टीचर्स डे: UP में कोरोना की भेंट चढ़े शिक्षकों का हक किसने छीना? मुआवजा-नौकरी पर वादे अधूरे

यूपी तक

• 06:12 AM • 05 Sep 2021

उत्तर प्रदेश सहित पूरा देश आज यानी 5 सितंबर को शिक्षक दिवस मना रहा है. इस बीच यूपी के कई ऐसे शिक्षकों के परिवार मुश्किलों…

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उत्तर प्रदेश सहित पूरा देश आज यानी 5 सितंबर को शिक्षक दिवस मना रहा है. इस बीच यूपी के कई ऐसे शिक्षकों के परिवार मुश्किलों से जूझ रहे हैं, जिनकी कोरोना काल के बीच पंचायत चुनाव में ड्यूटी लगी थी और उन्होंने अपनी जान गंवा दी.

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यूपी तक ने प्रदेश के 7 जिलों में जाकर ऐसे कई शिक्षकों के परिवारों से बात की है और उनके मौजूदा हालात समझने की कोशिश की है. साथ ही यह भी जाना है कि सरकार की तरफ से अभी तक उनको कितनी राहत मिली है.

लखनऊ: बेटे के लिए नौकरी मांग रहीं जान गंवाने वाले शिक्षक की पत्नी

लखनऊ के त्रिवेणी नगर में रहने वाले बेसिक शिक्षा के 58 वर्षीय टीचर लीलाधर दीक्षित भी कोरोना काल में दुनिया छोड़कर चले गए. लीलाधर के जाने के बाद उनके परिवार में पत्नी आशारानी और दो बच्चे बचे हैं. बेटा ग्रेजुएशन करने के बाद नौकरी की तलाश कर रहा है, जबकि आशारानी को बेटी की शादी करनी है.

आशारानी के मुताबिक, पहले कोविड-19 रूम में लीलाधर की ड्यूटी लगी थी, उसी बीच में उनकी चुनाव की ड्यूटी आ गई, प्रशिक्षण लेने के 2 दिन बाद उन्हें बुखार आ गया था.

आशारानी ने बताया कि उनका बेटा बीटेक कर चुका है, जबकि बेटी बीएससी कर चुकी है. घर चलाने को लेकर आशारानी का कहना है, ”पेंशन मिल रही है, हम भी अपना काम करते हैं, लेकिन अभी बेटी की शादी भी करनी है.”

इसके अलावा उनका कहना है, ”हमारा बच्चा नौकरी के लायक हो गया है, उसको सरकार को नौकरी देनी चाहिए.” उन्होंने बताया कि कोरोना संक्रमण की वजह से हुई शिक्षकों की मौतों पर सरकार की ओर से घोषित मुआवजा राशि अभी तक उन्हें नहीं मिली है.

मेरठ: शिक्षका की मौत के बाद परिवार के सामने मुसीबतों का पहाड़

मेरठ में 76 साल के प्रदीप जैन की 38 साल की बेटी शालनी जैन जानी ब्लॉक में सरकारी टीचर थीं और उनकी ड्यूटी पंचायत चुनाव में लगी थी. घरवालों का कहना है कि जब वह पंचायत चुनाव के बाद घर पहुंचीं तो अगले दिन उनको बुखार आ गया. 27 अप्रैल को बुखार आया था, 2 से 3 दिन घर में ही इलाज चलता रहा, लेकिन शालनी का ऑक्सीजन लेवल कम होने के बाद 2 मई को मेरठ के जिला अस्पताल प्यारे लाल में भर्ती कराया, जहां पर 3 मई को शालिनी की मौत हो गई.

शालिनी जैन शादीशुदा थीं और उनकी 8 साल की बेटी भी है ,लेकिन पति से मनमुटाव होने के बाद वह अपनी बेटी के साथ अपने पिता प्रदीप जैन के घर ही रह रही थीं.  

शालिनी के भाई अनिकांत जैन और मां रेनू जैन को भी कोरोना ने अपनी चपेट में ले लिया था. 13 मई को रेनू जैन कोरोना से ठीक होकर घर आ गईं, लेकिन कोरोना के बाद ब्लैक फंगस ने अनिकांत जैन और रेनू जैन को अपनी चपेट में ले लिया.

पिता प्रदीप जैन ने बेटे अनिकांत को एक निजी नर्सिंग होम में भर्ती कराया जहां उसका ऑपरेशन भी हुआ, लेकिन उसकी दोनों आंखों की रोशनी चली गई और पूरा शरीर पैरालाइज्ड हो गया. अब घर पर ही अनिकांत का इलाज चल रहा है. मां रेनू जैन अपने बेटे की देखभाल और इलाज में लगी रहती हैं.

