यादों के अप्रतिम गायक उस्ताद राशिद खान आज खुद याद बन गए. ‘याद पिया की आए’, ‘आओगे जब तुम ओ साजना’ सहित दर्जनों राग की सैकड़ों बंदिशों के सिद्ध हस्त कलावन्त भारतीय शास्त्रीय संगीत के शीर्षस्थ गायकों में शुमार पद्म विभूषण और संगीत नाटक अकादमी फेलोशिप से अलंकृत उस्ताद राशिद खान का निधन कोलकाता में हो गया है. हालांकि, खान साहब को अपनी जन्मभूमि बदायूं से ताजिंदगी लगाव रहा.
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रामपुर सहसवान घराने के गायक उस्ताद राशिद खान प्रोस्टेट कैंसर से पीड़ित थे और पिछले महीने से वेंटीलेटर पर थे. अपनी जबरदस्त आवाज और तान सरगम के साथ लाजवाब गायकी के लिए मशहूर 55 वर्षीय खान साहब संगीतज्ञों के घराने में पैदा हुए.
कोलकाता के आईटीसी संगीत अकादमी में संगीत सीखा और सिखाया भी. उस्ताद राशिद ने 11 साल की उम्र में दिल्ली में अपना पहला प्रोग्राम पेश कर दिया था, लेकिन वह संगीतकार नहीं बनना चाहते थे.
दरअसल, वह क्रिकेटर बनना चाहते थे, लेकिन अपने परिवार की परंपरा से वह दूर नहीं रह पाए. वहीं, गजल और कुछ प्रोग्राम देखने के बाद संगीत के प्रति उनकी दिलचस्पी बढ़ गई. उस्ताद राशिद खान रामपुर-सहसवान घराना से ताल्लुक रखते हैं. वह उस्ताद इनायत हुसैन खान साहब के परपोते और गुलाम मुस्तफा खान के भतीजे हैं.
हालांकि, उन्होंने संगीत की शिक्षा अपने मामा निसार हुसैन खान से ली थी. इसके अलावा उस्ताद गुलाम मुस्तफा खान से भी गुर सीखे. यह शिक्षा-दीक्षा उस वक्त ही शुरू हो गई थी, जब उस्ताद राशिद खान महज 6 साल के थे.
इंडिया टुडे ग्रुप के साहित्य संगीत उत्सव साहित्य आजतक में दो साल पहले उस्ताद राशिद खान ने एक इंटरव्यू के दौरान बताया था कि अपने उस्ताद और मामाजी के साथ एक प्रोग्राम में जाने से पहले उनका मूड थोड़ा बिगड़ा हुआ था. गाने की बजाय दिमाग में कुछ और चल रहा था. उनके मामा और गुरु उस्ताद निसार हुसैन खान साहब उनकी इस बेपरवाही से इस कदर नाराज हुए कि उन्होंने शागिर्द और भानजे राशिद खान को जोरदार लात जमाई.
बस उस्ताद की लात के बाद मामला और मूड दोनों सेट हो गए. इसके बाद तो उन्होंने जो गाया उसके लिए उनके उस्ताद ने भी कहा कि बेहतरीन फायर यानी बेस्ट परफॉर्मेंस थी वो जो उनको अब तक याद थी.
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