आप सोच रहे होंगे कि अखिलेश यादव के जन्मदिन पर अमर सिंह और टीवी सीरियल हैना मॉन्टेना का ये कैसा कनेक्शन. तो जान लीजिए कि इंसान के जीवन में कब कौन सी घटना उसके लिए रॉन्ग टर्न बन जाए या कब कौन सा वाकया उसके सितारों को बुलंदी पर ले जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता. ऐसा ही एक वाकया है अखिलेश यादव, अमर सिंह और टीवी सीरियल हैना मॉन्टेना से जुड़ा.
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राजनीति के नए नए शौकीन लोगों को शायद दिवंगत अमर सिंह और अखिलेश के बीच के तल्ख रिश्तों की ही याद हो. पर अपने जीवन के अंतिम दौर से पहले अमर सिंह की राजनीतिक पारियों का किस्सा कुछ और ही था. वह किस्सा जब सतरंज की बिसात पर बिछी सत्ता के सबसे माहिर खिलाड़ी अमर सिंह अपने मुंहबोले भतीजे टीपू के सबसे बड़े पैरवीकार हुआ करते थे.
ये किसा आपको या तो बड़े बुजुर्ग सुनाएंगे या किताबों का सहारा लेना पड़ेगा. आज अखिलेश यादव के 49वें जन्मदिन पर चलिए आपको कुछ ऐसे ही किस्से सुनाते हैं.
राजनीति में सत्ता के साथ साथ रिश्ते भी बड़ी तेजी से बदल जाते हैं. अब महाराष्ट्र को ही लीजिए. जिन एकनाथ शिंदे को कल तक उद्धव ठाकरे का सबसे करीबी समझा जाता था, आज उन्होंने न सिर्फ उद्धव से सत्ता छीन ली बल्कि उस शिवसेना पर दावा कर दिया जो सीनियर ठाकरे यानी बाला साहब ठाकरे ने बनाई थी. ऐसे ही बदले हुए रिश्ते की बानगी हमें अमर सिंह की जिंदगी के अंतिम सालों में देखने को मिलती है जब वो मुलायम परिवार, खासकर अखिलेश को लेकर बागी हो गए. पर इस किस्से की शुरुआत ऐसी न थी. आप कत्तई मत चौंकिएगा अगर हम आपको बताएं कि टीपू यानी अखिलेश के राजनीतिक जीवन की सबसे बड़ी पैरवी में से एक का श्रेय अमर सिंह को भी जाता है.
तब टीपू सांसद तो बन चुके थे लेकिन पार्टी की कमान हासिल करने का रास्ता नहीं बना था
अखिलेश यादव के जन्मदिन पर इस खास किस्से को जानने के लिए आपको पुराने वक्त में लौटना पड़ेगा. यह उस दौर की कहानी है जब अखिलेश यादव सांसद बन चुके थे. अखिलेश ने पहली बार साल 2000 में कन्नौज सीट से लोकसभा उपचुनाव जीता था. वही कन्नौज जहां का इत्र फेमस है. बाद में अखिलेश ने 2004 और 2009 के लोकसभा चुनाव भी इसी सीट से जीते.
यह किस्सा 2007 का है जिसका जिक्र प्रिया सहगल ने अपनी किताब ‘द कंटेंडर्स: हू विल लीड इंडिया टुमॉरो’ में किया है. यह वही साल था जब मायावती ने मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व वाली समाजवादी पार्टी को शिकस्त देते हुए उत्तर प्रदेश की सत्ता हासिल की थी. इसी चुनावी हार पर चर्चा के लिए समाजवादी पार्टी का शीर्ष नेतृत्व अमर सिंह के तब दिल्ली के लोदी रोड स्थित आवास पर इकट्ठा हुआ था.
डिनर के वक्त अचानक अमर सिंह ने मुलायम सिंह यादव से कहा कि नई पीढ़ी की राजनीति के लिए नई पीढ़ी के नेता की जरूरत है. वाकचातुर्य के धनी अमर सिंह ने अपनी बात को खास तरीके से एक्सप्लेन भी किया. उन्होंने वहीं बैठी अपनी दोनों बेटियों में एक से पूछा कि वो टीवी पर कौन सा सीरियल देखती हैं? जवाब मिला, हैना मॉन्टेना. अमर सिंह ने मुलायम से कहा कि देखिए अखिलेश की बेटियां भी इसी उम्र की होंगी और अपने बच्चों के जरिए उन्हें पता चलता होगा कि युवा क्या देखते और क्या चाहते हैं. ऐसा कहते हुए अमर सिंह ने अखिलेश यादव को पार्टी अध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव दिया.