पिता प्रदीप की पेंशन पर ही अब घर का सारा खर्चा चल रहा है. शालिनी की 8 साल की बेटी भी अपने नाना-नानी के पास ही रहती है और उसका खर्चा भी प्रदीप जैन उठा रहे हैं.

उन्होंने सरकार की ओर से मुआवजे की घोषणा के बाद शालिनी जैन के सारे पेपर इकट्ठा करके मुआवजे के लिए जमा किए, लेकिन उस समय की आरटीपीसीआर रिपोर्ट नहीं है, इसलिए उनके दावे को निरस्त कर दिया गया. अब वह जैसे तैसे परिवार का खर्चा चला रहे हैं और फिलहाल मदद की गुहार लगा रहे हैं.

मुआवजे के लिए भटक रहा जौनपुर के शिक्षक का परिवार

जौनपुर के जूनियर हाईस्कूल जप्टापुर में सभाजीत यादव बतौर प्रधानाध्यापक नियुक्त थे. उनकी पत्नी नीता यादव भी परिषदीय विद्यालय में शिक्षिका हैं. पंचायत चुनाव में सभाजीत यादव की ड्यूटी लगी थी. पंचायत चुनाव के संदर्भ में हुई ट्रेनिंग में शिरकत करने के बाद उनकी तबीयत बिगड़ने लगी. इस दौरान परिवार वालों ने उनकी कोविड जांच भी कराई. एंटीजन टेस्ट में वह कोरोना पॉजिटिव आए थे. इलाज के दौरान ही उनकी मौत हो गई.

उनकी मौत के बाद 3 बेटी और 2 बेटों की जिम्मेदारी बीमार मां पर आ गई. बड़ी बेटी दीप्ति यादव ने बीएससी-बीटीसी करने के बाद टीईटी पास कर लिया है और वह इलाहाबाद में तैयारी कर रही हैं. वहीं दूसरे नंबर की बेटी सृष्टि कोटा से नीट की तैयारी कर रही थीं और इस साल बनारस आ गईं. सबसे छोटी बेटी दिशा बायोलॉजी से इंटर करने के बाद डॉक्टर बनने का ख्वाब देख रही हैं. वहीं बड़ा बेटा देवांश विक्रम मैथ से बीएससी कर रहा है और छोटा बेटा शिवांश विक्रम कक्षा 7 में पढ़ रहा है. पिता की मौत के बाद इन बच्चों को अपना जीवन अंधकार में दिख रहा है लेकिन अपनी मां के लिए और पिता के सपनों को पूरा करने के लिए बच्चे संकल्पित दिख रहे हैं.

अभी तक इस परिवार को मुआवजा नहीं मिल पाया है. सृष्टि बताती हैं कि वह कई बार जिलाधिकारी और बेसिक शिक्षा विभाग जौनपुर के चक्कर काट चुकी हैं.

मुआवजा के लिए आवेदन करते वक्त फॉर्म में गड़बड़ी हो गई थी, सुधार करके उन्होंने दोबारा भेज दिया लेकिन अभी तक कोई सुनवाई नहीं हुई है. वह कहती हैं कि उन्होंने मुख्यमंत्री पोर्टल पर भी शिकायत दर्ज की है लेकिन इसके बावजूद वह मुआवजे के लिए दर-दर भटक रही हैं.

वाराणसी: जान गंवाने वाले शिक्षक के परिवार को नहीं मिला मुआवजा

45 वर्षीय शिक्षक आनंद भाई पटेल वाराणसी के चोलापुर के एक पूर्व माध्यमिक विद्यालय में तैनात थे और 18 जुलाई को मौत के पहले चुनावी ड्यूटी से संंबंधित काम कर रहे थे. चुनाव के एक दिन पहले ही उनकी मौत हो गई थी.

आनंद की पत्नी सुनीता पटेल को यूपी की योगी आदित्यनाथ सरकार ने चौथी श्रेणी में परिचारिका की नौकरी दे दी है, लेकिन सुनीता का कहना है कि वह इंटर पास हैं और उनको तीसरी श्रेणी में ही नौकरी मिलनी चाहिए थी.

उन्होंने बताया कि अभी तक अनुग्रह राशि का न तो तीस लाख रुपया मिला है और न ही तनख्वाह मिलनी शुरू हुई है. उनकी दो बेटी हैं, जिनमें से एक इंटर तो दूसरी ग्यारह में है और एक बेटा नौवीं में है.

शिक्षक दिवस के मौके पर सुनीता ने कहा कि वह अपने पति की मौत से तो दुखी हैं ही साथ ही सरकार की ओर से किए गए वादे के पूरा न होने से भी दुखी हैं.

