ज्ञानवापी-श्रृंगार गौरी मामले में वाराणसी की जिला अदालत में गुरुवार को हिन्दू पक्ष ने दलील देते हुए दावा किया कि ज्ञानवापी (Gyanvapi Masjid Case) वक्फ की संपत्ति नहीं है और हिन्दू पक्ष का मुकदमा पूरी तरह सुनवाई करने लायक है.
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हिन्दू पक्ष अपनी दलील शुक्रवार को भी जारी रखेगा. शासकीय अधिवक्ता राणा संजीव सिंह ने बताया कि हिन्दू पक्ष के अधिवक्ताओं ने अदालत के समक्ष अपनी दलील में कहा कि मुस्लिम पक्ष ने ऐसा कोई भी साक्ष्य नहीं प्रस्तुत किया है कि ज्ञानवापी मस्जिद वफ्फ बोर्ड की संपत्ति है.
उन्होंने बताया कि हिन्दू पक्ष ने अपनी दलील में कहा कि क्योंकि ज्ञानवापी परिसर वफ्फ की संपत्ति नहीं है, इसलिए यह मुकदमा पूरी तरह से सुनवाई योग्य है.
सिंह ने कहा कि हिन्दू पक्ष के अधिवक्ताओं ने अदालत में दलील दी कि हिन्दू धर्म में जब किसी मूर्ति की एक बार प्राण प्रतिष्ठा हो जाती है, तब उस स्थान की पूजा की जाती है.
हिन्दू पक्ष के अधिवक्ताओं ने अदालत को बताया कि तमिलनाडु के एक मंदिर में बिना किसी मूर्ति के पर्दे की पूजा होती है.
सिंह ने बताया कि हिन्दू पक्ष शुक्रवार को भी अपनी दलील जारी रखेगा. गौरतलब है कि राखी सिंह तथा अन्य ने ज्ञानवापी परिसर में स्थित श्रृंगार गौरी में विग्रहों की सुरक्षा और नियमित पूजा पाठ के आदेश देने के आग्रह के संबंध में वाराणसी के सिविल जज (सीनियर डिवीजन) की अदालत में याचिका दायर की थी जिसके आदेश पर पिछले मई माह में ज्ञानवापी परिसर की वीडियोग्राफी सर्वे कराया गया था.
इस दौरान हिंदू पक्ष ने ज्ञानवापी मस्जिद के वजू खाने में शिवलिंग मिलने का दावा किया था। सर्वे की रिपोर्ट पिछली 19 मई को अदालत में पेश की गई थी.
मुस्लिम पक्ष ने वीडियोग्राफी सर्वे पर यह कहते हुए आपत्ति की थी कि निचली अदालत का यह फैसला उपासना स्थल अधिनियम 1991 के प्रावधानों के खिलाफ है और इसी दलील के साथ उसने उच्चतम न्यायालय का दरवाजा भी खटखटाया था. न्यायालय ने वीडियोग्राफी सर्वे पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था, लेकिन मामले को जिला अदालत में स्थानांतरित करने का आदेश दिया था.
इसके बाद से इस मामले की सुनवाई जिला अदालत में चल रही है. इस मामले की पोषणीयता पर जिला न्यायाधीश ए. के. विश्वेश की अदालत में दलीलें पेश की जा रही हैं. इसी क्रम में मुस्लिम पक्ष में पहले दलीलें रखीं, जो मंगलवार को पूरी हो गईं.
हिंदू पक्ष का दावा- ज्ञानवापी मस्जिद के मामले में उपासना स्थल अधिनियम लागू नहीं होता
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