बहराइच (Bahraich News) जिले में घाघरा नदी की कटान की त्रासदी से सैकड़ों गांव प्रभावित हैं. कुछ जगहों पर तो गांवों का अस्तित्व ही संकट में है. इसके बावजूद प्रशासनिक इंतजाम इतने नाकाफी हैं कि लोगों को अपने गांव का वजूद और अपनी संपत्ति बचाने के लिए खुद मैदान में उतरना पड़ा है.
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ग्रामीण चंदा जुटा कर कटान से बचाने का भगीरथ प्रयास कर रहे हैं, तो घाघरा को मनाने के लिए पूजा-आरती का सहारा भी लिया जा रहा है. घाघरा के कटान के बड़े पैमाने पर शिकार हो रहा मझारा तौकली और ग्यारह सौ रेती गांव ग्रामीणों द्वारा किए जा रहे श्रम आंदोलन के कारण चर्चा में है.
लगभग कटने की कगार पर खड़े इस गांव से जुड़े ग्रामीणों ने देशी जुगाड के जरिए वो रास्ता खोज निकाला है जो भारी भरकम खर्चे के बिना फौरी तौर पर कटान से राहत देने वाला है. ग्रामीणों ने कटे पेड़ों और उसकी पत्तेदार टहनियों को खूंटे से गड़ी रस्सी से बांध कर नदी के किनारे पानी में डालना शुरू किया है. इससे नदी की लहरें जमीन से सीधे टकराने की बजाय पानी में डाले गए पेड़ों से टकरा रही हैं. इसके चलते कटान पर काफी अंकुश लगा है.
ग्रामीणों ने रस्सी और अन्य सामानों पर होने वाले इस खर्चे के लिए वॉट्सऐप और अन्य माध्यमों से आर्थिक मदद की अपील की है. इसमें लोग बढ़-चढ़कर हिस्सा भी ले रहे हैं. कटान प्रभावित ग्यारह सौ रेती गांव के किनारे हो रहे ग्रामीणों के इस सामूहिक श्रमदान को देखकर रामायण का वह प्रसंग याद आता है जब वानरों के संग गिलहरियां भी समुद्र पर पुल बनाने में जुट गई थीं.
घाघरा नदी से हो रही कटान ने बहराइच जिले की चार तहसीलों कैसरगंज, महसी, नानपारा वा मोतीपुर में बड़े पैमाने पर तबाही मचा रखी है. कटान प्रभावित सैकड़ों गांव के सरकारी स्कूल, पंचायत भवन नदी में जलमग्न हो कर अपना अस्तित्व खो चुके हैं. हर साल बड़े पैमाने पर हो रही कटान से हजारों हेक्टेयर कृषि भूमि नदी की धारा में विलीन हो चुकी है.
त्रासदी का आलम यह है कि यहां के काफी वाशिंदे कटान प्रभावित इलाकों से पलायन कर दूसरे स्थानों पर विस्थापित हो चुके हैं. कई लोग दूरदराज के दूसरे इलाकों में किसी तरह अपना घर बनाकर गुजर बसर कर रहे हैं. कुछ ऐसे भी हैं जो कटान के चलते भूमिहीन होने कारण नदी के किनारे बने तटबंध पर झोपड़ी बनाकर रहने लगे हैं.
ऐसा नहीं है की घाघरा की कटान रोकने के लिए मुकम्मल कार्य योजना पर लोगों ने प्रयास नहीं किया. हालांकि यह मुद्दा भी विधानसभा और संसदीय चुनावों तक सीमित रहा. इस बारे में चर्चाएं और वादे चुनावी जुमले से अधिक आकार नहीं ले सका.
कटान प्रभावित इलाकों का हश्र देखने के बाद कैसरगंज तहसील क्षेत्र के मंझारा तौकली और ग्यारह सौ रेती गांव के लोगों ने अपने स्तर से शासन प्रशासन तक अपनी मांग पहुंचाने की पुरजोर कोशिश की, लेकिन परिणाम शून्य दिखाई पड़ने के बाद ग्रामीणों ने नदी किनारे बैठ कर आमरण अनशन शुरू किया.
ग्रामीणों के शुरू हुए आंदोलन को बढ़ता देख एसडीएम महेश कुमार कैथल ने अन्य अधिकारियों से मिलकर इस आश्वासन के साथ अनशन समाप्त करा दिया कि पानी घटने पर नदी किनारे स्पर बनाया जाएगा. उन्होंने फौरी राहत के लिए ग्रामीणों औक सरयू ड्रेनेज खंड के अधिकारियों की बातचीत कराई, जिसमें अधिकारियों वा ग्रामीणों ने संयुक्त रूप से कटान रोकने के देशी जुगाड़ पर काम शुरू किया.
लोगों ने तय किया की आखिरकार इस इलाके में लगे पेड़ आने वाले दिनों में नदी में हो रही कटान की भेंट चढ़ ही जाएंगे. ऐसे में उससे पहले क्यों न इन पेड़ों को ही कटान रोकने के लिए ढाल के तौर पर इस्तेमाल किया जाए.
शुरुआत में ट्रायल के तौर पर सरकारी मदद से कुछ रस्सी के बंडल और ट्रॉली से गैर उपयोगी पेड़ों और उनकी टहनियां काटकर नदी किनारे भेजी गईं. काम शुरू हुआ और कटान प्रभावित छोर पर गाड़े गए खूंटे से बांधी गई रस्सी में पेड़ों को बांध कर नदी में डाल दिया गया, ताकि पेड़ बह न जाएं.
कटान रोकने के लिए किया गया देशी जुगाड़ कुछ ही घंटों में रंग लाया और कटान पहले की अपेक्षा कम हो गई. हालांकि बाद में सरकारी मदद की जो अपेक्षा थी वो पूरी नहीं हुई बल्कि सरकारी मशीनरी का ध्यान और कम ही हुआ. सरकारी मदद कमजोर होता देख ग्रामीणों ने कटान रोकने के इस अभियान को आगे बढ़ाने के लिए इलाके में श्रम आंदोलन छेड़ दिया है. अब ग्यारह सौ रेती गांव में रहने वाले क्या जवान क्या बूढ़े, यहां तक महिलाए और बच्चे भी इसमें जुट गए हैं.
महिलाए और बच्चे घाघरा नदी की मनुहार (मनाने) के लिए अपनी मान्यताओं के मुताबिक नदी के तट पर लगातार पूजा-पाठ भी कर रहे हैं. इस आंदोलन के संयोजक अशोक कुमार निषाद ने बताया कि ग्रामीण काम कर रहे हैं, लेकिन एक ट्रस्ट इसके क्रेडिट का फर्जी दावा कर रहा है. उन्होंने इसकी भी जांच कराने की मांग की है.
वहीं कैसरगंज के एसडीएम महेश कुमार कैथल ने भी माना कि घाघरा नदी में बाढ़ का पानी कम होने के बाद बड़े पैमाने पर कटान हो रही है. उनकी तहसील क्षेत्र के मंझारा तौकली और ग्यारह सौ रेती गांव के लोगों ने कटान को लेकर धरना प्रदर्शन किया था. इसके बाद प्रशासन ने ग्रामीणों के सुझाव को मानते हुए देसी तकनीक के लिए उनकी मदद भी की. इसमें सरयू ड्रेनेज खंड और ग्रामीणों का प्रयास सराहनीय है.
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