IIT-BHU यौन उत्पीड़न के आरोपियों के घर क्यों नहीं हुआ 'बुल्डोजर एक्शन'? सामने आई बड़ी वजह

रोशन जायसवाल

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Varanasi News: नवंबर 2023 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (IIT-BHU) की बीटेक सेकंड ईयर की एक छात्रा के यौन उत्पीड़न का मामला सामने आया था. इस मामले में तीन आरोपी गिरफ्तार किए गए थे, जिनका भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) से संबंध होने का दावा किया गया था. अब, हाई कोर्ट ने इनमें से दो आरोपियों को जमानत दे दी है, जिससे योगी आदित्यनाथ की सरकार पर सवाल उठने लगे हैं.  कहा जा रहा है कि जिस सरकार का दावा ‘त्वरित कार्रवाई, तुरंत न्याय’ का है, उसने इस मामले में पक्षपात किया है. हालांकि, पुलिस ने इन आरोपों को खारिज कर दिया है. 

क्या है मामला?

यह घटना नवंबर 2023 की एक रात की है जब बीएचयू की एक छात्रा अपने साथी के साथ कृषि संस्थान के पास से गुजर रही थी.  तभी कुछ बाहरी लोगों ने उन्हें घेर लिया और छात्रा का कथित रूप से यौन उत्पीड़न किया. पीड़िता ने बताया कि आरोपियों ने जबरन कपड़े उतरवाए, उसे पीटा और उसकी तस्वीरें खींची. इस घटना के बाद बीएचयू के छात्रों ने बड़े पैमाने पर आंदोलन किया, जिसके परिणामस्वरूप पुलिस ने सीसीटीवी फुटेज और पीड़िता के बयान के आधार पर जांच की और 30 दिसंबर को तीन आरोपियों को गिरफ्तार किया.

 

 

आरोपियों के बीजेपी आईटी सेल से जुड़े होने की खबर ने राजनीति में हलचल मचा दी. हालांकि, घटना के बाद पार्टी ने तीनों को निष्कासित कर दिया था. इसके बावजूद विपक्ष ने योगी सरकार पर आरोप लगाया कि पार्टी से जुड़े लोगों पर नरमी बरती जा रही है.  गिरफ्तारी में देरी और आरोपियों के घरों पर बुल्डोजर न चलाने के कारण यह मामला और भी विवादित हो गया है. 

इस मुद्दे पर पुलिस ने भी अपनी सफाई दी है. काशी जोन के डीसीपी गौरव बांसवाल ने बताया कि तीनों आरोपियों पर चार्जशीट पेश करते समय गैंगस्टर एक्ट के तहत कार्रवाई की गई थी. जब उनसे बुल्डोजर कार्रवाई के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने स्पष्ट किया कि बुल्डोजर कार्रवाई एक सिविल मामला है और पुलिस के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता. उन्होंने यह भी कहा कि अवैध निर्माण के खिलाफ प्रशासन द्वारा ऐसी कार्रवाई की जाती है, न कि पुलिस द्वारा.

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सुप्रीम कोर्ट ने ‘बुल्डोजर एक्शन’ पर क्या कहा?

सुप्रीम कोर्ट में भी ‘बुल्डोजर एक्शन’ को लेकर याचिकाएं दाखिल की गई हैं. याचिकाकर्ताओं का कहना है कि इस तरह की कार्रवाई को सजा के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है, विशेष रूप से अल्पसंख्यकों और हाशिए पर पड़े समुदायों के खिलाफ. कोर्ट ने इस मुद्दे पर कहा कि किसी भी व्यक्ति का घर सिर्फ इसलिए नहीं गिराया जा सकता क्योंकि वह किसी अपराध में शामिल है. यह कार्रवाई केवल नगरपालिका कानूनों के प्रावधानों के तहत की जानी चाहिए.

 

 

इस पूरे मामले ने न केवल यूपी की कानून-व्यवस्था पर सवाल उठाए हैं, बल्कि राजनीतिक दलों के आंतरिक संबंधों और प्रशासनिक निष्पक्षता पर भी बहस को जन्म दिया है. देखना होगा कि इस मामले में आगे क्या कार्रवाई होती है और न्याय कैसे सुनिश्चित किया जाता है.

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