गुजरात से यूपी लाए जा रहे अतीक अहमद की गाड़ी क्यों नहीं पलटेगी, यहां समझिए

अनुपम मिश्रा

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पूर्व सांसद और बाहुबली अतीक अहमद को गुजरात की साबरमती जेल से यूपी के प्रयागराज लाया जा रहा है. अतीक को लेकर आ रहा यूपी पुलिस का काफिला झांसी को पार कर गया है. यूपी तक की टीम गुजरात से ही इस काफिले को फॉलो कर रही है और आपको पल-पल की अपडेट दे रही है. इस बीच बिकरु कांड के विकास दुबे की तरह अतीक की गाड़ी पलटने से जुड़ी चर्चाएं भी सोशल मीडिया पर काफी जोरों पर हैं. ऐसा इसलिए भी क्योंकि बीजेपी सांसद सुब्रत पाठक, यूपी के सहकारिता मंत्री जेपीएस राठौड़ जैसे कुछ नेता इस बात को सार्वजनिक तौर पर कह भी चुके हैं. हालांकि वरिष्ठ पत्रकार और प्रयागराज समेत सत्ता प्रतिष्ठानों और अतीक की नब्ज को समझने वाले अनुपम मिश्रा गाड़ी पलटने की थ्योरी में यकीन रखते नजर नहीं आ रहे हैं.

आइए आपको उनकी नजर से दिखाते हैं कि क्यों उन्हें लगता है कि अतीक अहमद की गाड़ी नहीं पलटेगी. यहां से नीचे आप पढ़िए अनुपम मिश्रा का लेख…

ऐसी कोई भी धारणा कि अतीक अहमद के साबरमती से प्रयागराज आने के दौरान कोई हादसा हो सकता है या विकास दुबे की तर्ज़ पर गाड़ी पलट सकती है, यह पूरी तरह से आधारहीन है. इसमें दो राय नहीं है कि दिन-दहाड़े उमेश पाल हत्याकांड के बाद योगी सरकार बहुत दबाव में है. आज एक महीना बीत जाने के बाद भी हत्यारों का पकड़ा न जाना योगी सरकार की जीरो टॉलरेंस नीति को गंभीर चुनौती है. ऐसे में जनसाधारण की भावनाओं को देखते हुए किसी भी सरकार पर एनकाउंटर के जरिए त्वरित न्याय दिलाने का दबाव बढ़ जाता है. मगर इस पूरे मामले का एक और पहलू भी है. 

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कल यानी 28 मार्च को उमेश पाल अपहरण केस में फैसला आने वाला है. उल्लेखनीय है कि अपनी मौत से पहले इस केस में उमेश पाल की गवाही पूरी हो चुकी थी. माना जा रहा है कि इसमें अतीक अहमद को सजा हो जाएगी. धाराएं इतनी सख़्त हैं कि आजीवन कारावास की पूरी संभावना है.

यदि ऐसा होता है तो अतीक अहमद के तकरीबन 40 साल के आपराधिक जीवन में पहली बार उसे किसी मामले में सजा होगी. योगी आदित्यनाथ के शासनकाल की इससे बड़ी उपलब्धि नहीं हो सकती कि कानूनी तरीक से एक दुर्दांत माफिया को उसके अंजाम तक पहुंचाया जाए.  

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मुख्यमंत्री को यह कहने का मौका मिल जाएगा (और जो गलत भी नहीं होगा) कि एक अच्छी क़ानून व्यवस्था की सरकार में अदालती प्रक्रिया के जरिए भी अपराधियों को सख्त सजा दिलाई जा सकती है और न्याय का दावा गंभीरता से किया जा सकता है. 

उल्लेखनीय है कि सौ से ज्यादा गंभीर आपराधिक मामलों के बाद भी अतीक़ अहमद का कोई भी मुक़दमा आज तक फैसले की स्थिति तक ही नहीं पहुंचा है. पुलिस को गवाह नहीं मिलते थे, मिलते थे तो पलट जाते थे. सुनवाई टलती रहती थी और नतीजा ये कि इतने लंबे आपराधिक जीवन में अतीक पर कोई भी अपराध सिद्ध नहीं हो पाया. 

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ऐसे में क़ानूनी प्रक्रिया का पालन करते हुए यदि अतीक पर दोष सिद्ध हो जाता है और उसे एक लंबी सजा हो जाती है तो लोगों के मन में कानून और न्याय के प्रति शायद पहली बार विश्वास पैदा हो सकता है. इन हालातों में योगी आदित्यनाथ की सरकार की प्राथमिकता अतीक अहमद को साबरमती से प्रयागराज तक पूरी हिफाजत से लाने और 28 मार्च को उसको अदालत में भी सही-सलामत पेश करने की होगी, जिसमें उसकी उपस्थिति में उसे दोषी ठहरा कर सज़ा सुनाई जा सके. 

शायद उमेश पाल की हत्या और उनके साथ मारे गए यूपी पुलिस के दो सिपाहियों की शहादत का इससे बड़ा प्रतिकार नहीं हो सकता.

(अनुपम मिश्रा वरिष्ठ पत्रकार हैं. इस लेख में व्यक्त किए गए विचार, लेखक की निजी राय है)

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