‘संस्कार’ और ‘कला’ के लिए आजीवन काम करने वाले संघ के वरिष्ठतम प्रचारकों में एक से बाबा योगेन्द्र का शुक्रवार को लखनऊ में निधन हो गया. पद्मश्री बाबा योगेन्द्र कला के लिए समर्पित संघ की ‘संस्कार भारती’ संगठन के संरक्षक थे. 99 वर्ष के बाबा योगेन्द्र को राम मनोहर लोहिया अस्पताल भर्ती कराया गया था. नानाजी देशमुख और अटल बिहारी वाजपेयी और दत्तोपंत ठेंगड़ी जैसी हस्तियों के साथ रहे बाबा योगेन्द्र ने लोक कलाकारों को मंच देने के लिए आजीवन काम किया.
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यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उनको श्रद्धांजलि देते हुए लिखा कि ‘बाबा योगेन्द्र कला के प्रति समर्पित रहे. उन्होंने नवोदित कलाकारों को हमेशा प्रोत्साहित किया।उनके निधन से कला जगत को अपूर्णनीय क्षति हुई है.’
संस्कार भारती के संरक्षक के रूप में संस्कार-कला-राष्ट्रप्रेम की त्रिवेणी बनायी बाबा योगेन्द्र ने 1981 में संस्कार भारती का गठन हुआ. संघ के प्रचारक बाबा योगेन्द्र को इसकी जिम्मेदारी मिली. इसके बाद बाबा योगेन्द्र ने कई कलाकारों, लोक कला के जानकारों को संस्कार भारती से जोड़ा. खास बात ये है कि देश भर में कहीं की लोक कला हो बाबा योगेन्द्र ने उसको संस्कार भारती का हिस्सा बनाया.
साथ ही बड़े कलाकारों की जगह छोटे-छोटे कलाकारों को संगठन से जोड़ा और कला और संस्कृति के लिए आयोजन किए. आज देश भर में हर राज्य में संस्कार भारती की शाखा है जो राष्ट्रवाद को लोक कला से मिला कर कलाकारों को न सिर्फ प्रोत्साहन देती है बल्कि जगह-जगह आयोजन भी करती है. कला की इसी साधना के लिए बाबा योगेन्द्र को पद्मश्री से सम्मानित किया गया.
बाबा योगेन्द्र ने न सिर्फ लोक कला के संवर्धन और लोक कलाकारों को प्रोत्साहन देने के लिए काम किया बल्कि आरएसएस के सिद्धांतों को कला के जरिए ढालने में भी सफलता हासिल की. जगह-जगह उनके द्वारा कराई गई प्रदर्शनी इसका प्रमाण है.
नानाजी देशमुख से मिली थी प्रेरणा
बाबा योगेन्द्र आरएसएस के वरिष्ठतम प्रचारकों में से एक थे उनका जन्म 7 जनवरी 1924 को उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के वकील विजय बहादुर श्रीवास्तव के घर हुआ था. जैसे ही उनका जन्म हुआ मां का साया सिर से उठ गया. उनका लालन-पालन पड़ोस की एक महिला ने ही मां की तरह किया. छात्र जीवन में योगेन्द्र गोरखपुर में नानाजी देखमुख के सम्पर्क में आए.
कहते हैं योगेन्द्र सुबह पढ़ने जाते और शाम को संघ की शाखा में जाते. पर नानाजी देशमुख सुबह रोज उनको जगाने आते जिससे वो जल्दी उठकर पढ़ पाएं. संघ और नानाजी के सेवा भाव का इतना प्रभाव योगेन्द्र पर पड़ा कि उन्होंने आजीवन सिर्फ संघ की सेवा में ही समर्पित करने का निश्चय किया. बाद के समय में ‘मज़दूर संघ’ और ‘किसान संघ’ के संस्थापक दत्तोपंत ठेंगड़ी से बाबा योगेन्द्र का निकट का सम्पर्क रहा.
1942 में लखनऊ में संघ की प्रथम वर्ष का प्रशिक्षण पास करने के बाद 1945 में बाबा योगेन्द्र संघ के प्रचारक बन गए. पहले वो कई अलग अलग जगह संघ के प्रचारक के तौर पर काम करते रहे.
इस बीच देश विभाजन का ऐसा समय आया जिसने बाबा योगेन्द्र को बहुत भावुक कर दिया।संघ की शिक्षा वर्ग में ही सबसे पहले उन्होंने अपनी चित्रकला की प्रदर्शनी लगाई.
कहते हैं कि इस प्रदर्शनी ने प्रचारकों और लोगों को इतना प्रभावित किया कि सबने उनको अपनी कला यात्रा को जारी रखने के लिए कहा. बस यहीं से कला, संस्कार और राष्ट्रप्रेम को बाबा योगेन्द्र ने एक कर दिया और आजीवन इसी कार्य को करते रहे.
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