Shivpal Yadav News: समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव और जसवंत नगर से विधायक शिवपाल सिंह यादव आज यानी गुरुवार से चुनाव प्रचार की शुरुआत करने जा रहे हैं. शिवपाल यादव बदायूं में अपने भतीजे धर्मेंद्र यादव (पूर्व सांसद, बदायूं) के आवास से ही चुनाव की बागडोर संभालेंगे. कुल जमा बात यही है कि धर्मेंद्र यादव का आवास और उनकी बनाई उपजाऊ सियासी जमीन 'चाचा' के लिए तैयार है.
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आपको बता दें कि शिवपाल पार्टी के 2 विधायकों के सहारे ही मैदान में उतर रहे हैं. दरअसल, हाल ही में हुए राज्यसभा चुनाव में बिसौली से समाजवादी पार्टी विधायक आशुतोष मौर्य ने अपना पाला बदल लिया था. अब शेखुपुर और सहसवान के दो विधायक ही बदायूं में सपा के बचे हैं.
वहीं, हाल ही में सेकुलर महापंचायत करने वाले सपा के बागी मुस्लिम नेता सलीम शेरवानी और आबिद रजा भी दोनों पिछले एक सप्ताह से शांत हैं.
ऐसा है बदायूं सीट का सियासी इतिहास
1951 से अब तक बदायूं के मतदाताओं ने 17 बार लोकसभा चुनाव के लिए वोट दिए हैं. इनमें सबसे ज्यादा 6 बार समाजवादी पार्टी विजयी रही है. 5 बार कांग्रेस, 2 बार बीजेपी, 1 बार जनसंघ, 1 बार भारतीय जनसंघ, 1 बार भारतीय लोकदल और 1 बार जनता दल ने जीत दर्ज की है. 1951 से 1984 तक हुए 7 चुनावों में 5 बार कांग्रेस विजयी रही और 1984 से अभी तक कांग्रेस दूसरे पायदान पर भी नही पहुंची है, जो कांग्रेस का गिरता जनाधार साफ दिखाता है.
1989 से 2019 तक हुए 9 चुनाव में 6 बार समाजवादी पार्टी बदायूं सीट पर काबिज रही है. 2019 में बीजेपी की संघमित्रा मौर्य ने 28 साल बाद पार्टी को इस सीट पर वापसी दिलाई. बीजेपी के चिन्मयानंद ने 1991 में बदायूं में पहली बार कमल खिलाया था. सलीम इकवाल शेरवानी बदायूं लोकसभा सीट पर सबसे ज्यादा 5 बार सांसद रहे हैं.
सलीम शेरवानी का इसलिए कटा था टिकट
1996 में सलीम शेरवानी ने सपा से चुनाव लड़ा और जीते. 1996,1998,1999, 2004 सभी चुनाव सलीम शेरवानी सपा के टिकट पर जीते. 2009 में परिसीमन के बाद बदायूं लोकसभा में यादव बाहुल्य गुन्नौर विधानसभा को शामिल किया गया, जिसके बाद सलीम शेरवानी का 2009 में सपा से टिकट काट दिया गया. 2009 में धर्मेंद्र यादव ने बदायूं से चुनाव लड़ा और वह जीते भी. 2014 के लोकसभा चुनाव में 'मोदी की सुनामी' में धर्मेंद्र यादव 155000 वोटों से बीजेपी के वागीश पाठक से चुनाव जीते. इस जीत ने धर्मेंद्र यादव की लोकप्रियता को सिद्ध किया.
वहीं, 2019 में जब सपा और बसपा का गठबंधन हो गया था तब बदायूं की सीट मजबूत मानी जा रही थी. तभी बीजेपी ने स्वामी प्रसाद मौर्य की बेटी संघमित्रा मौर्य को टिकट दिया. स्वामी प्रसाद मौर्य ने बसपा के कोर वोट को बीजेपी की तरफ मोड़ दिया और 'अतिआत्मविश्वास' के चलते धर्मेंद्र यादव को हार का मुंह देखना पड़ा. संघमित्रा मौर्य ने 18000 वोटों से जीत दर्ज कर बीजेपी का 28 साल का सूखा खत्म कर बदायूं में सपा का किला ध्वस्त किया.
इसके बाद धर्मेंद्र यादव ने आजमगढ़ लोकसभा का उपचुनाव भी लड़ा और वो भी हार गए. अब उनकी जगह चाचा शिवपाल यादव चुनाव लड़ने उतर गए हैं. शिवपाल सपा के गढ़ को वापस ले पाएंगे या नहीं, ये तो वक्त ही बताएगा. फिलहाल समाजवादी पार्टी के अलावा यहां बीजेपी और बसपा का प्रत्याशी घोषित नहीं किया गया है.
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