जासूसी के आरोप से बाइज्जत बरी हुए और अब बनेंगे जज! कानपुर के प्रदीप कुमार की कहानी इंट्रेस्टिंग है

पंकज श्रीवास्तव

• 03:28 PM • 19 Dec 2024

Allahabad High Court : हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ता प्रदीप कुमार को 15 जनवरी 2025 तक नियुक्ति पत्र जारी करने का निर्देश दिया है. उन्होंने 2017 में यूपी उच्च न्यायिक सेवा की परीक्षा पास की थी.

इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट (फाइल फोटो)

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Uttar Pradesh News : इलाहाबाद हाई कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को निर्देश दिया है कि वह एक ऐसे व्यक्ति को अतिरिक्त जिला जज (एडीजे) के रूप में नियुक्त करे, जिसे पहले पाकिस्तान के लिए जासूसी और देशद्रोह के आरोपों का सामना करना पड़ा था, लेकिन दोनों मामलों में उन्हें "बाइज्जत बरी" कर दिया गया था.  जासूसी के आरोपों के कारण याचिकाकर्ता को लगभग सात साल पहले इस पद पर नियुक्त करने से मना कर दिया गया था. आपको बता दें कि इनका नाम प्रदीप कुमार है और इनपर 2002 में पाकिस्तान के लिए जासूसी करने का आरोप लगाया गया था. प्रदीप 2014 में उस मुकदमे में बरी कर दिए गए थे. इसके बावजूद यूपी उच्चतर न्यायिक सेवा (सीधी भर्ती) परीक्षा में उनके अंतिम चयन के बावजूद , उन्हें नियुक्ति पत्र देने से इंकार कर दिया गया था. 

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15 जनवरी तक नियुक्ति का आदेश

हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ता प्रदीप कुमार को 15 जनवरी 2025 तक नियुक्ति पत्र जारी करने का निर्देश दिया है. उन्होंने 2017 में यूपी उच्च न्यायिक सेवा की परीक्षा पास की थी. जस्टिस सौमित्र दयाल सिंह और जस्टिस दोनादी रमेश की पीठ ने कहा कि राज्य के पास ऐसा कोई साक्ष्य मौजूद नहीं है जिससे यह निष्कर्ष निकाला जा सके कि याचिकाकर्ता ने किसी विदेशी खुफिया एजेंसी के लिए काम किया है. कोर्ट ने कहा कि मुकदमे में उसे बरी किया जाना सम्मानजनक है. खंडपीठ ने कहा कि याची को उसके विरुद्ध चलाए गए दो आपराधिक मुकदमों में “सम्मानपूर्वक बरी” किया गया था, किसी भी मामले में अभियोजन पक्ष की कहानी में सच्चाई का कोई तत्व नहीं पाया गया था. उन आदेशों को अंतिम रूप दे दिया गया है. कोर्ट ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता को बरी किये जाने से उस पर लगा कलंक प्रभावी रूप से मिट जाना चाहिए था,उसे किसी भी निराधार संदेह से मुक्त होकर अपने जीवन और कैरियर में आगे बढ़ने की अनुमति मिल जानी चाहिए थी. 

अदालत के समक्ष अतिरिक्त मुख्य स्थायी अधिवक्ता ने तर्क दिया था कि याची पर 2002 में एक दुश्मन देश पाकिस्तान के लिए जासूस के रूप में काम करने के गंभीर आरोप थे,और उसे राज्य सरकार के विशेष कार्य बल (एसटीएफ) और सैन्य खुफिया के संयुक्त अभियान में गिरफ्तार किया गया था. उन्होंने यह भी तर्क दिया कि यद्यपि आपराधिक मुकदमे विफल हो गए फिर भी राज्य सरकार के पास यह निष्कर्ष निकालने के लिए पर्याप्त सामग्री थी कि याचिकाकर्ता के चरित्र को प्रमाणित नहीं किया जा सकता है. इस प्रकार, वह नियुक्ति के लिए पूरी तरह से अयोग्य था. 

कोर्ट ने यह भी कहा कि मुकदमे के दौरान ऐसा कोई सबूत पेश नहीं किया गया,जिससे साबित हो सके कि याचिकाकर्ता ने देश के हितों के खिलाफ काम किया है,अथवा किसी साजिश में शामिल रहा है या आईपीसी की धारा 124-ए के तहत कोई अपराध किया है.  

कोर्ट की टिप्पणी: निर्दोषता स्थापित

इसके अतिरिक्त, न्यायालय ने इस रुख को भी खारिज कर दिया,कि याचिकाकर्ता का मूल्यांकन उसके पिता के पिछले कार्यों के आधार पर किया जाना चाहिए,जिन्हें रिश्वतखोरी के आरोपों के कारण 1990 में न्यायाधीश के पद से बर्खास्त कर दिया गया था. कोर्ट ने कहा, "यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि राज्य सरकार ने याचिकाकर्ता के पिता पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों को उनकी नियुक्ति में बाधा के रूप में प्रस्तुत किया. किसी व्यक्ति का आचरण उसके पिता या पुत्र के कार्यों से आंका नहीं जा सकता.” 

सम्मानपूर्वक बरी होने का महत्व

कोर्ट ने कहा, "सम्मानपूर्वक बरी होना एक व्यक्ति की निर्दोषता की पुष्टि करता है. ऐसे व्यक्ति को उसके अधिकारों से वंचित करना संविधान द्वारा प्रदत्त 'न्याय के शासन' के विरुद्ध होगा." 

अभियोजन और बरी होने का विवरण

प्रदीप कुमार ने 2016 में यूपी उच्च न्यायिक सेवा की परीक्षा के लिए आवेदन किया था. आवेदन में उन्होंने यह जानकारी दी थी कि उनके खिलाफ 2004 में दो सेशन ट्रायल (सेशन ट्रायल नंबर 69 और 236) हुए थे. इन मामलों में एक जासूसी और दूसरा देशद्रोह का था. 6 मार्च 2014 को कानपुर नगर के एडीजे कोर्ट ने उन्हें इन मामलों में बरी कर दिया. 

नियुक्ति में देरी का कारण

2017 में हाई कोर्ट ने चयनित उम्मीदवारों की सूची यूपी सरकार को भेजी थी, लेकिन कुमार का नियुक्ति पत्र जारी नहीं किया गया. इस पर उन्होंने हाई कोर्ट में याचिका दायर की. 

सरकार को निर्देश

हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि वह दो सप्ताह के भीतर कुमार के चरित्र सत्यापन की प्रक्रिया पूरी करे और उनकी नियुक्ति सुनिश्चित करे. कोर्ट ने कहा कि नियुक्ति में देरी न्यायिक प्रक्रिया का उल्लंघन है. 

परिवार और पृष्ठभूमि 

प्रदीप कुमार कानपुर के मेस्टन रोड क्षेत्र में रहते हैं और पांच भाई-बहनों में सबसे छोटे हैं. यह मामला न्यायिक प्रणाली और संविधान के तहत नागरिक अधिकारों की रक्षा का उदाहरण बन गया है. 

(पीटीआई के इनपुट के साथ).

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