इटावा में यादव परिवार के एक साथ दिखने के सियासी मायने क्या हैं? समझिए

अभिषेक मिश्रा

• 09:46 AM • 18 Feb 2022

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के तीसरे चरण के मतदान से पहले सार्वजनिक तौर पर यादव परिवार की एकजुटता लंबे समय बाद दिखाई दी है, जिसके…

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उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के तीसरे चरण के मतदान से पहले सार्वजनिक तौर पर यादव परिवार की एकजुटता लंबे समय बाद दिखाई दी है, जिसके राजनीतिक तौर पर कई मायने निकाले जा रहे हैं.

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‘यादव लैंड’ में तीनों नेताओं की मौजूदगी इस बात की गवाह है कि यूपी के चुनाव की लड़ाई समाजवादी पार्टी के लिए उसकी साख का सवाल बन गई है.

ऐसा लगता है कि अपने गढ़ को बचाने और यूपी में सरकार बनाने का दावा कर रही समाजवादी पार्टी (एसपी) के शीर्ष नेता पुरानी बातों को भुलाकर एक साथ सामने आए हैं.

यह तस्वीर है इटावा में 17 फरवरी को हुए चुनाव प्रचार की, जब ‘समाजवादी विजय रथ’ पर एसपी चीफ अखिलेश यादव के साथ पार्टी के फाउंडर मुलायम सिंह यादव और प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) चीफ शिवपाल सिंह यादव नजर आए.

इस तस्वीर ने यूपी की सियासत में एक नई ऊर्जा के साथ यादव परिवार की एंट्री करा दी. शिवपाल और अखिलेश के बीच विवाद पैदा होने के बाद लंबे वक्त तक ये दोनों इस तरह एक साथ दिखाई नहीं दिए थे.

वहीं, मुलायम सिंह यादव भी अखिलेश के प्रचार से दूर थे, लेकिन 17 फरवरी को मुलायम ने ना सिर्फ अखिलेश यादव के करहल में भारी बहुमत मांगा, बल्कि वह इटावा में ‘समाजवादी विजय रथ’ भी सवार दिखे.

एक तरफ विरोधी दल लगातार यादव परिवार पर परिवारवाद का आरोप लगाकर हमले कर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ यादव परिवार की एकजुटता यूपी की सियासत में उन समीकरणों को साधने की कवायद में है, जिसका सीधा नुकसान 2017 में एसपी को हुआ था. अपने मतभेदों को भुलाकर शिवपाल यादव अखिलेश को अपना नेता बता चुके हैं.

यूपी तक से बात करते हुए शिवपाल यादव ने कहा था कि बीजेपी को हराने के लिए उन्होंने अपनी पार्टी की कुर्बानी दी है. दरअसल समाजवादी पार्टी को लगता है यादव परिवार की एकजुटता पार्टी को सीधा फायदा ‘यादव लैंड’ के साथ-साथ चौथे चरण के चुनाव में भी दिला सकती है, जहां शिवपाल और मुलायम जैसे पुराने दिग्गजों का जोड़ अखिलेश की ‘नई सपा’ को मजबूत कर सकता है. विरोधियों को जवाब देते हुए अखिलेश ने यह दिखाने की कोशिश की है कि परिवार में सब ठीक है और चुनाव में बीजेपी को चुनौती देने वाले वही इकलौते नेता हैं.

वहीं दूसरी तरफ बीजेपी ने करहल की लड़ाई को दिलचस्प बनाने के लिए एसपी सिंह बघेल को मैदान में उतारा है जो सीधे तौर पर गैर यादव वोटों को साधने की कवायद में हैं.

यूपी तक से बात करते हुए बघेल ने कहा कि अखिलेश को अपनी हार का अंदाजा है इसीलिए अपने बीमार पिता को आगे करके वोट मांग रहे हैं. इस इलाके के यादव समीकरण को काफी ना बताते हुए बघेल मानते हैं कि बीजेपी के साथ जुड़े यादव, बघेल, शाक्य और अन्य पिछड़ी जातियां अखिलेश के लिए उनके गढ़ में चिंता पैदा कर सकती हैं.

वहीं राजनीतिक विश्लेषक रतन मणि लाल मानते हैं कि जिस तरह से अखिलेश यादव के लिए प्रचार करने के मौके पर मुलायम और शिवपाल, अखिलेश के साथ आए हैं, यह निश्चित तौर पर मुलायम के लिए बड़े संतोष की बात है.

मुलायम के लिए 2017 में पार्टी और परिवार में आया टकराव एक ऐसा दर्द दे गया था जिसे वह अक्सर बयान करते रहते रहे हैं. चाहे उस घटनाक्रम के पीछे अखिलेश यादव की या अन्य नेताओं की महत्वाकांक्षा रही हो, लेकिन मुलायम यही चाहते थे कि परिवार एक रहे.

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