गोरखपुर की नालियों में बहता है सोना, कचड़े से सोना निकालने में लगते हैं 4 घंटे, जानें कैसे

विनित पाण्डेय

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‘मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे-मोती…’ यह गाना तो आपने सुना होगा, लेकिन गोरखपुर की नालियों में बहते कीचड़ भी सोना उगलते हैं. यह सुनकर कोई भी हैरेत में पड़ जाएगा. लेकिन बात यह पूरी तरह सच है. क्या आपको पता है कि गोरखपुर ही नहीं बल्कि करीब सभी शहरों में एक ऐसी जगह होती है, जहां कीचड़ में सोना बहता है? जी हां, आज हम आपको बताएंगें कि गोरखपुर में एक ऐसी जगह है, जहां वास्तव में कीचड़ में सोना बहता है.

इतना ही नहीं बल्कि हर रोज इन कचड़ों से सोना तराशने वालों की भीड़ जमा होती है और प्रतिदिन यहां के कचड़ों से मिलने वाले सोने को बेचकर 100 से अधिक परिवार अपनी आजीविका चला रहे हैं. ऐसा नहीं है कि इस जगह को किसी ने देखा नहीं है, बल्कि आप ने भी इन जगहों से गुजरते वक्त कचड़ों से सोना निकालने वाले बहुत से लोगों को देखा होगा, लेकिन शायद इसपर कभी ध्यान नहीं दिया हो.

आइए सोना उगलने वाली नालियों के बारे में जानते हैं…

गोरखपुर की एक ऐसी जगह है, जहां हर रोज कचड़ों में बहता सोना पाया जाता है. वह जगह है शहर के घंटाघर स्थित सोनारपट्टी. यह तो आप जानते ही होंगे कि सिर्फ घंटाघर ही नहीं बल्कि ऐसी बहुत सी जगह है, जहां सोने के जेवरात की कारीगिरी करने वाली सैकड़ों दुकाने हैं.

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बता दें कि इन जगहों पर कारीगिरी करते वक्त सोने को छोटा-मोटा कण अक्सर छिटककर गायब हो जाता है. साथ ही काम करने के दौरान औजार आदि में भी छोटे कण चिपक जाते हैं, जो कि बाद में धुलाई के दौरान एसिड में मिल जाते हैं और बाद में कारीगर भी इन कणों को वापस खोजने पर कभी ध्यान नहीं देते और एसिड भी फेंक देते है. जो कि बहकर नाली में चला जाता है. क्योंकि यह इतना छोटा होता है कि इसे दोबारा खोजना मुश्किल ही नहीं बल्कि सामान्य लोगों के लिए नामुमकिन होता है. ऐसे में शहर के सैकड़ों डोम जाति के लोग रोज सुबह इन दुकानों के बाहर के कचड़ों को इक्कठा करते हैं. इसे कहते हैं निहारी.

तेजाब और पारे से गलाकर बेच देते सोना

यह लोग इसके बाद इन कचड़ों को एक तसले में रखकर नाली के ही गंदे पानी से इसे चालते हैं. इस दौरान घंटों तक कचड़े को चालते रहते हैं और इसमें से खराब कचड़े को ऊपर से निकालते हैं. काफी मेहनत के बाद आखिरी में बचा हुआ शेष इक्कठा कर इसे तेजाब और पारे से गला दिया जाता है. तब जाकर इन कचड़ों से नाम-मात्र का सोना निकलता है. यह लोग फिर इस सोने को सोनार के पास बेच देते हैं और यह पैसे ही उनकी आमदनी का जरिया है.

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बंजारों का है खानदानी पेशा

जब इन कचड़ों से निकलने वाले सोने की पूरी पड़ताल की गई तो पता चला कि यह पेशा खासकर नागपुर और झांसी आदि जगहों से आए बंजारों का है. लेकिन एक से दो घंटे की मेहनत में दो-चार सौ रुपए की कमाई को देखकर इन दिनों यहां के डोम जाति के लोग भी इस काम में उतर आए हैं.

हमने जब निहारी करने वाले इन लोगों से बातचीत की तो पता चला कि शहर में करीब सैकड़ों लोग यह काम करते हैं. खासबात यह है कि इस काम में ज्यादातर महिलाएं ही शामिल हैं. इतना ही नहीं इनमें से कई महिलाएं तो इस काम में ही अपनी पूरी जिंदगी भी बीता चुकी हैं.

नदी में डुबकर भी निकालते हैं सोना

बीते करीब 45 साल से निहारी का काम करने वालों के मुताबिक इस काम में ऐसे बहुत सारे लोग हैं, जो कि श्मशान घाट स्थित नदी में डुबकर सोना निकालते हैं. यह लोग बताते हैं कि दाह संस्कार के दौरान ज्यादातर महिलाओं के शव से जेवरात नहीं निकाले जाते हैं.

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ऐसे में दाह संस्कार के बाद जब नदी में इनका अस्ती विसर्जन होता है तो उसमें जेवरात आदि भी रहते हैं. अस्तियों की राख तो पानी में डालते ही बह जाती है, लेकिन सोने के जेवरात पानी में डूब जाते हैं. बाद में पानी में निहारी करने वाले लोग काफी देर-देर तक नदी में डुबकी लगाकर सोना निकालते हैं.

हजारों में बिकता है निहारी का कचड़ा

ऐसे तो हम सभी के घरों में सफाई के बाद कचड़े फेंक दिए जाते हैं. लेकिन सोने की कारीगिरी की दुकानों पर कचड़ा फेंका नहीं जाता, बल्कि एक डिब्बे में इक्कठा किया जाता है. यह जानकर आपको हैरानी जरूर होगी कि जब यह डिब्बे भर जाते हैं तो इन डिब्बों में भरे कचड़ों की कीमत भी हजारों में होती है. इन कचड़ों को भी यह निहारी करने वाले लोग बकायदा इसका रेट तय कर इसे खरीद लेते हैं और फिर इसमें से भी सोना तराशते हैं.

गंदा काम है…सब लोग नहीं कर सकते

इस काम को 40 साल से करने वाली रजिया बताती हैं, ”मेरे पति दिव्यांग हैं. परिवार में और कोई कमाने वाला नहीं है. इसी काम के जरिए रोज दो- चार सौ रुपए की आमदनी हो जाती है. इसी से परिवार का खर्चा चलता है.”

वहीं गोपाल नामक शख्स बताते हैं कि वे इस काम को 15 साल से कर रहे हैं. तीन से चार घंटे के मेहनत के बाद अच्छी कमाई हो जाती है. चूंकि गंदा काम है, हर कोई कर नहीं सकता. इसलिए यह काम सभी लोग नहीं करते हैं.

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