मौर्य, पल्लवी, चंद्रशेखर कोई करते खेल उससे पहले अखिलेश ने चला 'चरखा दांव', अंदर की खबर आई सामने
उत्तर प्रदेश की सियासत पर नजर रखने वालों को यह बात चौंका रही है कि समाजवादी पार्टी के साथ जुड़े बड़े ओबीसी और दलित चेहरों ने क्यों अलग लाइन ले ली और क्यों सब कुछ गंवाकर मझधार में खड़े हो गए?
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UP Political News: उत्तर प्रदेश की सियासत पर नजर रखने वालों को यह बात चौंका रही है कि समाजवादी पार्टी के साथ जुड़े बड़े ओबीसी और दलित चेहरों ने क्यों अलग लाइन ले ली और वे क्यों सब कुछ गंवाकर मझधार में खड़े हो गए? सियासी गलियारों में इस बात की चर्चा तेज है कि स्वामी प्रसाद मौर्य को सपा चीफ अखिलेश यादव से अलग होकर क्या मिला? पल्लवी पटेल को अखिलेश से पंगा लेकर और समाजवादी पार्टी के गठबंधन से बाहर आकर क्या मिलेगा? सलीम शेरवानी ने समाजवादी पार्टी तो छोड़ दी, लेकिन आखिर इससे उन्हें हासिल क्या होगा? केशव देव मौर्य को अखिलेश से पंगा लेकर क्या मिलने वाला है और इन सब से इतर चंद्रशेखर आजाद उत्तर प्रदेश में अकेले लड़कर कौन सा तीर मार लेंगे?
पिता मुलायम से सीखा चरखा दांव यूं चला अखिलेश ने
दरअसल, इन सवालों के जवाब ना तो इन नेताओं के पास है और ना ही जनता ये समझ पाई है कि ये किस सियासत का हिस्सा हैं. दरअसल 2024 का खेल ये नेता भी समझ रहे थे और अखिलेश यादव भी. मगर सपा संस्थापक मुलायम सिंह के जिस चरखा दांव की चर्चा हमेशा सियासत में होती रही है उसे अखिलेश यादव ने इन नेताओं के साथ चल दिया. अखिलेश का यह चरखा दांव सिर्फ समानांतर तैयार हो रहे पीडीए के इन नेताओं के खिलाफ ही नहीं बल्कि कांग्रेस के खिलाफ भी था. अखिलेश ने ऐसा चरखा चला कि कांग्रेस के पांव तले जमीन खिसक गई और समानांतर PDA बना रहे ये नेता ना घर के रहे ना घाट के!
अखिलेश पर था ये दबाव
ये सभी नेता अपने लिए या अपनों के लिए अखिलेश यादव पर ज्यादा से ज्यादा टिकटों का दबाव बना रहे थे. पल्लवी पटेल तीन सीट चाहती थीं, स्वामी प्रसाद मौर्य अपने बेटे और आधा दर्जन समर्थकों के लिए टिकट चाहते थे. चंद्रशेखर आजाद अखिलेश के गठबंधन में चार सीटें मांग रहे थे. सलीम शेरवानी अपने लिए राज्यसभा का टिकट और अपने समर्थकों के लिए लोकसभा का टिकट चाहते थे. जबकि केशव देव मौर्य भी लोकसभा की दावेदारी मांग रहे थे. मगर अखिलेश यादव यह सब देने को तैयार नहीं थे.
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अखिलेश से नाराज इन सभी नेताओं ने कांग्रेस की राह पकड़ने का इरादा बनाया. बताया जाता है कि राज्यसभा चुनाव के पहले एक समानांतर PDA ग्रुप भी बनकर तैयार था, जो अखिलेश यादव के PDA का जवाब भी था. और एक ग्रुप के तौर पर कांग्रेस के साथ गठबंधन को भी तैयार था. कहा जाता है कि स्वामी प्रसाद मौर्य इस ग्रुप को लीड कर रहे थे कि अगर कांग्रेस ने समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन नहीं किया तो उनका यह काल्पनिक PDA कांग्रेस के साथ खड़ा होगा और फिर कांग्रेस के साथ मिलकर बीजेपी से मुकाबला करेगा.
याद करिए कुछ हफ्ते पहले का वह दौर जब अखिलेश यादव बार-बार कांग्रेस पार्टी को गठबंधन में सीटों को जल्द ही फाइनल करने की बात कह रहे थे. लेकिन कांग्रेस टाल-मटोल कर रही थी और ये नेता या तो अखिलेश का साथ छोड़ रहे थे या PDA को लेकर अखिलेश पर वार कर रहे थे.
