Ayodhya Ram Mandir: आखिरकार 22 जनवरी 2024 के दिन अयोध्या में राम मंदिर का उद्घाटन हो जाएगा. राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा का भव्य और दिव्य आयोजन किया जाएगा. एक लंबी कानूनी लड़ाई और एक लंबे संघर्षपूर्ण इतिहास के बाद आखिरकार अयोध्या में मंदिर का निर्माण हो रहा है. जब-जब राम मंदिर आंदोलन की बात आती है या मंदिर आंदोलन का इतिहास लिखा जाएगा, तब-तब कोठारी भाइयों की भी चर्चा की जाएगी. कोठारी भाइयों ने मंदिर आंदोलन में अपना खून बहाया था और हिंदू संगठन इसे कोठारी भाइयों का मंदिर आंदोलन के लिए दिया गया बलिदन मानते हैं.
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दरअसल, साल 1990 में अयोध्या में कारसेवा हो रही थी. इस दौरान सूबे में सपा की सरकार थी. आरोप है कि सपा सरकार के आदेश पर कारसेवकों पर पुलिस ने गोलियां चलाई थी. इस गोलीबारी में माना जाता है कि 10 कारसेवकों की मौत हो गई थी. इनमें 2 सगे भाई भी शामिल थे. ये दोनों सगे भाई ही कोठारी बंधु के नाम से जाने जाते हैं.
कारसेवा के पहले जत्थे में शामिल थे दोनों भाई
बता दें कि दोनों कोठारी बंधु 30 अक्टूबर 1990 के दिन कारसेवा के लिए अयोध्या आए थे. ये दोनों भाई कारसेवा के आए पहले जत्थे में शामिल थे. मगर 2 दिन बाद ही कारसेवकों के ऊपर पुलिस ने गोलियां चला दी. 2 नवंबर के दिन पुलिस की गोलीबारी में 10 कारसेवकों की मौत हो गई. इसमें कोठारी बंधु भी शामिल थे.
कोठारी बंधुओं के परिजनों ने सपा को बताया जिममेदार
कोठारी बंधुओं के बुजुर्ग माता-पिता और कोठारी भाइयों की बहन, पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता के किसी इलाके में रहते हैं. कोठारी परिवार की आर्थिक स्थिति मजबूत नहीं है. परिवार संघर्षपूर्ण जीवन जी रहा है. अब जब अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण हो रहा है और मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा का समय निकट आ रही है तो कोठारी परिवार भी अपने दोनों बेटों को याद कर रहा है. कोठारी परिवार इस मौके पर अयोध्या भी आ रहा है.
कोठारी भाइयों की बहन पूर्णिमा का कहना है कि वह नहीं चाहती कि इस कार्यक्रम में समाजवादी पार्टी को आमंत्रित किया जाए. सपा को राम मंदिर के कार्यक्रम का निमंत्रण नहीं भेजा जाना चाहिए. पूर्णिमा का कहना है कि सपा की सरकार में ही उनके दोनों भाई पुलिस की गोली से मारे गए थे. ऐसे में सपा को निमंत्रण नहीं भेजा जाना चाहिए.
परिवार को है बेटों के बलिदान पर गर्व
कोठारी भाइयों की बहन पूर्णिमा आज भी कारसेवा का वह दौर याद करती हैं, जब उनके भाई कारसेवा के लिए अयोध्या के लिए गए थे. पूर्णिमा बताती हैं, अयोध्या में पुलिस की कार्रवाई का डर था. मगर फिर भी हमारे माता-पिता ने दोनों भाइयों को कारसेवा के लिए जाने दिया. वह डरे नहीं. जब दोनों भाइयों का बलिदान हो गया तब भी हमारी मां को अपने फैसले पर पछतावा नहीं था. माता-पिता और परिवार का मानना था कि दोनों भाइयों ने नेक काम के लिए अपनी जिंदगी का बलिदान दिया है.
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