्लिप ट्वीट की गई. इस ट्वीट के कैप्शन में जानकारी दी गई कि यूपी में टोटल फर्टिलिटी रेट (TFR) यानी प्रजनन दर 2.7 से गिरकर 2.4 हो गई है.

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सरल भाषा में इसे समझें तो भारत के सबसे अधिक आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश की प्रजनन दर में कमी का सीधा मतलब है कि यहां जनसंख्या नियंत्रित होती दिख रही है. असल में यह आंकड़ा नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 5 (NFHS 5) की ताजातरीन रिपोर्ट में सामने आया है.

दरअसल, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने भारत और 14 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिए जनसंख्या, प्रजनन और बाल स्वास्थ्य, परिवार कल्याण, पोषण और अन्य विषयों के प्रमुख संकेतकों से जुड़े तथ्य NFHS 5 के चरण दो के तहत 24 नवंबर को जारी किए. पहले चरण में शामिल 22 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिए NFHS 5 के तथ्य दिसंबर 2020 में जारी किए गए थे.

अब फिर से आते हैं उत्तर प्रदेश की बात पर. इसी साल जुलाई की बात है, जब यूपी सरकार प्रदेश की बढ़ती जनसंख्या को लेकर ‘चिंतित’ नजर आ रही थी. 11 जुलाई 2021 को उत्तर प्रदेश राज्य विधि आयोग ने जनसंख्या नियंत्रण को लेकर एक ड्राफ्ट बिल जारी किया था. इसका नाम था उत्तर प्रदेश पॉपुलेशन (कंट्रोल, स्टैबिलाइजेशन एंड वेलफेयर) बिल 2021. अगस्त में विधि आयोग ने योगी सरकार को अपना मसौदा सौंप दिया.

इसके कुछ मुख्य बिंदुओं की बात करें तो

  • आयोग ने दो बच्चों के परिवार या एक बच्चे के मानदंड की नीति का पालन करने वालों को प्रोत्साहित करने की संस्तुति की. मसलन ऐसे लोगों के लिए विशिष्ट कार्ड जारी किया जाना चाहिए.

  • आयोग ने यह भी प्रस्तावित किया कि स्कूली पाठ्यक्रम में जनसंख्या नियंत्रण का विषय दिया जाना चाहिए ताकि उचित शिक्षा के साथ-साथ स्कूली उम्र के बच्चों को मार्गदर्शन भी दिया जा सके.

  • आयोग की रिपोर्ट में कहा गया कि उत्तर प्रदेश में जनसंख्या नियंत्रण और स्थिरीकरण के संबंध में विशेष कानून बनाया जाना चाहिए.

  • इसमें कहा गया कि जनसंख्या को नियंत्रित करने के लिए दो बच्चों के मानदंड को अपनाने वाले लोक सेवकों को कुछ प्रोत्साहन और एक बच्चे की नीति अपनाने वाले को अतिरिक्त प्रोत्साहन प्रदान किए जाने चाहिए.

  • इसमें सिफारिश की गई कि राज्य सरकार की ओर से अधिसूचित एकमुश्त राशि के रूप में केवल एक बच्चा होने वाले विवाहित जोड़ों को विशेष लाभ प्रदान किया जाना चाहिए. जो दो बच्चों के मानदंड का पालन नहीं करता है उसे किसी भी तरह की छूट का लाभ नहीं दिया जाना चाहिए.

  • आयोग ने नीति का पालन न करने वाले व्यक्ति को जिला पंचायत व स्थानीय निकाय के चुनाव लड़ने पर प्रतिबंधित करने की सिफारिश भी की.

ऐसे में सुगबुगाहट शुरू हुई कि अगले साल विधानसभा चुनाव से पहले योगी सरकार जनसंख्या नियंत्रण कानून ला सकती है. सीएम योगी से इस संबंध में जब सवाल पूछे गए तो उन्होंने कहा कि हर चीज का एक समय होता है. क्या चुनाव से पहले यह कानून आएगा? इस पर सीएम ने कहा था कि ‘हमारे यहां धीरे से कुछ नहीं होता है, जब होगा नगाड़ा बजाकर होगा.’

हालांकि अब केंद्र के नए आंकड़ों में जब जनसंख्या नियंत्रित होने के ठोस साक्ष्य दिखे हैं, तो क्या यूपी में इसके लिए कानून बनाना जरूरी है? क्या अब जनसंख्या के मुद्दे को लेकर यूपी में राजनीति करने का आधार बचता है?

इस पूरे मुद्दे को समझने के लिए सबसे पहले NFHS 5 के आंकड़ों को समझ लेते हैं. बुधवार, 24 नवंबर को 2019-21 के लिए नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के फेज-2 के आंकड़े जारी किए गए. इसमें राज्यों के साथ राष्ट्रीय स्तर पर भी जनसंख्या से जुड़ी तमाम अहम आंकड़ों की जानकारी सामने आई. इसके मुताबिक, पहली बार भारत में ऐसा हुआ है कि देश की कुल प्रजनन दर (TFR) रिप्लेसमेंट लेवल प्रजनन दर के नीचे आ गई है. नए आंकड़ों के मुताबिक प्रजनन दर जहां 2 है, वहीं रिप्लेसमेंट लेवल 2.1 है.