अखिलेश पर लगाया था PDA विरोधी होने का आरोप
यह वही वक्त था जब पलवी पटेल ने राज्यसभा में सवर्ण प्रत्याशियों को मुद्दा बनाकर अखिलेश यादव पर PDA को ठगने का आरोप लगाया और खुद के ओरिजिनल PDA होने का दावा किया. ये वही वक्त था जब स्वामी प्रसाद मौर्य ने समाजवादी पार्टी से इस्तीफा दे दिया था और एमएलसी की सीट भी छोड़ दी थी. ये वही वक्त था सलीम शेरवानी और आबिद रजा जैसे मुस्लिम चेहरों ने सपा पर मुसलमानों की उपेक्षा का आरोप लगाकर छोड़ दिया था.
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अखिलेश ने चल दिया चरखा दांव
इन सभी नेताओं को पक्का यकीन था कि कांग्रेस पार्टी समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन में नहीं जाएगी क्योंकि लगभग समाजवादी पार्टी अकेले लड़ने की तैयारी कर चुकी थी. और वह कांग्रेस को दर्जन भर से ज्यादा सीटें देने को तैयार नहीं थी. स्वामी प्रसाद मौर्य कांग्रेस पार्टी के बड़े नेताओं के संपर्क में थे. पल्लवी पटेल सीधे गांधी परिवार की टच में थीं और इन नेताओं ने लगभग समानांतर पीडीए तैयार भी कर लिया था. मगर तभी अखिलेश यादव ने मुलायम सिंह का आजमाया हुआ पुराना चरखा दांव चल दिया.
इंडिया ब्लॉक के सभी बड़े घटकों ने कांग्रेस पार्टी को आगाह कर दिया कि अगर अखिलेश यादव से गठबंधन नहीं हुआ तो फिर इंडिया ब्लॉक टूट जाएगा. ऐसे में कांग्रेस पार्टी के साथ इस गठबंधन में आने के सिवाय कोई रास्ता नहीं बचा और अखिलेश यादव ने भी कांग्रेस के लिए 17 सीटों का ऐलान कर बता दिया कि वह कांग्रेस के साथ ही जा रहे हैं. राहुल और प्रियंका के इस मामले में आखिरी वक्त पर इंटरवेंशन के बाद सपा और कांग्रेस की डील फाइनल हो गई और समानांतर पीडीए बनाकर चल रहे ये नेता सड़क पर आ गए.
चूंकि अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश में इंडिया गठबंधन के कोऑर्डिनेशन को देख रहे थे. ऐसे में सभी पार्टियों को अखिलेश यादव से ही सीटें तय करनी थी. एक बार कांग्रेस और सपा की डील तय हो गई, उसके बाद यह सभी नेता ना घर के रहे ना घाट के. कांग्रेस पार्टी उनकी तरफ से अखिलेश यादव से बात करने की कोशिश करती रही, लेकिन जब वह अपने नेताओं के टिकट के लिए अखिलेश पर दबाव बना पाने की स्थिति में नहीं थी तो फिर इन नेताओं के लिए कितना दबाव बना पाती.
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कांग्रेस की हालत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पल्लवी पटेल, राहुल गांधी की दोनों रैलियों में शामिल हुईं, वाराणसी में राहुल की जीप पर दिखाई दीं तो भारत जोड़ो नया यात्रा के समापन में मुंबई के मंच पर थीं. मगर कांग्रेस पार्टी पल्लवी पटेल की कोई मदद नहीं कर पाई.
बताया जा रहा है कि कांग्रेस पार्टी ने ही पल्लवी पटेल को ये सुझाव दे दिया कि जब बात नहीं बन पा रही तब वह अपनी तीन सीटों पर उम्मीदवार उतार दे. यही नहीं कांग्रेस के उत्तर प्रदेश के प्रभारी अब अखिलेश यादव से स्वामी प्रसाद मौर्य को दोबारा एडजस्ट करने का आग्रह कर रहे हैं. कुल मिलाकर कांग्रेस पार्टी ने इस काल्पनिक समानांतर PDA को हवा तो दी, लेकिन उनका साथ नहीं दे पाई. अब ये सभी नेता बीच मझधार में अटक गए हैं.
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