मथुरा: ईदगाह में ‘साक्ष्य-कलाकृतियों’ को मिटाया जा रहा? हिंदू पक्ष ने लगाए ये आरोप, जानें

संतोष शर्मा

• 12:45 PM • 14 May 2022

वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद की तर्ज पर मथुरा की ईदगाह मस्जिद में भी सर्वे और वीडियोग्राफी की कार्रवाई की मांग की गई है. मथुरा कोर्ट…

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वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद की तर्ज पर मथुरा की ईदगाह मस्जिद में भी सर्वे और वीडियोग्राफी की कार्रवाई की मांग की गई है. मथुरा कोर्ट में हिंदू पक्ष ने आरोप लगाए हैं कि ईदगाह में साक्ष्य और कलाकृतियों को मिटाया जा रहा है, इसलिए यहां भी सर्वे और वीडियो रिकॉर्डिंग होनी चाहिए.

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वादी मनीष यादव ने यूपी तक से बातचीत करते हुए बताया कि मथुरा में वीडियोग्राफी और सर्वेक्षण क्यों जरूरी है और कैसे पूजा स्थल कानून, 1991 मथुरा मामले में उल्लघंन नहीं करता है.

मनीष ने बताया,

“मथुरा के ईदगाह मे साक्ष्य और कलाकृतियां बनी है उसे मिटा रहे हैं. इसलिए हमने न्यायालय से डिमांड की है कि जल्द से जल्द एक वरिष्ठ अधिवक्ता कमिश्नर नियुक्त किया जाए, उसकी वीडियोग्राफी सर्वे हो जिसमें वादी, प्रतिवादी और वरिष्ठ अधिवक्ता कमिश्नर जाएं, ताकि उसकी सच्चाई जनता के सामने आ सके और न्यायालय को उस पर आदेश देने में आसानी हो.”

मनीष यादव

उन्होंने आगे बताया, “हमारी पिटीशन में सर्वे की बात पहले से थी. हमने ASI सर्वे की बात की थी, लेकिन अब हमने वीडियोग्राफी सर्वे की बात की है. पहले न्यायालय अपने स्तर से सर्वे करा था, लेकिन यह लोग बनारस की घटना से प्रभावित हो चुके हैं. वहां से साक्ष्य मिटा रहे हैं, कलाकृतियां तोड़ रहे हैं और वहां एक निर्माण कार्य भी चल रहा है. जिसकी वजह से जल्द से जल्द वीडियोग्राफी से सर्वे कराने की बात कही गई है.”

वादी ने कहा, “हमने ईदगाह में निर्माण कार्य चलने के एप्लीकेशन कोर्ट में दाखिल की थी. हमें इसकी गुप्त सूचना मिली थी. अगर वहां निर्माण कार्य नहीं चल रहा है तो इस पर ईदगाह कमेटी को अपनी रिपोर्ट जवाब दाखिल करना चाहिए था. अब 1 जुलाई तक का समय है अगर उसमें निर्माण कार्य नहीं चल रहा है, तो अपना जवाब दाखिल करें.”

उन्होंने कहा, “अब मथुरा जन्मभूमि के मामले में सभी केस क्लब कर दिए गए हैं और सभी की 1 जुलाई तारीख तय की गई है. अगर कोई पक्ष अपना जवाब नहीं देगा तो एक पक्षीय आदेश भी हो सकता है. हमें उम्मीद है कि 1 जुलाई को सर्वे को लेकर कोर्ट का निर्णय आ जाएगा कि कैसे सर्वे होगा?”

मनीष ने कहा, “1967 में ईदगाह कमेटी व श्री कृष्ण जन्मभूमि संस्थान के समझौते को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने रद्द कर दिया है, जो संस्था अधिकृत नहीं है उसका समझौता कैसे माना जा सकता है.”

उन्होंने कहा,

“पूजा स्थल कानून, 1991 हमारे ऊपर लागू नहीं होता क्योंकि ईदगाह पूजा स्थल नहीं है, यह मथुरा जन्मभूमि केस में लागू नहीं होता है. यह एक्ट वाराणसी में भी विपक्षी पार्टी पर लागू नहीं होता.”

मनीष यादव

बता दें कि इस मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा 4 माह के अंदर सभी प्रार्थना पत्रों का निस्तारण किए जाने के निर्देश जिला अदालत को दिए गए हैं.

मनीष यादव के वकील देवकीनंदन शर्मा का कहना है कि ईदगाह के अंदर जो शिलालेख हैं उन्हें दूसरे पक्ष द्वारा हटाया जा सकता है और एविडेंस को नष्ट किया जा सकता है. इसके लिए उन्होंने सिविल जज सीनियर डिवीजन के न्यायालय में एक प्रार्थना पत्र देकर कमिश्नर नियुक्त की जाने की बात कही है. उनका कहना है कि दोनों पक्षकारों की मौजूदगी में वहां की फोटोग्राफी कराई जाए और सभी तथ्यों को जुटाया जाए. इस मामले में अगली सुनवाई 1 जुलाई को होगी.

वहीं, मथुरा श्री कृष्ण जन्म स्थान केशव देव बनाम शाही मस्जिद ईदगाह मामले के वादी महेंद्र सिंह एडवोकेट का कहना है कि उन्होंने सबसे पहले श्री कृष्ण जन्मस्थान ईदगाह मामले में 24 फरवरी 2021 को एक प्रार्थना पत्र दिया था, जिसमें उन्होंने वीडियोग्राफी की कार्रवाई के लिए कमिश्नर नियुक्ति किए जाने की मांग की थी.

उनका कहना है कि प्लेस ऑफ बर्थ एक्ट के कारण उस पर कोई निर्णय नहीं हो सका. एक बार उन्होंने फिर 9 मई 2022 को एक प्रार्थना पत्र न्यायालय में प्रस्तुत कर शंख से कमल के फूल आदि की वीडियोग्राफी भी कराई जाने के लिए प्रार्थना पत्र दिया है. उनका कहना है कि अगर वहां से सभी तथ्य-सबूतों को नष्ट कर दिया गया तो प्रापर्टी का नेचर चेंज हो जाएगा, इसलिए उन्होंने एक और प्रार्थना पत्र दिया है.

इस मामले में शाही ईदगाह मस्जिद के अधिवक्ता तनवीर अहमद का कहना है कि वादी पिछले 2 वर्षों में विभिन्न-विभिन्न प्रकार के प्रार्थना पत्र देते रहे हैं. उन्हें खुद यह नहीं मालूम कि आखिर वह क्या कहना चाहते हैं. उनका कहना है कि इस मामले में 1 जुलाई पहले से नियत है. विभिन्न प्रकार के प्रार्थना पत्र देकर सुनवाई को टालना चाहते हैं. उन्होंने कहा कि चैनल और विभिन्न माध्यम से हाईलाइट करके इस मामले को टालने का प्रयास कर रहे हैं.

तनवीर अहमद का कहना है कि सुनवाई के दिन वादी पक्ष की ओर से कोई प्रार्थना पत्र नहीं दिया जाता है, सिर्फ सुर्खियां बटोरने के लिए शंघाई जयपुर दिया जाता है. उनका कहना है कि मथुरा में दोनों के धर्मस्थल अलग-अलग हैं वीडियोग्राफी की कोई आवश्यकता नहीं है.

बता दें कि मथुरा श्री कृष्ण मामले में अब तक कुल 10 वाद मथुरा के न्यायालय में विचाराधीन हैं. इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा 4 माह के अंदर सभी प्रार्थना पत्रों के निस्तारण के निर्देश के बाद अब मामले में तेजी आने की संभावना है.

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