Ayodhya Ram Mandir News: अयोध्या के राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के लिए अब कम ही समय बचा है. 22 जनवरी वो तारीख है जिस दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रामलला की मुर्ति की प्राण प्रतिष्ठा करेंगे. प्राण प्रतिष्ठा को लेकर पूरे देश में उत्साह का माहौल है. रामलला की प्राण प्रतिष्ठा को लेकर वे लोग खास तौर पर उत्साहित हैं, जो राम मंदिर आंदोलन से जुड़े रहे हैं. ऐसे ही एक हैं राजस्थान के जयपुर के रहने वाले हाजी गुल मोहम्मद मंसूरी. उन्होंने 1992 में कारसेवा की थी. बता दें कि जब बाबरी मस्जिद को गिराया गया था तब मंसूरी वहीं मौजूद थे. गुल मोहम्मद अब मंदिर बनने से बहुत खुश हैं.
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क्या गुल मोहम्मद राम मंदिर जाएंगे?
राममंदिर बनने पर गुल मोहम्मद ने खुशी जताते हुए कहा कि यह मंदिर भारत में नहीं बनेगा तो क्या पाकिस्तान में बनेगा? भले ही उन्हें निमंत्रण न मिला हो लेकिन इसके बावजूद उन्होंने कहा, ‘अल्लाह ने चाहा तो आगे दर्शन जरूर करुंगा.’
घटना को याद करते हुए गुल मोहम्मद ने ये बताया
1992 की घटना को याद करते हुए गुल मोहम्मद मंसूरी ने बताया कि बाबरी मस्जिद के गिरने के बाद वापस जयपुर आने में उनके पसीने छूटे गए थे. राम मंदिर आंदोलन से जुड़ने का असर यह हुआ कि समाज ने उनके खिलाफ उस समय फतवा तक जारी कर दिया था. इसकी वजह से लोगों ने उनका नाम गुल मोहम्मद की जगह गुल्लूराम नाम रख दिया था.
हाजी गुल मोहम्मद मंसूरी ने कहा कि, ‘बाबरी मस्जिद के ढांचे को नीचे गिराने के बाद हजारों धमकियां मिलीं, जो आज तक जारी हैं. इसकी वजह से डर के चलते पत्नी तक ने साथ रहने से इनकार कर दिया था. परिवार डर के साए में जी रहा था और पुलिस का पहरा 24 घंटे मेरे घर के बाहर तैनात रहता था. जयपुर की जामा मस्जिद से जारी हुए फतवे के बाद समाज में रहना मुश्किल हो गया था.’
उन्होंने आगे बताया, ‘बाद में गुल्लूराम से गुल मोहम्मद बनने के लिए कलमा पढ़ना पड़ा और खुद की पत्नी से दोबारा निकाह करने के बाद वापस मेरा नाम गुल मोहम्मद पड़ा.’
1977 में विधायक बने थे मंसूरी
गौरतलब है कि 1977 में गुल मोहम्मद मंसूरी जनता पार्टी से विधायक बने. फिर 1992 में जब राम मंदिर आंदोलन के तहत अयोध्या कूच हुआ और बाबरी मस्जिद को तोड़ा गया तब कारसेवकों की टोली में वह भी शामिल थे. हालांकि मस्जिद को ऊपर वह नहीं चढ़े लेकिन उस ढांचे के नीचे मौजूद थे.
उनका कहना है कि मस्जिद के ढांचे के ऊपर उस वक्त कुछ लोग कारसेवक बनकर नारे लगाने लगे. उसके बाद तनाव बढ़ गया तो सभी मस्जिद के ऊपर चढ़कर ढांचे को तोड़ने लगे. बाद में लाठी डंडे चले तो भगदड़ मच गई. उसके बाद देशभर में बवाल कटा तो जयपुर में भी तनाव बढ़ गया. फिर आंदोलन के बाद ट्रेन से जैसे तैसे जयपुर पहुंचे. मगर अब उन्हें खुशी है कि 1992 का आंदोलन आज रंग लाया है.
(जयपुर से विशाल शर्मा के इनपुट्स के साथ)
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