उत्तर प्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में 2017 के अपने शानदार प्रदर्शन को दोहराने का प्रयास कर रही सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को, 2021 में गंगा में शव तैरने, लखीमपुर खीरी में गाड़ी से कुचलकर किसानों की मौत और सुर्खियों बटोरने वाली अपराध की घटनाओं ने लगातार विपक्ष के निशाने पर रखा.
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बहरहाल, ‘डबल इंजन की सरकार’ की ओर से बनाए जा रहे एक्सप्रेसवे, मेट्रो रेल नेटवर्क और काशी विश्वनाथ गलियारा परियोजना के साथ, राज्य में सत्तारूढ़ बीजेपी 2022 के विधानसभा चुनावों की ओर अग्रसर है.
राज्य सरकार महामारी की दूसरी लहर के दौरान अस्पतालों में ऑक्सीजन और बिस्तर की कमी जैसे मुद्दों से दो-चार हुई. इस दौरान गंगा में तैरते शव, लखनऊ में श्मशान घाट के दृश्य को रोकने करने के लिए टिन की चादरें लगाए जाने, श्मशान घाटों पर लंबी कतारें और अस्पतालों में कुप्रबंधन की तस्वीरें सरकार के लिए परेशानी का सबब तो बनीं, साथ ही देसी-विदेशी मीडिया की सुर्खियां भी बनीं.
बलिया और गाजीपुर जिलों में गंगा में शव तैरते देखे गए. स्थानीय निवासियों का मानना था कि शव कोविड-19 पीड़ितों के थे. हमीरपुर जिले के निवासियों ने यमुना नदी में भी कुछ शव तैरते देखे थे. मीडिया ने प्रयागराज में गंगा के तट पर रेत में दबे शवों के बारे में खबरें दीं और समाचार चैनलों ने इनकी तस्वीरें भी दिखाईं.
जब कोरोना वायरस की स्थिति में सुधार होता दिख रहा था, तब किसानों का तीन केंद्रीय कृषि कानूनों के विरोध में आंदोलन उत्तर प्रदेश में तेज हो गया. लखीमपुर खीरी जिले में तीन अक्टूबर को एक वाहन से कुचलकर किसानों की जान चली गई. किसानों को कुचले जाने के मामले में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय कुमार मिश्रा के बेटे आशीष मिश्रा को अन्य आरोपियों के साथ गिरफ्तार किया गया. इस मामले की गूंज संसद में भी हुई और मंत्री अजय कुमार मिश्रा का इस्तीफा मांगा गया.
इस घटना के बाद शोक संतप्त किसानों के साथ एकजुटता दिखाने के लिए राजनीतिक नेताओं में एक तरह की होड़ भी दिखी. कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी रात के अंधेरे में लखीमपुर के लिए निकलीं लेकिन उन्हें सीतापुर के पास रोक दिया गया. प्रियंका को पीएसी गेस्ट हाउस में 48 घंटे नजरबंद रखा गया. हालांकि, इस बीच पार्टी के संगठन में नई जान आती दिखी. साल के आखिर में केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा के पत्रकारों से भिड़ने की खबर भी सुर्खियों में रही.
लखीमपुर खीरी कांड से एक महीने पहले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के मजबूत गढ़ गोरखपुर में कथित तौर पर पुलिस की पिटाई के कारण कानपुर के एक व्यापारी की मौत हो गई थी, लेकिन सरकार मृतक के परिवार की मांगें मानकर स्थिति को संभालने में बहुत हद तक सफल दिखी.
अब अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले प्रदेश सरकार का विकास परियोजनाओं के उद्घाटन और नींव रखने का सिलसिला लगातार जारी है. पिछले दिनों वाराणसी में काशी विश्वनाथ गलियारा, 341 किलोमीटर लंबा पूर्वांचल एक्सप्रेसवे, कई मेडिकल कॉलेज, 594 किलोमीटर लंबे छह लेन के गंगा एक्सप्रेसवे जैसे कई प्रोजेक्ट का लोकार्पण या शिलान्यास हुआ है.
इन परियोजनाओं का श्रेय लेने के लिए मुख्य विपक्षी समाजवादी पार्टी (एसपी) के साथ बीजेपी का वाकयुद्ध भी शुरू हो गया. एसपी अध्यक्ष अखिलेश यादव दावा करते हैं कि अधिकतर योजनाओं की शुरुआत उनके शासनकाल में की गई थी. बीजेपी और एसपी वोटों की लड़ाई के लिए अपने-अपने गठबंधनों को मजबूत करने में लगी हैं. सत्तारूढ़ बीजेपी अपने पुराने सहयोगियों के साथ है, तो एसपी छोटे दलों के साथ हाथ मिलाने की अपनी रणनीति के साथ आगे बढ़ रही है.
अखिलेश यादव ने हाल ही में अपने चाचा शिवपाल सिंह यादव के साथ भी संबंध सुधारे हैं, जिन्होंने अखिलेश से विवाद बढ़ने के बाद अपना अलग राजनीतिक दल बना लिया था.
राज्य ने महामारी के बीच त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव भी देखा. सरकार के मुआवजे संबंधी आंकड़ों के अनुसार, अप्रैल-मई में चुनाव ड्यूटी के दौरान करीब 2000 सरकारी कर्मचारियों की जान चली गई, जिनमें से कई तो स्कूल के शिक्षक थे. मई में अलीगढ़ में जहरीली शराब पीने से कम से कम 40 लोगों की मौत हो गई. यह खबर भी काफी सुर्खियों में रही थी.
(भाषा के इनपुट्स के साथ)
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