विधानसभा-विधान परिषद में समीक्षा अधिकारी भर्ती में भी खेल? SC के एक फैसले पर अटकी बड़े नेताओं की सांस
UP News: उत्तर प्रदेश की विधानसभा और विधान परिषद में समीक्षा अधिकारी, सहायक समीक्षा अधिकारी के जिस भर्ती घोटाले पर सीबीआई जांच की तलवार सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर लटकी है, उस घोटाले ने उत्तर प्रदेश के कई सफेदपोश नेताओं की नींद उड़ा रखी है.
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UP News: उत्तर प्रदेश की विधानसभा और विधान परिषद में समीक्षा अधिकारी, सहायक समीक्षा अधिकारी के जिस भर्ती घोटाले पर सीबीआई जांच की तलवार सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर लटकी है, उस घोटाले ने उत्तर प्रदेश के कई सफेदपोश नेताओं की नींद उड़ा रखी है. दरअसल 6 जनवरी 2025 को सुप्रीम कोर्ट में सीबीआई जांच पर लगी रोक पर सुनवाई होनी है.
आरोप है कि 87 में से 38 अभ्यर्थी ऐसे हैं, जिनकी सिफारिश लगी और वह सहायक समीक्षा अधिकारी और समीक्षा अधिकारी में चयनित हुए. आरोप ये भी है कि ये अभ्यर्थी परीक्षा में तो पास नहीं हुए लेकिन फिर भी इनको नौकरी मिल गई. ये सभी अफसरों और नेताओं के बेटा-बेटी, बहू और रिश्तेदार थे. जानिए पूरा मामला.
यूं पकड़ में आया घोटाला
बता दें कि इस मामले को लेकर हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में याचिका दाखिल की गई थी. याचिका में तीन अभ्यर्थियों की टाइपिंग टेस्ट की कॉपी भी फोटो स्टेट दाखिल की गई थी. इसमें बताया गया था कि ये तीनों टाइपिंग टेस्ट में फेल हो गए थे. मगर फिर भी फाइनल रिजल्ट में इनको पास कर दिया गया था. इसी बात से घोटाला पकड़ में आया.
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जानिए ये पूरा मामला
उत्तर प्रदेश सरकार ने साल 2020 और 21 में विधानसभा और विधान परिषद में समीक्षा अधिकारी-सहायक समीक्षा अधिकारी के पदों के लिए भर्ती निकाली. विधानसभा में 87 पद और विधान परिषद में 99 पदों के लिए विज्ञापन निकाला गया. इस नियुक्ति की जिम्मेदारी विधानसभा में भारत सरकार की रिक्रूटमेंट एजेंसी BECIL को दी गई और BECIL ने डाटा प्रोसेसिंग का ठेका TSR ग्रुप को दे दिया. वही विधान परिषद में इसकी जिम्मेदारी राभव एंटरप्राइजेज को दी गई. इस भर्ती में अभ्यर्थियों के लिए टाइपिंग टेस्ट रखा गया था. यह टाइपिंग टेस्ट छात्र शक्ति इन्फो सॉल्यूशंस के जरिए करवाया गया था.
टाइपिंग टेस्ट से खेल हुआ शुरू
बता दें कि सारा खेल इसी टाइपिंग टेस्ट से शुरू हुआ था. हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच में दाखिल की गई याचिका में एक अभ्यर्थी की टाइपिंग कॉपी दाखिल की गई. ये टेस्ट 14 मार्च 2021 को हुआ. टाइपिंग टेस्ट में कुल 125 शब्द टाइप होने थे. उन्होंने टाइप किए सिर्फ 58 शब्द, जिनमें से 34 सही थे तो 24 गलत थे. 67 शब्द तो टाइप ही नहीं किए गए थे. मगर हैरानी की बात ये थी कि जब इसका रिजल्ट सामने आया तो इस अभ्यर्थी का नाम लिस्ट में 5वें नंबर पर था. उस दौरान सामने आया कि अभ्यर्थी ने 125 शब्द के बजाय 155 शब्द टाइप किए, जिसमें 152 शब्द सही थे और सिर्फ तीन शब्द ही गलत थे. परीक्षा के लिए 25 शब्द प्रति मिनट की स्पीड चाहिए थी, लेकिन अभ्यर्थी की स्पीड 30.4 शब्द प्रति मिनट बता दी गई. इसी के साथ अभ्यर्थी का चयन उत्तर प्रदेश विधानसभा सचिवालय में सहायक समीक्षा अधिकारी के पद पर हो गया.
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दूसरे अभ्यर्थी का मामला भी कुछ ऐसा ही था. रोल नंबर 10050536 के अभ्यर्थी का टेस्ट 14 मार्च 2021 के दिन हुआ. अभ्यर्थी ने 125 में से 35 शब्द टाइप किए, जिसमें 23 शब्द सही थे और 12 शब्द गलत थे. 90 शब्द टाइप ही नहीं किए गए. लेकिन जब फाइनल रिजल्ट सामने आया तो अभ्यर्थी का नाम चयनित अभ्यर्थियों की लिस्ट में था. तब बताया गया कि अभ्यर्थी ने 125 शब्दों में से 148 शब्द टाइप किए थे. 144 शब्द सही थे और 4 शब्द गलत थे. 25 शब्द प्रति मिनट के हिसाब से टाइपिंग की स्पीड चाहिए थी लेकिन अभ्यर्थी की स्पीड 28.8 शब्द प्रति मिनट निकाली और अभ्यर्थी का चयन हो गया. तीसरे अभ्यर्थी का भी कुछ ऐसा ही मामला सामने आया था.
सभी बड़े अधिकारियों और नेताओं के रिश्तेदार
जब ये मामला याचिका के माध्यम से हाई कोर्ट गया तो आरोप लगाया गया कि परीक्षा कराने वाली एजेंसी TSR के पांच रिश्तेदारों का भी चयन हो गया. इतना ही नहीं हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच में दायर की गई याचिका में सपा सरकार के पूर्व मंत्री के निजी सचिव से लेकर बड़े सचिवों के बेटा-बेटी-बहू, पूर्व आईएएस के रिश्तेदारों, पूर्व उपलोकायुक्त की बहू, नेताओं के पीआरओ, अधिकारियों और नेताओं की पत्नी समेत करीब 38 अभ्यर्थी के नाम थे, जिनका चयन गलत तरीके से हुआ था.
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हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच 18 सितंबर 2023 को इस मामले में सीबीआई जांच के लिए तैयार हो गई. लेकिन सरकार की तरफ से ये मामला सुप्रीम कोर्ट में ले जाया गया. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई जांच पर रोक लगा दी. अब इस मामले में सुप्रीम कोर्ट 6 जनवरी 2025 को फैसला देने जा रहा है. माना जा रहा है कि यूपी के कई बड़े नेताओं और अधिकारियों की सांस सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर अटकी हुई है.
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