क्या आप चाहते हैं संतान की प्राप्ति? सावन में पुत्रदा एकादशी व्रत बदल सकता है आपका जीवन
सावन माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 15 अगस्त को सुबह 10 बजकर 26 मिनट पर प्रारंभ हो रही है. वहीं, इसका समापन 16 अगस्त को सुबह 09 बजकर 39 मिनट पर होगा. ऐसे में सावन माह में पुत्रदा एकादशी का व्रत आज यानी 16 अगस्त को किया जाएगा.
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सावन माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 15 अगस्त को सुबह 10 बजकर 26 मिनट पर प्रारंभ हो चुका है. वहीं, इसका समापन 16 अगस्त को सुबह 09 बजकर 39 मिनट पर होगा. हालांकि सूर्योदय व्यापिनी तिथि 16 अगस्त को है, इसलिए इस साल पवित्रा एकादशी का व्रत भी 16 अगस्त, शुक्रवार को रखा जाएगा. पुत्रदा एकादशी व्रत का पारण 17 अगस्त, शनिवार को सुबह 6:34 से 8:06 बजे के बीच किया जा सकता है. पारण के बाद जरूरतमंदों या ब्राह्मणों को भोजन कराकर दान अवश्य करें. इस दिन दान करने से सभी पापों का नाश होता है और परमपद की प्राप्ति होती है. इस बारे में श्री कैलख ज्योतिष एवं वैदिक संस्थान ट्रस्ट के प्रधान महंत रोहित शास्त्री ने जानकारी साझा की है.
महंत रोहित शास्त्री के अनुसार, पवित्रा एकादशी का व्रत करने से मोक्ष, दीर्घायु, और कई गायों के दान के बराबर फल प्राप्त होता है. यह व्रत पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए है. नि:संतान दंपति इस व्रत को श्रद्धा के साथ करते हैं तो उन्हें उत्तम गुणों वाली संतान की प्राप्ति होती है. संतान की कुशलता के लिए भी यह व्रत काफी लाभकारी माना गया है.
इस एकादशी पर "ॐ नमो वासुदेवाय" मंत्र का जाप करना चाहिए. यह व्रत न केवल धार्मिक महत्व रखता है बल्कि मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायक है.
एकादशी व्रत पूजन विधि
एकादशी व्रत के नियमों का पालन दशमी तिथि से ही शुरु हो जाता है. दशमी तिथि को सात्विक भोजन ग्रहण कर अगले दिन एकादशी पर सुबह जल्दी उठें और शुद्ध जल से स्नान के बाद सूर्यदेव को जल का अर्घ्य देकर व्रत का संकल्प लें पति पत्नी संयुक्त रूप से लक्ष्मीनारायण जी की उपासना करें, पूजा के कमरे या घर में किसी शुद्ध स्थान पर एक साफ चौकी पर श्रीगणेश, भगवान लक्ष्मीनारायण की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें। इसके बाद पूरे कमरे में एवं चौकी पर गंगा जल या गोमूत्र से शुद्धिकरण करें। चौकी पर चांदी, तांबे या मिट्टी के कलश (घड़े )में जल भरकर उस पर नारियल रखकर कलश स्थापना करें, उसमें उपस्थित देवी-देवता, नवग्रहों,तीर्थों, योगिनियों और नगर देवता की पूजा आराधना करनी चाहिए,इसके बाद पूजन का संकल्प लें और वैदिक मंत्रो एवं विष्णुसहस्रनाम के मंत्रों द्वारा भगवान लक्ष्मीनारायण सहित समस्त स्थापित देवताओं की षोडशोपचार पूजा करें। इसमें आवाह्न, आसन, पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, सौभाग्य सूत्र, चंदन, रोली, हल्दी, सिंदूर, दुर्वा, बिल्वपत्र, आभूषण, पुष्प-हार, सुगंधितद्रव्य, धूप-दीप, नैवेद्य, फल, पान,तिल,दक्षिणा, आरती, प्रदक्षिणा, मंत्रपुष्पांजलि आदि करें। व्रत की कथा करें अथवा सुने तत्पश्चात प्रसाद वितरण कर पूजन संपन्न करें.
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व्रत में इन बातों का रखें ख्याल
एकादशी के दिन किसी भी प्रकार की तामसिक वस्तुओं का सेवन नहीं करना चाहिए और ब्रहम्चार्य का पालन करना चाहिए. इन दिनों में शराब आदि नशे से भी दूर रहना चाहिए, व्रत रखने वालों को इस व्रत के दौरान दाढ़ी-मूंछ और बाल नाखून नहीं काटने चाहिए. व्रत करने वालों को पूजा के दौरान बेल्ट, चप्पल-जूते या फिर चमड़े की बनी चीजें नहीं पहननी चाहिए. इसके साथ ही काले रंग के कपड़े पहनने से बचना चाहिए. इस दौरान किसी का दिल दुखाना सबसे बड़ी हिंसा मानी जाती है. गलत काम करने से आपके शरीर पर ही नहीं आपके भविष्य पर भी दुष्परिणाम होते हैं.
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