अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का फैसला होने के बाद अफसरों को जमीन बेचने वाली महर्षि रामायण विद्यापीठ ट्रस्ट अब सवालों के घेरे में है. महर्षि रामायण विद्यापीठ ट्रस्ट ने जिस जमीन के हिस्से को अफसरों को बेचा, वह जमीन हरिजन की थी और दूसरे हरिजन ने यह जमीन ट्रस्ट को दान कर दी थी. फिलहाल इस पूरे मामले को लेकर विवाद अयोध्या की असिस्टेंट रिकॉर्ड ऑफिसर की कोर्ट में लंबित चल रहा है.
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बता दें कि अयोध्या के मंडलायुक्त एमपी अग्रवाल, चीफ रेवेन्यू ऑफिसर पुरुषोत्तम दास गुप्ता और डीआईजी दीपक कुमार के करीबी रिश्तेदारों की ओर से अयोध्या के बरहता मंझा में महर्षि रामायण विद्यापीठ से जो जमीन खरीदी गई, उस पर सवाल खड़े हो रहे हैं. आरोप लगाया जा रहा है कि ट्रस्ट की तरफ से करीब 28 साल पहले दलित के नाम पर दर्ज यह जमीन अपने ही दलित कर्मचारी रेंगई के नाम पर खरीदी गई और फिर उसे ट्रस्ट को दान करवा लिया गया.
मिली जानकारी के अनुसार, 21 बीघा जमीन 1992 में महर्षि रामायण विद्यापीठ के कर्मचारी रहे रेंगई के नाम पर खरीदी गई थी. वहीं, रेंगई ने 3 जून 1996 को यह जमीन महर्षि रामायण विद्यापीठ को बिना रजिस्टर्ड दान-पत्र पर दान कर दी.
बिना रजिस्टर्ड दान-पत्र के ट्रस्ट को दी गई इस जमीन पर सितंबर 2019 में शिकायत दर्ज करवाई गई, जिस पर कमिश्नर एमपी अग्रवाल ने ही जांच के आदेश दिए. यह अलग बात है कि जांच के बावजूद कमिश्नर के ससुर केपी अग्रवाल ने दिसंबर 2020 में महर्षि रामायण विद्यापीठ से 31 लाख रुपये में इसी जमीन में से 2530 वर्ग मीटर जमीन खरीद ली. वहीं, अग्रवाल के बहनोई आनंद वर्धन ने भी ट्रस्ट से 15.50 लाख रुपये में 1260 वर्ग मीटर जमीन खरीदी थी.
अब सवाल यही उठता है कि ट्रस्ट ने पूरी जमीन की कार्रवाई की जद से बचने के लिए विवादित जमीन के कुछ हिस्से को अफसरों को बेचकर और अफसरों ने भी आसमान छूती कीमत की जमीनों को कौड़ी के दाम में खरीद कर कहीं फायदे का सौदा तो नहीं कर लिया?
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