अब जब यहां हैना मॉन्टेना सीरियल का जिक्र आ ही गया है तो थोड़ा ठहरकर इसके बारे में भी जान लीजिए. Hannah Montana असल में 2006 में आई एक टीन सिचुएशन कॉमेडी थी. अमेरिकन सिंगर मिली सायरस स्टारर इस टीवी शो में मिली स्टीवर्ट नाम की एक साधारण टीन एज लड़की फेमस पॉप सिंगर हैना मॉन्टेना के नाम से दोहरी जिंदगी जी रही होती है.
खैर अब वापस मूल किस्से पर लौटते हैं. जब अमर सिंह ने अखिलेश यादव को लेकर यह प्रस्ताव मुलायम के सामने पेश किया तो सिर्फ मुलायम को छोड़ बाकी सभी राजी थे. तब मुलायम सिंह यादव ने कहा कि वह पार्टी के विचारक जनेश्वर मिश्र से इस बारे में राय लेंगे. किताब के मुताबिक जब छोटे लोहिया के नाम से मशहूर जनेश्वर मिश्र से मुलायम ने उनकी राय मांगी तो उन्होंने तुरंत हामी भर दी.
हालांकि अखिलेश उत्तर प्रदेश अध्यक्ष 2009 में बन पाए लेकिन अमर सिंह की वो पैरवी ही थी, जिसने समाजवादी दिग्गजों के सामने अखिलेश के लिए इस रास्ते को प्रशस्त किया. अखिलेश यादव ने भी इस मौके को भरपूर भुनाया. अखिलेश ने तत्कालीन माया सरकार के खिलाफ जंग का ऐलान किया और समाजवादी पार्टी के संगठन में युवा शक्ति को अहम पदों पर बिठाया. अखिलेश के हल्ला बोल का ही नतीजा था कि 2012 के विधान सभा चुनावों में समाजवादी पार्टी को बंपर जीत मिली और वह खुद 38 साल की उम्र में यूपी के सबसे युवा सीएम बन गए.
फिलहाल कठिन राह पर चल रहे अखिलेश
आज अखिलेश यादव समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं. यूपी में 2017, 2022 में हुए लगातार दो विधानसभा चुनावों और 2019 के आम चुनावों में अखिलेश के नेतृत्व में समाजवादी पार्टी को का सामना करना पड़ा है. इसके अलावा आजमगढ़ और रामपुर के हालिया लोक सभा चुनावों में भी सपा ने अपने ये दोनों गढ़ गंवा दिए हैं.
सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के मुखिया ओम प्रकाश राजभर जैसे सहयोगी अखिलेश को AC कमरे से निकल जमीन की सियासत करने की नसीहत देते नजर आ रहे हैं. अखिलेश ने यूपी की राजनीति में पहले काग्रेस और फिर बसपा के साथ महागठबंधन के प्रयोग भी किए, जो सफल साबित नहीं हुए.
यूपी की सियासत से करीब एक दशक पहले जिस अक्रामक अखिलेश का परिचय हुआ था, अब उसकी जगह कई चुनावी हार झेल खड़ा राजनेता नजर आ रहा है. ऐसे में अखिलेश के सामने एक बार फिर बड़ी चुनौती है कि वह अपनी पार्टी को सत्ता में वापस लाएं. भाजपा के बढ़ते जनाधार के बीच अखिलेश को भी यूपी में अलग अलग सामाजिक तबके से आने वाले वोटों की जरूरत है. ऐसे में यह देखना रोचक होगा कि समाजवादी राजनीति को यूपी में अपने कंधों पर लेकर चल रहे अखिलेश भविष्य में भाजपा को कैसे सियासी चुनौती दे पाएंगे.
जब मुलायम ने अखिलेश से कहा- ‘घर लौट आओ, तुम्हें चुनाव लड़ना है’, दिलचस्प किस्से
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