क्या होती है कुल प्रजनन दर?

प्रति महिला बच्चों की औसत संख्या को कुल प्रजनन दर या टीएफआर कहा जाता है.

क्या होता है रिप्लेसमेंट लेवल?

भारत के लिए रिप्लेसमेंट लेवल (फर्टिलिटी) 2.1 है. आसान भाषा में इसका मतलब है कि कपल अगर 2 बच्चे पैदा करें तो वे अपने वंश को रिप्लेस करते रहेंगे और पीढ़ी दर पीढ़ी अपने बराबर की जनसंख्या ही पीछे छोड़ते जाएंगे. 0.1 शिशुकाल में कुछ बच्चों की होने वाली मौत के लिए है.

यानी देश के हिसाब से देखा जाए तो प्रजनन दर अब रिप्लेसमेंट लेवल रेशियो से भी नीचे है. यूपी की बात करें तो यह फिलहाल 2.4 है. हालांकि 2015-16 के लिए NFHS 4 के आंकड़ों के मुताबिक यह 2.7 था. यानी इसमें 0.3 की अहम गिरावट दर्ज की गई है. ऐसे में क्या उत्तर प्रदेश को जनसंख्या नियंत्रण को लेकर कोई कानून बनाने की जरूरत है भी? इस सवाल का जवाब जानने की कोशिश करते हैं.

पहले जानिए पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया (PFI) की टिप्पणी

यूपी के संदर्भ में इस मामले को समझने से पहले नए आंकड़ों को लेकर पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया (PFI) की टिप्पणी जान लेते हैं. PFI ने कहा है कि राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस-5) में पता चला है कि कुल प्रजनन दर (टीएफआर) 2.2 से गिरकर 2.0 हो गई है और यह तथ्य जनसंख्या विस्फोट के मिथक को दूर करता है.

इसका मतलब है कि महिलाएं अपने प्रजनन काल में पहले की तुलना में कम बच्चों को जन्म दे रही हैं. यह परिवार नियोजन सुविधाओं के बेहतर उपयोग, देर से शादी आदि को भी दर्शाता है.

पीएफआई ने यह भी कहा कि यह तथ्य दिखाता है कि आबादी को काबू करने के प्रतिरोधी कदमों से भारत को दूरी बनाकर रखनी चाहिए. पीएफआई की कार्यकारी निदेशक पूनम मुटरेजा ने कहा कि टीएफआर में गिरावट उल्लेखनीय उपलब्धि है.

मुटरेजा कहती हैं,

”पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया इस बात का स्वागत करता है कि भारत की कुल प्रजनन दर (महिला के जीवनकाल में बच्चों की औसत संख्या) अब 2.0 है. यह उस स्तर से कम है जिसमें एक आबादी में एक पीढ़ी का स्थान पूरी तरह से अगली पीढ़ी ले लेती है. यह देश के परिवार नियोजन कार्यक्रम के लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है, जिसमें बलपूर्वक नीतियां शामिल नहीं हैं. ये निष्कर्ष जनसंख्या विस्फोट के मिथक को दूर करते हैं और दिखाते हैं कि भारत को जनसंख्या नियंत्रण के लिए प्रतिरोधी उपायों से दूरी बनाकर रखनी चाहिए.”

पूनम मुटरेजा, पीएफआई की कार्यकारी निदेशक

हालांकि, यूपी में अभी TFR 2.4 है, जो रिप्लेसमेंट रेशियो (2.1) से 0.3 ही अधिक है. इसके बावजूद 0.3 की गिरावट सकारात्मक संकेत है. ऐसे में इस गिरावट को एक्सपर्ट्स किस नजरिए से देखते हैं?

इस संबंध में हमने डेमोग्राफी/पॉपुलेशन स्टडीज एक्सपर्ट और काशी हिंदू विश्वविद्यालय से रिटायर्ड प्रोफेसर केदार नाथ सिंह यादव से बात की.

उन्होंने कहा कि अगर प्रजनन दर में इस तरह की गिरावट आ रही है, तो यह इस बात का संकेत है कि हमें फैमिली प्लानिंग या जनसंख्या नियंत्रण के अतिरिक्त दूसरे अहम पहलुओं पर ध्यान देने की जरूरत है.

वह कहते हैं कि हमारे यहां फर्टिलिटी कंट्रोल पर ध्यान करके क्वॉलिटी पर बात करनी चाहिए. मसलन कुपोषित बच्चों की जनसंख्या, नौजवान और बुजुर्ग (65 साल से ऊपर) जनसंख्या से जुड़े दूसरे इश्यू पर ध्यान देने, बात करने और नीति बनाने की जरूरत है. प्रोफेसर केदार नाथ सिंह कहते हैं कि कहां प्रजनन दर 3 से ऊपर हुआ करती थी, अब यह 3 से नीचे आ गई है. ऐसे में हमें चीन से सीखने की जरूरत है, जहां एक बच्चे की नीति राष्ट्रीय विकास पर भारी पड़ने लगी.

(भाषा के इनपुट्स के साथ)

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