Atul Subhash Suicide Case : बेंगलुरू में AI इंजीनियर अतुल सुभाष की आत्महत्या के मामले में उसकी मां अंजू देवी मोदी ने न्याय पाने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. इस मामले में अब जस्टिस बी वी नागरत्ना और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह ने उत्तर प्रदेश, हरियाणा और कर्नाटक की सरकारों को नोटिस जारी किया है. कोर्ट ने इन तीनों राज्यों से इस बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका यानी हैबियस कॉर्पस पर दो हफ्तों में जवाब देने के लिए कहा है.
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अतुल सुभाष की मां ने की ये मांग
अंजू मोदी ने याचिका में अपने पोते की कस्टडी की मांग की है. बता दें कि अतुल सुभाष का साढ़े चार साल का बेटा है. याचिका में यह दावा किया गया है कि बच्चे का इस समय कोई पता नहीं चल पा रहा है.अतुल की पत्नी निकिता ने बच्चे का स्थान बताने से इंकार कर दिया है. निकिता, उसका भाई अनुराग सिंघानिया और मां निशा सिंघानिया भी फिलहाल हिरासत में हैं. इसलिए, अंजू मोदी ने आग्रह किया है कि इनसे पूछताछ की जाए और बच्चे की कस्टडी उन्हें सौंपी जाए.
कहां है अतुल सुभाष का बेटा
निकिता ने पुलिस को बताया कि बच्चा फरीदाबाद के बोर्डिंग स्कूल में पढ़ रहा है और उसकी कस्टडी उसके ताऊ सुशील सिंघानिया के पास है. परंतु, सुशील ने बच्चे की कस्टडी या उसके बारे में किसी भी जानकारी से इनकार किया है. क्योंकि इस मामले का उत्तर प्रदेश, हरियाणा और कर्नाटक तीनों राज्यों से संबंध है इसलिए सुप्रीम कोर्ट से इसमें दखल देने की मांग की गई है. कोर्ट से आग्रह किया गया है कि बच्चे को बरामद कर कोर्ट के समक्ष लाया जाए. मामले की अगली सुनवाई 7 जनवरी को होगी.
क्या होता है हेबियस कॉर्पस पीटिशन
हैबियस कॉर्पस पीटिशन भारतीय संविधान द्वारा नागरिकों को दिए गए महत्वपूर्ण अधिकारों में से एक है. इसके माध्यम से नागरिकों को उनके व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा मिलती है. संविधान के अनुच्छेद 22 के अंतर्गत यह अधिकार प्रदान किया गया है, जिसमें कोई भी व्यक्ति, जिसे अवैध रूप से हिरासत में लिया गया हो, या जिसे कानूनी प्रक्रिया के बिना हिरासत में रखा गया हो, सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट में हैबियस कॉर्पस पीटिशन दाखिल कर सकता है. इस रिट का मुख्य उद्देश्य किसी अवैध रूप से हिरासत में लिए गए व्यक्ति को रिहा कराना है. अगर किसी व्यक्ति को गिरफ्तार किया जाता है, तो उसे 24 घंटे के भीतर अदालत में पेश करना आवश्यक होता है. जब इस प्रक्रिया का उल्लंघन होता है, तो हैबियस कॉर्पस पीटिशन के माध्यम से अदालती सहायता प्राप्त की जा सकती है.
इस याचिका को दायर करने का अधिकार उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय दोनों के पास है. अनुच्छेद 32 के तहत सुप्रीम कोर्ट और अनुच्छेद 226 के तहत हाईकोर्ट नागरिकों को यह अधिकार प्रदान करते हैं. जब यह याचिका दायर की जाती है, तो अदालत सक्षम अधिकारी को आदेश देती है कि गिरफ्तार व्यक्ति को अदालत में पेश किया जाए और गिरफ्तारी का वैध कारण प्रस्तुत किया जाए.
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