Barabanki News: बाराबंकी जिला कारागार में बंद खतरनाक कैदियों ने स्ट्रॉबेरी की खेती कर एक नई मिसाल पेश की है. ये फल पहाड़ी इलाको की पैदावार है और इसकी खेती मैदानी इलाकों में करना बहुत मुश्किल काम होता है, लेकिन जिला कारागार के जेल अधीक्षक और जेलर ने कौशल विकास मिशन के तहत इन कैदियों को प्रशिक्षित कर एक नई जिंदगी देने का प्रयास किया है. इसी के साथ बाराबंकी जेल यूपी की ऐसी पहली जेल बन गई है जहां स्ट्रॉबेरी की खेती हो रही है.
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जेल में कर रहे खेती
जेल का नाम सुनकर पसीना आ जाता है और जब ये कहा जाए कि जेल की रोटियां खानी पड़ेगी तब और खौफ बढ़ जाता है. लेकिन यहां बंद कैदियों ने अपनी मेहनत और लगन से जेल में एक अनोखा काम किया है. दरअसल कैदियों ने जेल में स्ट्रॉबेरी का फल खिलाने का काम किया है. अनेकों अपराधों के तहत सजा काट रहे 1600 कैदियों का भविष्य सुधारने के लिए यूपी सरकार की कौशल विकास मिशन योजना के तहत कैदियों को अब खेती के गुण सिखाए जा रहे हैं.
खतरनाक कैदी अब बनेंगे किसान
जिला कारागार में भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के तहत सजा पाए कैदी शेरबहादुर, मंजीत, मुकेश और इनके अन्य साथियों ने जिला जेल अधीक्षक पीपी सिंह की सलाह पर जेल की लगभग एक बीघा जमीन पर स्ट्रॉबेरी की खेती शुरू की है. इनको खेती करने का तरीका कौशल विकास मिशन के तहत सिखाया गया है. अक्टूबर महीने में इन लोगों ने अपने अन्य साथियों के साथ मिलकर खेत की. फिर स्ट्रॉबेरी का पौधा लगाने के लिए बेड तैयार किया, उसमें स्ट्रॉबेरी का पौधा लगाया, लगभग 4 महीने में फसल तैयार हो गई. अब इसकी पैकिंग करके इसको मार्केट में उतारने का काम किया जा रहा है.
कैसे होती हैं खेती
आपको बता दे कि स्ट्रॉबेरी का पौधा, हिमांचल प्रदेश और महाबलेश्वर जैसी जगहों से मंगवाया जाता हैं. 15 सितंबर से 15 अक्टूबर तक इसकी रोपाई का समय है, लेकिन अगर अक्टूबर के आखिर तक यह लगा दिए जाए तो पैदावार बहुत अच्छी होती है. इसके एक पेड़ में 800 ग्राम से एक किलो तक फल आते हैं. इस फसल में बचत मौसम पर भी निर्भर करता है, लेकिन किसानों को घाटा नहीं हो सकता.
पहले स्ट्रॉबेरी की मंडी और बाजार ढूंढ़ना पड़ता था, लेकिन अब व्यापारी खुद तलाशते हैं. यानी अब मंडी और बाजार की समस्या नहीं रह गई है. इस फसल से कारागार में बंद कैदियों के आर्थित हालत तो सुधरेंगे ही है. साथ ही अब इसका बाजार भी काफी बड़ा हो गया है. इससे स्ट्रॉबेरी बेचने के लिए कहीं भटकना नहीं पड़ता.
क्या कहते हैं कैदी
स्ट्रॉबेरी की खेती करने वाले कैदी शेरबहादुर कहते है कि, “हम 302 के तहत यहां 10 साल से बंद है, बाहर जाएगे तो रोजगार मिलने की उम्मीद कम है, इसलिए हम लोग यहां उन्नत खेती के गुण सिख रहे है. हमारे पास खेती की जमीन है उसमें स्ट्राबेरी की खेती कर हम अच्छा कमाएगे.”
वहीं कैदी मंजीत और मुकेश कहते है कि, हम 302 में हम 10 साल से बंद हैं. यहां खेती के गुण सीखकर हमारी जिंदगी में बदलाव आया है, जब हम छूटेंगे तो स्ट्रॉबेरी की खेती करेंगे और अपने साथ परिवार को गांव के लोगों को भी इसी खेती करने का तरीका बताएंगे.
क्या कहता है जेल प्रशासन
जेल अधीक्षक पी.पी.सिंह और जेलर आलोक शुक्ला ने जानकारी दी कि, बाराबंकी जेल में स्ट्रॉबेरी की खेती पहली बार हो रही है. इसकी देखरेख का जिम्मा यहां के कैदियों पर रहता है. आज स्ट्रॉबेरी में फल पकने लगे हैं और यह फसल लगातार फरवरी तक रहती है. इसकी जिला कारागार कृषि उत्पाद की पैकिंग कर इसे बाजार और माल में बेचा जाएगा, जिसका अच्छा मुनाफा आने की उम्मीद है. ये कौशल विकास मिशन के तहत कैदियों को उन्नत खेती और प्रगतिशील बनाने के लिए गुण सिखाए जा रहे हैं.
इस मामले पर आलोक शुक्ला (जेलर -जिला कारागार-बाराबंकी) ने बताया, “कौशल विकास के तहत कई कार्य जेल में चल रहे है, उसमें कैदियों को उन्नत खेती और व्यावसायिक खेती सिखाने का भी हम लोगों ने निर्णय लिया था. बाराबंकी राजधानी लखनऊ से सटा हुआ है. कई बंदी हमारे ऐसे है जिनके पास खेती की ज़मीन कम है. तो हम चाहते है वह कम ज़मीन में अच्छी और मुनाफे वाली उपज पैदा कर सके. इसके लिए इन्हें उन्नत खेती की ट्रेनिंग दी गयी है, जिसमे स्ट्रॉबेरी की खेती हम लोग सीखा रहे है.“
जेल अधीक्षक-जिला कारागार-बाराबंकी पी.पी.सिंह ने बताया कि, “कौशल विकास के कार्य कारागार में बंद कैदियों को करवाए जा रहे हैं, इसमें एनजीओ का सहयोग लिया जा रहा है. यहां के कृषि उत्पादों में हम लोगों ने कुछ बंदियों को प्रशिक्षित करने की कोशिश की है. स्ट्रॉबेरी की खेती में बंदी को सिखाया जा रहा है कैसे उसको लगाया जाता है, कैसे पैदावार होती है और क्या मुनाफा होता है. अभी स्ट्रॉबेरी की कीमत बाजार में अच्छी है और इसलिए इनको हम लोग उन्नत शील खेती की ट्रेनिंग दे रहे है. स्ट्रॉबेरी में जो खाद कीटनाशक दवाएं का प्रयोग किया जा रहा है वह हमारी गौशाला के गोबर और गोमूत्र से बनाई जा रही है.”
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