तो क्या अब रामचरितमानस विवाद से दूरी बना रही है समाजवादी पार्टी? जानिए इनसाइड स्टोरी
Ramcharitmanas Controversy: कई हफ्तों तक रामचरितमानस विवाद पर घूर बयानबाजी और शूद्र सियासत पर चर्चा के बाद अब समाजवादी पार्टी अपनी पुरानी लाइन की ओर…
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Ramcharitmanas Controversy: कई हफ्तों तक रामचरितमानस विवाद पर घूर बयानबाजी और शूद्र सियासत पर चर्चा के बाद अब समाजवादी पार्टी अपनी पुरानी लाइन की ओर लौट रही है. समाजवादी पार्टी ने एक पत्र जारी कर सभी जिलाध्यक्ष, निवर्तमान जिला अध्यक्ष, महानगर अध्यक्ष, सांसद, पूर्व सांसद, विधायक, पूर्व विधायक, प्रकोष्ठों के राष्ट्रीय अध्यक्ष, प्रदेश अध्यक्ष, जिला अध्यक्ष, महानगर अध्यक्ष एवं टीवी पैनेलिस्ट तथा सभी प्रमुख नेताओं को संबोधित करते हुए लिखा है कि ‘समाजवादी पार्टी को यह निर्देश दिया जाता है कि पार्टी लोहिया के आदर्शों से प्रेरणा लेकर लोकतंत्र धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद में आस्था बनाई रहेगी रहेगी. साथ ही बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, महिलाओं और बच्चियों की अपमानजनक स्थिति आदि मुद्दे उठाएगी.’
सपा के अनुसार, पार्टी अब जातीय जनगणना की अपनी मांग पर सबसे ज्यादा जोर देगी और सांप्रदायिक और धार्मिक मुद्दों पर बहस करने से परहेज करेगी. सपा ने पत्र लिखकर कहा है कि ‘धार्मिक मुद्दा संवेदनशील मामला है और हमें इन मामलों पर बहस में नहीं उलझना चाहिए.’
इस पत्र से साफ हो गया है कि अब समाजवादी पार्टी धार्मिक और संवेदनशील मुद्दों से इतर अपने पुरानी लाइन पर लौट रही है और रामचरितमानस विवाद से दूरी बनाती दिख रही है.
कल यानी गुरुवार को एक तरफ अखिलेश यादव की तरफ से यह पत्र मुख्य प्रवक्ता और वरिष्ठ नेता राजेंद्र चौधरी ने प्रदेश के सभी नेताओं के लिए जारी किया, तो दूसरी तरफ प्रमुख राष्ट्रीय महासचिव रामगोपाल यादव ने अपनी पार्टी को ‘शिवजी की बारात’ कहते हुए यह कहा कि इसमें सभी विचारों के लोग हैं, लेकिन हमारी आस्था समाजवादी विचारधारा में है. शिवपाल यादव भी रामचरितमानस विवाद पर कह चुके हैं कि यह सिर्फ और सिर्फ स्वामी प्रसाद मौर्य के निजी विचार हैं.
जिस तरीके से रोली तिवारी मिश्रा और रिचा राजपूत को पार्टी ने बर्खास्त किया, उसके बाद अपने मीडिया पैनेलिस्ट और सभी प्रमुख नेताओं को पार्टी की लाइन पर चलने और पार्टी लाइन से बाहर नहीं जाने की चेतावनी दी, इससे साफ हो गया है कि अब समाजवादी पार्टी रामचरितमानस विवाद को तूल देना नहीं चाहती है और उससे दूरी बनाती हुई दिखाई दे रही है.
कैसे हुई थी रामचरितमानस विवाद की शुरुआत?
गौरतलब है कि स्वामी प्रसाद मौर्य ने पिछले महीने 22 जनवरी को श्रीरामचरितमानस की एक चौपाई का जिक्र करते हुए कहा था कि उनमें पिछड़ों, दलितों और महिलाओं के बारे में आपत्तिजनक बातें लिखी हैं, जिससे करोड़ों लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंचती है. लिहाजा इस पर पाबंदी लगा दी जानी चाहिए.
मौर्य की इस टिप्पणी को लेकर काफी विवाद उत्पन्न हो गया था. साधु–संतों तथा भाजपा के वरिष्ठ नेताओं ने उनकी कड़ी आलोचना की थी. उनके खिलाफ लखनऊ में मुकदमा भी दर्ज किया गया. उनके समर्थन में आए एक संगठन के कार्यकर्ताओं ने रविवार को श्रीरामचरितमानस के कथित आपत्तिजनक अंश की प्रतियां जलाई थीं.
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