सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद AMU में कैसा है माहौल? अंदर कैंपस में चल रहा ये सब कुछ

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 अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी
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AMU Latest News: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) को लेकर एक बड़ा फैसला सुनाया. सुप्रीम कोर्ट ने AMU के अल्पसंख्यक दर्जे संबंधी मामले को नई पीठ के पास भेजने का निर्णय लिया और 1967 के फैसले को खारिज कर दिया जिसमें कहा गया था कि विश्वविद्यालय को अल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना जा सकता क्योंकि इसकी स्थापना केंद्रीय कानून के तहत की गई थी. अब सबसे बड़ा सवाल यही है कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद AMU का माहौल कैसा है. बता दें कि इसी को लेकर AMU के प्रॉक्टर प्रोफेसर मोहम्मद वसीम ने बड़ा बयान दिया है. 

उन्होंने कहा, "एएमयू में फिलहाल माहौल शांत है. आज पूरे दिन सारी क्लासेस हुई हैं. जहां एग्जाम थे, वहां एग्जाम भी हुए हैं. बिल्कुल सिचुएशन नॉर्मल है. किसी भी तरीके की कोई लॉ एंड ऑर्डर की सिचुएशन नहीं है. आज फ्राइडे है. साढ़े बारह बजे सारी क्लास खत्म हो जाती हैं. अब फैकल्टीज बंद हो गई हैं. बच्चे अपने-अपने हॉस्टल जा चुके हैं."

 

 

प्रोफेसर ने फैसले को लेकर क्या कहा?

प्रॉक्टर प्रोफेसर मोहम्मद वसीम ने कहा, "जो पहली इन्फॉर्मेशन सामने आई है, उसमें यह है कि अजीज बाशा का जो पांच बेंच का जजमेंट था, उसको सुप्रीम कोर्ट ने ओवर रूल कर दिया है. और आगे कोई बेंच बना दी है, जो स्टेटस को तय करेगी. पूरे जजमेंट को पढ़ने के बाद में ही सही प्रतिक्रिया दी जा सकती है."

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SC ने फैसले में क्या कहा?

प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने बहुमत का फैसला सुनाते हुए एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे के मुद्दे पर विचार के लिए मानदंड निर्धारित किए. सुप्रीम कोर्ट ने 4:3 के बहुमत में कहा कि मामले के न्यायिक रिकॉर्ड को प्रधान न्यायाधीश के समक्ष प्रस्तुत किया जाना चाहिए ताकि 2006 के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले की वैधता पर निर्णय करने के लिए एक नई पीठ गठित की जा सके. गौरतलब है कि जनवरी 2006 में उच्च न्यायालय ने 1981 के कानून के उस प्रावधान को रद्द कर दिया था जिसके तहत एएमयू को अल्पसंख्यक का दर्जा दिया गया था. 

अदालत की कार्यवाही शुरू होने पर प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने कहा कि चार अलग-अलग मत हैं जिनमें तीन असहमति वाले फैसले भी शामिल हैं.  प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि उन्होंने अपने और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा के लिए बहुमत का फैसला लिखा है.  न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा ने अलग-अलग असहमति वाले फैसले लिखे हैं. 

 

 

मालूम हो कि पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 1967 में एस अजीज बाशा बनाम भारत संघ मामले में फैसला दिया था कि चूंकि एएमयू एक केंद्रीय विश्वविद्यालय है, इसलिए इसे अल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना जा सकता. हालांकि, 1981 में संसद द्वारा एएमयू (संशोधन) अधिनियम पारित किए जाने पर इस प्रतिष्ठित संस्थान को अपना अल्पसंख्यक दर्जा पुनः मिल गया था. 

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