बतौर सहायक अध्यापक सुनील चक्रवाल जो वाराणसी के सेवापुरी ब्लॉक के बिहड़ा गांव में प्राथमिक स्कूल में तैनात थे, उनकी भी मौत पंचायत चुनाव के दौरान हो गई. उनकी जगह उनकी बीए पास पत्नी रंजना चक्रवाल को भी चतुर्थ श्रेणी में केराकतपुर स्थित प्राथमिक स्कूल में परिचारिका के पद पर नौकरी मिल गई है. मगर अभी तक उन्हें भी तनख्वाह नहीं मिली है. उनका कहना है कि अभी प्रक्रिया चल रही है. उनके दो बेटे (एक 15 वर्षीय और 7 वर्षीय) हैं. शिक्षक दिवस पर उन्होंने कहा कि उन्हें सिस्टम से कोई शिकायत नहीं है.

प्रयागराज: मृतक शिक्षिका की बेटी बोली- ‘टीजर को नहीं मिलता जरूरी सम्मान’

ड्यूटी के दौरान मृतक टीचर कविता यादव के परिवार में बेटी आयुषी और बेटा अविरल यादव हैं. बेटी आयुषी 20 वर्ष की है और बेटा अविरल 10 साल का है. मां कविता यादव -उच्च प्राथमिक विद्यालय फतुआ में टीचर थीं,15 अप्रैल को उनकी जसरा इलाके में चुनाव के दौरान ड्यूटी लगाई गई थी, जहां 16 अप्रैल को कविता की तबीयत बिगड़ गई थी और जब उनका कोरोना टेस्ट कराया गया तो रिपोर्ट निगेटिव आई, लेकिन सीटी स्कैन से कोविड होने की आशंका जताई गई और उन्हें अस्पताल पहुंचाया गया लेकिन 27 अप्रैल को उनकी मौत हो गई.

आयुषी बताती हैं कि सरकार ने मदद करने की बात कही है लेकिन ये मदद अभी नहीं आई है, पर उन्हें उम्मीद है कि ये मदद मिलेगी.

शिक्षक दिवस पर आयुषी का कहना है कि ऐसे मुश्किल वक्त पर टीचर अपनी ड्यूटी निभा रहे थे, उनको अभी भी वो रिस्पेक्ट नहीं मिलती है जो मिलनी चाहिए. लोग कहते हैं कि मामूली टीचर थे, लेकिन वही टीचर एक मामूली व्यक्ति को कितना बड़ा बनाता है.

बरेली में मुश्किलों से लड़ रहा कंचन कनौजिया का परिवार

कोरोना काल में चुनावी ड्यूटी के दौरान जान गवाने वालीं कंचन कनौजिया का परिवार भी इस समय मुश्किल में है. उनके पति का कहना है कि उन्हें मृतका के आश्रित के तौर पर नौकरी नहीं मिली. अभी परिवार का खर्चा चलाना मुश्किल पढ़ रहा है.

कंचन के पति प्राइवेट नौकरी करते थे, उन्होंने अपने बच्चों की खातिर नौकरी छोड़ दी थी, जिससे अब परिवार को काफी दिक्कतें का सामना करना पड़ रहा है. इसी महीने से पेंशन मिलनी शुरू हुई है लेकिन नौकरी नहीं मिली. वह सरकार से मांग कर रहे हैं कि नौकरी दी जाए, जिससे परिवार सही से चल सके.

झांसी के इस परिवार में ‘अब कोई कमाने वाला नहीं’

झांसी के आनंद प्रकाश पटेल भी उन अध्यापकों में से एक थे, जिन्होंने कोरोना से अपनी जान गंवाई. आनंद झांसी जिले के पांडवा गांव के प्राथमिक विद्यालय में अध्यापक के रूप में तैनात थे. पंचायत चुनाव में उनकी ड्यूटी झांसी के बबीना ब्लॉक में लगा दी गई थी. ड्यूटी के दो दिन बाद ही उनकी तबीयत खराब होनी शुरू हो गई. जब उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया तो डॉक्टरों ने बताया कि उन्हें कोरोना हुआ है.

कोरोना से जंग लड़ते हुए एक हफ्ते बाद उनकी मौत हो गई. उनकी मौत के बाद अब उनके परिवार में कोई भी कमाने वाला नही हैं.

आनंद प्रकाश के जाने के बाद उनकी पत्नी को सरकार की तरफ से पेंशन तो मिल रही है लेकिन सरकार की ओर से घोषित 30 लाख रुपये का मुआवजा अभी तक नहीं मिला है. आनंद प्रकाश के दो लड़कों की पढ़ाई पेंशन से मिलने वाले रुपयों से ही हो रही है. मगर परिवार के लिए खर्चा चलाना मुश्किल हो रहा है.

(इनपुट्स: लखनऊ से आशीष श्रीवास्तव, मेरठ से उस्मान चौधरी, जौनपुर से राजकुमार सिंह, वाराणसी से रौशन जायसवाल, प्रयागराज से पंकज श्रीवास्तव, बरेली से कृष्ण गोपाल राज, झांसी से अमित श्रीवास्तव)

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