वत्स द्वादशी: 30 अगस्त को बछड़े संग गाय की यूं करेंगे पूजा तो मिलेगा हमेशा के लिए सुखी जीवन

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भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की द्वादशी को वत्स द्वादशी के रुप में मनाया जाता है. इस साल भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की द्वादशी 30 अगस्त शुक्रवार को सुबह 01 बजकर 38 मिनट पर शुरू होगी और अगले दिन 31 अगस्त शनिवार को सुबह 02 बजकर 26 मिनट पर खत्म हो जाएगी. आपको बता दें कि सूर्योदय व्यापनी भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि 30 अगस्त को होगी. इसलिए इस साल वत्स द्वादशी का त्योहार 30 अगस्त शुक्रवार को मनाया जाएगा. 

क्या है व्रत की मान्यता

इस व्रत की मान्यता को लेकर श्री कैलख ज्योतिष एवं वैदिक संस्थान ट्रस्ट पंजीकृत के प्रधान महंत रोहित शास्त्री ज्योतिषाचार्य ने बताया है कि यह व्रत संतान प्राप्ति और संतान के सुखी जीवन की कामना के लिए किया जाता है. यह व्रत ज्यादातर स्त्रियों के द्वारा अपने पुत्रों के लिए रखा जाता है.ऐसी मान्यता है कि इस दिन विधि-विधान से पूजा-पाठ करने से पुत्र की प्राप्ति होती है. इसमें अंकुरित मोठ, मूंग, और चने आदि को भोजन में उपयोग किया जाता है और प्रसाद रुप में चढ़ाया जाता है. साथ ही इस दिन द्विदलीय अन्न का प्रयोग किया जाता है और दलीय अन्न और चाकू द्वारा काटा गया कोई भी पदार्थ वर्जित होता है.

कैसे करें पूजा

इस दिन दूध देने वाली गाय को बछडे़ सहित स्नान कराते हैं. फिर उन दोनों को नया वस्त्र पहनाया जाता है. गले में फूलों की माला पहनाते हैं, चंदन का तिलक करते हैं,सींगों को मढ़ा जाता है और तांबे के पात्र में अक्षत, तिल, जल तथा फूलों को मिलाकर दिए गए मंत्र का उच्चारण करते हुए गौ का प्रक्षालन करना होता है. 

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अगर किसी के घर या आसपास में गाय नहीं मिले तब वह गीली मिट्टी से गाय तथा बछडे़ को बनाकर पूजा कर सकता है. इस व्रत में गाय के दूध से बनी चीजों का उपयोग नहीं किया जाता है. इसके साथ ही गाय को उड़द से बने भोज्य पदार्थ खिलाने की भी मान्यता है. इस दिन गाय माता का पूजा करने के बाद वत्स द्वादशी की कथा सुनी जाती है. पूरे दिन व्रत रखकर रात में अपने इष्टदेव तथा गौमाता की आरती की जाती है. उसके बाद भोजन ग्रहण किया जाता है.

(इस खबर को हमारे साथ इंटर्न कर रहीं निवेदिता ने एडिट किया है.)
 

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